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चंद्रबाबू नायडु ने 21 साल पहले अपने बेटे लोकेश की सलाह पर प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया था. संयुक्त मोर्चा सरकार (1997) के नेताओं की तरफ से उनसे प्रधानमंत्री बनने का आग्रह किया गया था.
यह बात 11 सितंबर, 2016 को अपनी शादी की 35वीं सालगिरह पर उन्होंने खुद कही थी. बकौल नायडु के उस वक्त लोकेश ने उनसे कहा था, ''प्रधानमंत्री का पद क्षणिक है.'' लेकिन अब लगता है कि उनके नजरिए में थोड़ा बदलाव आया है.
आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा दिलाने की मांग के खारिज होने के बाद हाल ही में वे एनडीए से अलग होने की राह पर चल पड़े हैं. उनका मानना है कि केंद्र सरकार (खासकर प्रधानमंत्री) अगर चाहे तो किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया जा सकता है. टीडीपी नेता थोटा नरसिम्हन कहते हैं, ''वित्त मंत्री अरुण जेटली का यह कहना सही नहीं है कि आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देना संभव नहीं है.''
अहम बात यह है कि नायडु ने एनडीए से अलग होने का फैसला उस वक्त लिया है जब पड़ोसी राज्य तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव कांग्रेस-भाजपा से अलग तीसरा मोर्चा बनाने की बात करते हुए पहल कर चुके हैं.
बंगाल में ममता बनर्जी से चंद्रशेखर राव ने इस बारे में बात भी की और ममता ने आगे बढ़कर उनके सुर में सुर मिला दिया. बंगाल के पड़ोसी राज्य त्रिपुरा में जिस तरह से भाजपा को बड़ी सफलता मिली और मेघालय तथा नगालैंड में भी उसने सरकार बना ली, न सिर्फ ममता और लेफ्ट पार्टियां किसी ऐसे कुनबे की आस में है जो मोदी लहर के सामने टिक सके.
दक्षिण के राज्य कर्नाटक में जेडीएस और तमिलनाडु के स्थानीय दलों अन्नाद्रमुक और द्रमुक भी बेसब्री से किसी तीसरे मोर्चे का स्वागत करने को तैयार बैठे हैं. द्रमुक नेता एम.के. स्टालिन कहते हैं, ''यदि कोई नया मोर्चा बनता है तो यह गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी होगा.''
इन सब के बीच तीसरे मोर्चे को लेकर हमेशा एक बड़ी दिक्कत सर्वमान्य नेताओं को लेकर रही है. तीसरे मोर्चे का कुनबा कई बार बना है और नेतृत्व के मुद्दे पर कई बार टूट गया है. 1997 में भी नेता की दिक्कत थी लेकिन उस वक्त भाजपा को रोकने के लिए अन्य सभी दलों ने किसी भी व्यक्ति को नेता मानना स्वीकार किया था और एच.डी. देवगौड़ तथा आइ.के. गुजराल तीसरे मोर्चे की ओर से प्रधानमंत्री बने. तीसरे मोर्चे को लेकर भाजपा माखौल उड़ाने से बाज नहीं आती है.
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद कहते हैं, ''तीसरा मोर्चा हर चुनाव से पहले हवा में बनता है. मुद्दा क्या होगा, नेता कौन होगा उनका यही सवाल हल नहीं होता है.'' भाजपा के इन तर्कों के बीच सच यही है कि कांग्रेस समेत सभी गैर-भाजपाई दल अपने अस्तित्व को लेकर चिंतित हैं. पिछले चार साल में जिन राज्यों में चुनाव हुए वहां इक्के-दुक्के राज्यों को छोड़कर भाजपा ने अपना परचम लहराया.
तीसरे मोर्चे के नेतृत्व को लेकर उठने वाले सवालों का जवाब नायडु हो सकते हैं. 1997 में तीसरे मोर्चे में शामिल सभी 13 दलों के नेताओं ने नायडु को प्रधानमंत्री कद का नेता माना था. उस समय सपा के मुलायम सिंह यादव, राजद के लालू प्रसाद यादव, द्रमुक के करुणानिधि, जेडीएस के एच.डी. देवगौड़ा और लेफ्ट के ज्योति बसु जैसे नेता प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे.
21 साल बाद इन सभी दलों (यदि एक मंच पर आते हैं) को नायडु को नेता मानने में कोई दिक्कत नहीं होगी. खासकर दक्षिण भारत में सक्रिय दल यह चाहेंगे कि प्रधानमंत्री अगर दक्षिण भारत का होगा तो दक्षिणी राज्यों के लिए बेहतर होगा.
चूंकि नायडु वाजपेयी सरकार और तीसरा मोर्चा सरकार में संयोजक रह चुके हैं इसलिए सभी दलों के नेताओं में उनकी पैठ भी है. टीडीपी नेता एस.वाई. चैधरी कहते हैं, ''नायडु निर्विवादित रूप से ऐसे नेता हैं जो किसी भी गठबंधन या मोर्चे की अगुवाई करने की काबिलियत रखते हैं.''
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