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झारखंड सरकार की वेबसाइट से 10 लाख से भी ज्यादा लोगों की आधार डिटेल्स लीक

झारखंड में एक वेबसाइट में आए प्रोग्रामिंग इरर की वजह से 10 लाख से भी ज्यादा नागरिकों को अपनी डिजिटल आइडेंटीटी से समझौता करना पड़ा है. इस इरर की वजह से झारखंड के ओल्ड एज पेंशन स्किम वाले उपभोक्ताओं के नाम, पता, आधार नंबर और बैंक अकाउंट डिटेल्स का खुलासा हो गया है.

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साकेत सिंह बघेल
  • नई दिल्ली,
  • 23 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 12:14 PM IST

झारखंड डायरोक्टोरेट ऑफ सोशल सिक्योरिटी की देखरेख में रह रहे एक वेबसाइट में आए प्रोग्रामिंग एरर की वजह से 10 लाख से भी ज्यादा नागरिकों को अपनी डिजिटल आइडेंटीटी से समझौता करना पड़ा है.

'हिंदुस्तान टाइम्स' की खबर के मुताबिक, इस गलती की वजह से झारखंड के ओल्ड एज पेंशन स्किम वाले उपभोक्ताओं के नाम, पता, आधार नंबर और बैंक अकाउंट डिटेल्स का खुलासा हो गया है.

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झारखंड में करीब 1.6 मिलियन पेंशनर्स हैं, जिसमें से 1.4 मिलियन उपभोक्ताओं ने अपने महीने के पेंशन को सीधे अपने बैंक अकाउंट में पाने के लिए बैंक अकाउंट को आधार नंबर से जोड़ रखा है. अब उनके सारे प्राइवेट डिटेल्स वेबसाइट पर आसानी से उपलब्ध हैं जिन्हें कोई भी देख सकता है.

ऑथोरिटी ने पिछले महीने में कम से कम आठ पुलिस शिकायतें दर्ज की हैं, जिसमें निजी पार्टियों के खिलाफ 'गैरकानूनी तौर पर नागरिकों के आधार संख्या एकत्रित' करने का आरोप है. ये वो जानकारियां हैं जिसे झारखंड सरकार ने अब सार्वजनिक कर दिया है.

ये घटना भी ऐसे समय में सामने आई है जब आधार को सभी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए सरकार ने अनिवार्य कर दिया है और सुप्रीम कोर्ट से लेकर साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट और विपक्षी पार्टी तक को ये फॉर्मूला रास नहीं आया है.

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आधार नंबर का प्रकाशन आधार अधिनियम की धारा 29 (4) का उल्लंघन करता है. इस साल की शुरुआत में, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) ने भारतीय टीम के पूर्व कप्तान एमएस धोनी के आधार नंबर को प्रकाशित करने के लिए आधार सर्विस प्रोवाइडर को 10 साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया था.

राज्य के सामाजिक कल्याण विभाग के सचिव एमएस भाटिया ने बताया कि 'हमें इसके बारे में इस हफ्ते ही पता चल गया था हमारे प्रोग्रामर इस पर काम कर रहे हैं, और इस मामले पर जल्द ही ध्यान दिया जाना चाहिए.

इंटरनेट और सोसाइटी के सेंटर में नीति निदेशक प्रणेश प्रकाश ने कहा कि "क्या यूआईडीएआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी इस डाटासेट को सार्वजनिक बनाने के लिए झारखंड सरकार के खिलाफ कोई कार्रवाई करेंगे? और अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो क्या इसका मतलब यह है कि वे इस कार्य को रोकते हैं?

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