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ट्रेन हादसाः तेज होता डिब्बों को आधुनिक बनाने का काम तो कम होता नुकसान

रेलवे ने हाल ही में हुए ट्रेन हादसों के बाद रेलवे कोच को आधुनिक कर इनके रेट्रो-फिटमेंट का काम शुरू किया था. रेलवे अगले छह सालों में 40,000 आईसीएफ कोच में बदलाव करके सुरक्षित यात्रा के लिए फिट करने का फैसला किया है. अगले छह साल में इस काम में तकरीबन 8000 करोड़ रुपये का खर्चा करना पड़ेगा

13 डिब्बे पटरी से उतरे 13 डिब्बे पटरी से उतरे
अनुग्रह मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 24 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 8:28 AM IST

उत्तर प्रदेश में एक बार फिर रेल हादसा हुआ है. यहां चित्रकूट के पास वास्को-पटना एक्सप्रेस के 13 डब्बे पटरी से उतरे गए, हादसे में 3 लोगों की मौत हो गई जबकि 12 अन्य लोग घायल बताए जा रहे हैं. शुरुआती जानकारी के मुताबिक पटरी टूटी होने की वजह से यह हादसा हुआ है. साथ ही ट्रेन में पुरानी तकनीक वाले (इंटीग्रल कोच फैक्ट्री) आईसीएफ कोच थे, यही वजह रही कि एक बाद एक 13 डब्बे पटरी से उतर गए.

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आधुनिक बनाने की पहल

रेलवे ने हाल ही में हुए ट्रेन हादसों के बाद रेलवे कोच को आधुनिक कर इनके रेट्रो-फिटमेंट का काम शुरू किया था. रेलवे अगले छह सालों में 40,000 आईसीएफ कोच में बदलाव करके सुरक्षित यात्रा के लिए फिट करने का फैसला किया है. अगले छह साल में इस काम में तकरीबन 8000 करोड़ रुपये का खर्चा करना पड़ेगा. रेलवे के मुताबिक पुरानी तकनीक पर आधारित आईसीएफ कोच के उत्पादन को 1 अप्रैल 2018 से पूरी तरह से बंद कर दिया जाएगा.

देश भर में मौजूद रेलवे के कोच कारखानों को पुराने कोच के इंटीरियर को रि-डिजाइन करने के निर्देश दे दिए गए हैं. इसके लिए अगले छह वर्षों का टारगेट भी तय कर दिया गया है. वर्ष 2017-18 के दौरान 1000 आईसीएफ कोच को रेट्रो-फिट कर दिया जाएगा. वर्ष 2018-19 में 3000 आईसीएफ कोच को रेट्रो-फिट कर दिया जाएगा.

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कंट्रोल हो सकता था हादसा

आईसीएफ कोच को यात्रियों के लिए सुरक्षित बनाने के लिए रेलवे वर्कशॉप में इसके कपलर को सेंट्रल बफर कपलर में बदला जाएगा. इस पूरी मुहिम में निजी क्षेत्र की कंपनियों को शामिल किया जा रहा है. इसके लिए पहले चरण की टेंडरिंग प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. लेकिन अगर हादसाग्रस्त ट्रेन को कोच आधुनिक होते तो शायद नुकसान से बचा जा सकता था.

बताया यह भी जा रहा है कि ट्रेन की स्पीड कम थी, इसी वजह से हादसे के स्केल को नियंत्रित किया जा सका. अगर कोच आधुनिक होते थे 13 डिब्बे पलटने की आशंका कम थी. एलएचबी कोच लाने पर जोर है. एलएचबी डिब्बे आधुनिक तकनीक से लैस हैं, पटरी से उतरने के मामले में सहायक होते हैं.

डब्बे एक-दूसरे पर नहीं चढ़ते

पिछले दिनों जब इटावा के पास कैफियत एक्सप्रेस पटरी से उतरी थी तब उसमें जर्मन तकनीक से बने हुए एलएचबी कोच लगे हुए हैं. इसी वजह से ट्रेन के डिब्बे एक दूसरे के ऊपर नहीं चढ़े. इसके अलावा दूसरी सिक्योरिटी फीचर्स होने की वजह से लोगों को गंभीर चोटें भी कम आईं. एलएचबी कोच होने की वजह से इस दुर्घटना में घायलों की संख्या कम रही और किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई थी. गौरतलब है कि खतौली में उत्कल एक्सप्रेस दुर्घटना में हताहतों की तादाद इसलिए ज्यादा रही क्योंकि इस गाड़ी में पुरानी तकनीक के डिब्बे लगे हुए थे. 

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