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उतार-चढ़ाव भरी अदालती प्रक्रिया और विरोध के कुछ स्वरों के बीच 1993 के मुंबई धमाकों के दोषी याकूब मेमन को गुरुवार को फांसी दे दी गई. गिरफ्तारी के 21 साल बाद नागपुर की सेंट्रल जेल में उसे सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर फांसी दी गई और 7 बजकर 1 मिनट पर पोस्टमार्टम के बाद आधिकारिक रूप से मृत घोषित कर दिया गया. इसके बाद शाम करीब 6 बजे पुख्ता सुरक्षा इंतजामों के बीच उसके परिवार की मौजूदगी में उसे दफना दिया गया.
याकूब के शव को मुंबई के माहिम स्थित बड़ा कब्रिस्तान में उसके पिता की कब्र के बराबर में दफनाया गया. इस दौरान उसके करीबी रिश्तेदार और बड़ी संख्या में लोग वहां जमा हुए. मेमन को फांसी के बाद उसका शव दिन में नागपुर से यहां हवाई मार्ग से लाया गया. मेमन के परिवार के माहिम स्थित घर से मरीन लाइन्स स्थित कब्रिस्तान में ताबूत ले जाया गया जहां उसके शव को जनाजे की नमाज और अन्य रस्मों के लिए करीब दो घंटे तक रखा गया. पुलिस ने सुरक्षा और कानून व्यवस्था के तहत शव को जुलूस में ले जाने पर रोक लगा दी थी.
चप्पे-चप्पे पर तैनात रहे जवान
शहर पुलिस आयुक्त राकेश मारिया समेत वरिष्ठ अधिकारियों की देखरेख में मुंबई पुलिस के 30,000 से अधिक जवानों को माहिम और कब्रिस्तान के इलाके में तैनात किया गया था. मेमन का शव शाम 4:15 बजे कब्रिस्तान पहुंचने तक शहर के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में लोग वहां जमा हो गये थे.
कब्रिस्तान में जाने वाले हर शख्स की शुरू में तलाशी की गयी और मेटल डिटेक्टर लगाये गये लेकिन भीड़ को देखते हुए बाद में यह बंद कर दिया गया. मुंबई पुलिस ने इससे पहले ऐहतियातन 526 शातिर अपराधियों और हिस्ट्रीशीटरों को हिरासत में लिया था.
बचाव पक्ष की तमाम कोशिशों के बाद भी नहीं बच पाया याकूब
बुधवार-गुरुवार की दरम्यानी रात बचाव की तमाम कोशिशों के बावजूद याकूब की फांसी टल नहीं पाई और सुप्रीम कोर्ट द्वारा तड़के अभूतपूर्व रूप से की गई सुनवाई के बाद उसे फांसी पर लटका दिया गया. पीड़ितों के परिजनों ने इसे न्याय की जीत बताते हुए खुशी जाहिर की तो सियासी हलकों में विरोध के स्वर भी उभरते रहे. इत्तेफाक से यह उसका 53वां जन्मदिन भी था.
याकूब पर विस्फोटों के लिए वित्त व्यवस्था और हर तरह की मदद मुहैया कराने तथा कुछ सह आरोपियों को हथियारों और गोलाबारूद के उपयोग के प्रशिक्षण के लिए मुंबई से दुबई होते हुए पाकिस्तान भेजने का आरोप था. उस पर उन वाहनों को भी खरीदने का आरोप था जिनमें भीषण विस्फोटों के लिए आरडीएक्स लगाया गया था.
टाडा अदालत ने उसके मौत के फरमान पर तामील के लिए सुबह 7 बजे का ही समय निर्धारित किया था. मौत के फरमान को उसके वकीलों की टीम ने कई बार चुनौती दी लेकिन तमाम कोशिशें नाकाम रहीं.
