
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आज के दौर की सच्चाई है जिसे लगभग हर टेक कंपनियां तेजी से अपना रही हैं. फेसबुक और गूगल इसका बड़ा उदाहरण है. सवाल-जवाब आधारित प्लेटफॉर्म Quora की तरफ से छात्र नेता और जेएनएसूएसयू की पूर्व उपाध्यक्ष शेहला रशीद को एक ईमेल आया जिसमें उन्हें उनकी यातनाओं के बारे में याद दिलाया गया और यह पूछा गया कि क्या वो अब भी मौत का आसान तरीका ढूंढ रही हैं.
एक ट्विटर थ्रेड में शेहला रशीद ने याद किया कि कैसे किसी एक समस्या की वजह से उन्होंने आत्महत्या करने की सोची और इंटरनेट पर सुसाइड करने के तरीके ढूंढने लगीं. उन्होंने ट्विटर पर लिखा है, ‘कुछ दिन पहले सुसाइड को लेकर ख्याल आने शुरू हुए. मुझे ऐसा दो हफ्तों से लग रहा था. लेकिन उस रात मैने सुसाइड करने के तरीकों के बारे में ढूंढा.’
हालांकि अब वो इस ख्याल से बाहर निकल चुकी हैं, लेकिन उनके द्वारा सर्च किया गया तरीका इंटरनेट के जाल में रह गया. Quora के एल्गोरिद्म ने उनके सर्च के आधार पर पर्सन्लाइज मैसेज तैयार किया और उन्हें ईमेल किया. इस मैसेज में लिखा था, ‘क्या आप अब भी जानना चाहती हैं कि सुसाइड का कौन सा तरीका सबसे आसान है और जिसमें दर्द नहीं होता.’
इस ईमेल के बाद शेहला रशीद ने ट्विटर पर लिखा, ‘आपके पास एल्गोरिद्म है जो लोगों को मरने में मदद करता है. तब मैं सुसाइड के बारे में विचार कर रही थी, इसलिए मुझे इस बात का ख्याल नहीं था कि मैं लॉग्ड इन थी. इस सुबह Quora ने ईमेल भेजा और पूछा कि क्या मैं अब भी सुसाइड के बारे में सोच रही हूं और वो यहां मदद करने के लिए हैं.’
स्मार्ट एल्गोरिद्म का खेल
गौरतलब है कि ऐसे ऐल्गोरिद्म को इस तरह से डिजाइन किया जाता है ताकि यूजर जैसे ही कोई सवाल पूछता है उसे सेव करके उससे जुड़ी जानकारियां खुद से उसके पास भेज दिए जाएं. ऐसा न सिर्फ Quora के साथ है, बल्कि फेसबुक और यूट्यूब जैसी बड़ी वेबसाइट पर भी कई बार ऐसे उदाहरण देखने को मिले हैं जहां गलत कॉन्टेंट तेजी से वायरल हो रहे होते हैं जिनमें न सच्चाई होती है और न ही वो किसी आम दर्शक के लिए सही होते हैं.
एल्गोरिद्म एक प्रोसेस है जिसे कंप्यूटर समस्याओं को सुलझाता है. ऐल्गोरिद्म शब्द बगदाद के एक गणितज्ञ मोहम्मद इब्न मूसा अल ख्वारिजमी से आया है जो रॉयल कोर्ड ऑफ बगदाद के हिस्सा थे.
साधारण शब्दों में कहें तो कंप्यूटर ऐल्गोरिद्म से आप कंप्टूटर से जो चाहें करा सकते हैं. इसके लिए आपको प्रोग्राम लिखना होता है और कंप्यूटर को स्टेप बाइ स्टेप बताना होता है कि आप उससे क्या रिजल्ट चाहते हैं. कंप्यूटर प्रोग्राम को एग्जिक्यूट करता है और अपना टार्गेट पूरा करता है. इसमें स्मार्ट शब्द जुड़ गया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस लग गया. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के तहत कंप्यूटर भी आम इंसान की तरह काम तो कर सकते हैं, लेकिन जाहिर है उन्हें सही गलत की पहचान तब तक नहीं हो सकती जब तक आपने प्रोग्राम में ये फीड न किया हो.
परमाणु शक्ति से भी खतरनाक AI?
अमेरिका की प्राइवेट स्पेस एजेंसी स्पेस एक्स और टेस्ला के अरबति फाउंडर एलोन मस्क मानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस न्यूक्लियर वेपन से भी ज्यादा खतरनाक है. उन्होंने यह भी कहा था कि इसके लिए एक रेग्यूलेटरी बॉडी होनी चाहिए जो इसे मॉनिटर करे. उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तुलना नॉर्थ कोरिया से भी की है.