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गुजरात में आरक्षण आंदोलन के बाद अब 'बेरोजगार यात्रा'

आंदोलन वाइब्रेंट गुजरात की एक ऐसी तस्वीर पेश करता है जिससे सत्ता पार्टी बीजेपी के दावों की हवा निकल सकती है. ये सम्मेलन राज्य में निवेश बढ़ाने और रोजगार उपलब्ध कराने के मकसद से किया जाता है. लेकिन उस सम्मेलन से ठीक पर ये बेरोजगार यात्रा और बेरोजगारी के आंकड़े सरकार के लिए परेशानी का सबब हैं.

मंच पर आंदोलनकारी नेता मंच पर आंदोलनकारी नेता
गोपी घांघर
  • अहमदाबाद,
  • 03 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 7:57 PM IST

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सम्मेलन वाइब्रेंट गुजरात से ठीक पहले अहमदाबाद में निकल रही बेरोजगार यात्रा ने राज्य सरकार के लिए काफी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. इस यात्रा को आरक्षण आंदोलन करने वाले युवा नेताओं का समर्थन हासिल है. इनमें अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवानी और हार्दिक पटेल के करीबी वरुण पटेल जैसे नेता शामिल हैं.

गांधीनगर में 10 से 13 जनवरी के बीच वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन का आयोजन होना है और उससे ठीक पहले छह जनवरी को बहुचराजी से अहमदाबाद तक बेरोजगार यात्रा आयोजित की गई है. इस यात्रा को 'गुजरातियों को रोजगार नहीं तो वाइब्रेंट नहीं' का नारा दिया गया है. अब तक ये सभी युवा नेता अपनी मांगों के लिए गुजरात के अलग-अलग इलाकों में आंदोलन कर रहे थे, लेकिन इनके एक मंच पर आने से सरकार की दिक्कतें बढ़ सकती हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 जनवरी को वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन का उद्घाटन करने वाले हैं. जिससे पहले वह गुजरात में कई कार्यक्रमों में भी शिरकत करेंगे.

अब ऐसे में वजह बेराजगार यात्रा से सरकार सकते में आ गई है. ओबीसी नेता अल्पेश ठाकुर ने सरकार से सात लाख युवा बेरोजगारों की नौकरी के लिए कुछ ठोस घोषणा करनी की मांग है. साथ ही सम्मेलन के तहत गुजरात में निवेश करने वाली कंपनियों में 75 फीसदी गुजरातियों को रोजगार देने की मांग भी इस यात्रा के जरिए की जाएगी. यात्रा का नेतृत्व करने वालों नेताओं ने कहा है कि अगर सरकान ने हमारी मांग नहीं मानी तो सभी नेता एक मंच पर आकर वाइब्रेंट गुजरात का विरोध करेंगे.

यात्रा के रणनीतिकार और दलित नेता जिग्नेश मेवानी का कहना है कि अगर 90 दिन में तीन लाख युवाओं को रोजगार नहीं दिया गया तो सभी नेता एक मंच पर आकर वाइब्रेंट का विरोध करेंगे.

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दरअसल यह आंदोलन वाइब्रेंट गुजरात की एक ऐसी तस्वीर पेश करता है जिससे सत्ता पार्टी बीजेपी के दावों की हवा निकल सकती है. ये सम्मेलन राज्य में निवेश बढ़ाने और रोजगार उपलब्ध कराने के मकसद से किया जाता है. लेकिन उस सम्मेलन से ठीक पर ये बेरोजगार यात्रा और बेरोजगारी के आंकड़े सरकार के लिए परेशानी का सबब हैं. राज्य की रुपानी सरकार के लिए तकलीफ इसलिए भी है क्योंकि 8वें वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में अन्तरराष्ट्रीय नेताओं से लेकर प्रधानमंत्री तक शिरकत करने वाले हैं. ऐसे मैं कोई भी बड़ा आंदोलन कानून व्यवस्था पर सवाल भी खड़े कर सकता है.

राज्य की बीजेपी सरकार के कार्यकाल में ये पहला सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम है. इस हालत में सरकार किसी भी तरह की किरकिरी से बचना चाहती है जबकि युवा नेता ठोस कदम की मांग के पर अड़े हुए हैं .पाटीदार नेता वरुन पटेल ने कहा है कि बेरोजगारी पाटीदारों में भी है, दलितों मैं भी है, ओबीसी भी बेरोजगार हैं और आदिवासी भी बेरोजगार हैं. हम इसलिए साथ में आए हैं. सबको रोजगार होगा तो कोई आंदोलन ही नहीं करेगा.

सरकार के खिलाफ शुरू किए गए इस आंदोलन को बाकी जातियों के भरपूर समर्थन का भी दावा किया जा रहा है. ऐसे में सरकार इसे रोकने के लिए हर मुमकिन करने की कोशिश में लगी है.

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