सरकारी सूत्रों ने बताया कि उसके शव को बाद में उसके भाई सुलेमान और चचेरे भाई उस्मान के सुपुर्द कर दिया गया जो बुधवार से ही यहां शहर में ठहरे हुए थे. इसके बाद शव को अंतिम संस्कार के लिए विमान से मुंबई ले जाया गया. मुंबई एयरपोर्ट से शव को माहिम स्थित याकूब के घर ले जाया गया, ताकि रिवाज के मुताबिक परिजन उसे आखिरी बार देख सकें.
तड़के सुप्रीम कोर्ट में हुई 'अभूतपूर्व' सुनवाई
याकूब की फांसी को टलवाने के लिए उसके वकीलों की ओर से अंतिम समय तक पुरजोर कोशिशें की गईं और यह पूरा घटनाक्रम बुधवार को शुरू होकर गुरुवार तड़के तक जारी रहा. सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा फांसी पर रोक लगाने की उसकी याचिका को नामंजूर किए जाने और उसकी क्यूरेटिव याचिका को शीर्ष कोर्ट में ठुकराए जाने में कोई कानूनी खामी न पाए जाने पर मेमन ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के सामने नए सिरे से दया याचिका दाखिल की थी.
मुखर्जी ने इस पर तुरंत कार्रवाई करते हुए पहले गृह मंत्री राजनाथ सिंह से विचार-विमर्श किया जिसमें बाद में गृह सचिव एल सी गोयल और सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार भी शामिल हुए. इस पूरी प्रक्रिया में दो घंटों का समय लगा. इससे पूर्व दिन में, राष्ट्रपति ने नियमों के मुताबिक, याचिका सरकार को भेज दी.
देर रात चीफ जस्टिस के घर पहुंचे थे वकील
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सिंह और शीर्ष अधिकारियों ने इस विषय पर विचार विमर्श किया और मुखर्जी को मेमन की याचिका को नामंजूर करने का सुझाव दिया. राजनाथ सिंह खुद सरकार के फैसले से राष्ट्रपति को अवगत कराने के लिए राष्ट्रपति भवन गए. समय के अभाव को देखते हुए मेमन के वकीलों ने नए सिरे से उसकी जान बचाने के प्रयास किए और फांसी पर तामील को रुकवाने के लिए त्वरित सुनवाई के लिए याचिका को लेकर चीफ जस्टिस एच एल दत्तू के घर पहुंचे. उसके वकील इस आधार पर फांसी रुकवाना चाहते थे कि मौत की सजा पाए दोषी व्यक्ति को अपनी याचिका नामंजूर किए जाने को चुनौती देने का मौका प्रदान करने और अन्य कामों के लिए 14 दिन का समय दिए जाने की जरूरत है.
काफी विचार विमर्श के बाद चीफ जस्टिस ने न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के नेतृत्व में तीन सदस्यीय पीठ गठित की थी जिसने बुधवार को मौत के फरमान को बरकरार रखा था और फांसी पर रोक लगाने से मना कर दिया था. अदालत कक्ष संख्या 4 में तड़के 3 बजकर 20 मिनट पर शुरू हुई सुनवाई चार बजकर 50 मिनट पर पूरी हुई और पीठ के फैसले के साथ ही याकूब को मृत्युदंड निश्चित हो गया. इस मामले में आदेश जारी करने वाली न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा, 'मौत के फरमान पर रोक न्याय का मजाक होगा. याचिका खारिज की जाती है.'
कोर्ट ने खारिज कर दी अपील
मेमन के वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर और युग चौधरी ने कहा कि अधिकारी उसे दया याचिका खारिज करने के राष्ट्रपति के फैसले को चुनौती देने के अधिकार का उपयोग करने का अवसर दिए बिना फांसी देने पर अड़े हैं. ग्रोवर ने कहा कि मौत की सजा का सामना कर रहा दोषी उसकी दया याचिका खारिज होने के बाद विभिन्न मकसदों के लिए 14 दिन की मोहलत का हकदार है.
मेमन की याचिका का विरोध करते हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने यह दलील दी कि उसकी ताजा याचिका व्यवस्था का दुरूपयोग करने के समान है. रोहतगी ने कहा कि पूरे प्रयास से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उसका मकसद जेल में बने रहने और सजा को कम कराने का है. उन्होंने कहा, तीन न्यायाधीशों द्वारा मात्र दस घंटे पहले मौत के फरमान को बरकरार रखने के फैसले को रद्द नहीं किया जा सकता.
मौत पर रोक लगाना न्याय से मजाक होगा: SC
पीठ ने रोहतगी की बात से सहमति जतायी और आदेश जारी करते हुए न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा ने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा 11 अप्रैल 2014 को उसकी पहली दया याचिका खारिज किये जाने के बाद पर्याप्त मौके दिये गए जिसके बारे में उसे 26 मई 2014 को सूचित किया गया. उन्होंने कहा कि याचिका नामंजूर किए जाने के बाद उस समय उसे उच्चतम न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जा सकती थी. पीठ ने कहा, इसके परिणामस्वरूप, अगर हम मौत के फरमान पर रोक लगाते हैं तो यह न्याय के साथ मजाक होगा. उसने साथ ही कहा , हमें रिट याचिका में कोई दम नजर नहीं आता. आदेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ग्रोवर ने कहा कि यह एक त्रासद भूल और गलत फैसला है .
पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट याकूब को हमलों की साजिश रचने और सह-आरोपियों मूलचंद शाह तथा कंपनी मैसर्ज तिजारत इंटरनेशनल के जरिए सिलसिलेवार बम विस्फोटों के लिए धन मुहैया कराने का दोषी ठहराया गया था. इस कंपनी का मालिक उसका भाई अयूब मेमन था जो अभी भी फरार है.
21 साल तक जेल में रहा याकूब
सुप्रीम कोर्ट ने टाडा अदालत द्वारा 12 सितंबर 2006 को दिए गए दोषसिद्धि और मौत की सजा के आदेश को बरकरार रखते हुए 21 मार्च 2013 को मेमन को 1992-93 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भड़के सांप्रदायिक दंगों के बाद हुए इन भीषण विस्फोटों की साजिश को आगे बढ़ाने वाला बताया. याकूब को 6 अगस्त 1994 को काठमांडो से दिल्ली आने पर गिरफ्तार किया गया था. कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने कहा था कि उसे गिरफ्तार किया गया जबकि याकूब का दावा था कि पश्चाताप की आग में जलने के बाद वह समर्पण करने के लिए आया था.
साजिशकर्ताओं में टाइगर मेमन और दाऊद भी
याकूब को फांसी दिए जाने से कुछ दिन पहले खुफिया एजेंसी रॉ के एक पूर्व अधिकारी बी रमन द्वारा लिखे गए लेख से इस मामले में नाटकीय मोड़ आ गया. उसकी गिरफ्तारी के समय एजेंसी में पाकिस्तान संबंधी मामलों के प्रमुख रहे रमन ने लिखा था कि केंद्रीय एजेंसियों ने मेमन को भारत लौटने को राजी किया था. लेकिन इस बात की पुष्टि नहीं होती है कि याकूब ने एजेंसियों के साथ किसी प्रकार का सौदा किया था जिससे वह फांसी के फंदे से बच सकता था.
याकूब के भाई एसा और भाभी रूबीना बम विस्फोट मामले की साजिश रचने, इन्हें अंजाम देने वाले आतंकवादियों के लिए धन तथा हर तरह की व्यवस्था करने के जुर्म में उम्र कैद की सजा काट रहे हैं. बम विस्फोटों में कथित रूप से बड़ी भूमिका निभाने वाले साजिशकर्ता अभी भी फरार हैं और समझा जाता है कि पाकिस्तान में इन लोगों को पनाह मिली हुई है. इनमें मेमन का बड़ा भाई टाइगर मेमन और अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम शामिल हैं.