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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बनेगा बोल न पाने वालों की जुबान

एक ऐसा प्रोग्राम जो आपके बोलने से पहले बता दे कि आप क्या बोलने वाले हैं. ऐसा प्रोग्राम जो आपके दिमाग को पढ़ ले. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए ये संभव है, यकीन नहीं तो पूरी स्टोरी पढ़ें.

रिसर्चर्स ने पब्लिश की हैं दिमाग की स्कैन की गई इमेज रिसर्चर्स ने पब्लिश की हैं दिमाग की स्कैन की गई इमेज
Munzir Ahmad
  • नई दिल्ली,
  • 19 अगस्त 2016,
  • अपडेटेड 5:38 PM IST

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के जरिए दुनिया में कई हैरतअंगेज तकनीक डेवलप की जा चुकी हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से मुराद ये है कि इस थ्योरी के तहत ऐसे कंप्यूटर सिस्टम डेवलप किए जाते हैं जो इंसानों के इंटेलिजेंस के आधार पर काम करते हैं. इसमें विजुअल परसेप्शन, स्पीच रिकॉग्निशन और फैसला लेने की क्षमता जैसे फीचर्स शामिल हैं.

  • रिसर्चर्स ने एक ऐसा प्रोग्राम जिजाइन किया है जो दिमाग को स्कैन करके आपके बोलने के पैटर्न को नोट करेगा.
  • यह प्रोग्राम लोगों के हाव भाव और शब्दों को समझ कर पैटर्न का अंदाजा लगाएगा.
  • आपके बोलने से पहले यह अंदाजा लगा लेगा कि आप क्या बोलने जा रहे हैं. पूरी तरह सटीक नहीं होगा, क्योंकि वर्ड प्रेडिक्शन के तर्ज पर काम करता है.
  • यह तकनीक वैसे लोगों की मदद कर सकती है जो बोल नहीं सकते

स्टीफन हॉकिंग के सामने लगा इंटेल का सिस्टम AI का उदाहरण
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर और टेक्नॉलोजी का सबसे बड़ा उदाहरण स्टीफन हॉकिंग का इंटेल का ACAT (असिस्टिव कॉन्टेक्स्ट अवेयर टूलकिट) प्रोग्राम है. इसके जरिए मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हॉगिंग लोगों से कम्यूनिकेट करते हैं.

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इस सॉफ्टवेयर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह प्रोफेसर हॉकिंग के इशारों पर काम कर सके. यह सॉफ्टवेयर यूजर के चेहरे के विजुअल क्यू के जरिए काम करता है. यह सॉफ्टवेयर वेबकैम और इंफ्रारेड सेंसर के जरिए कमांड्स लेता है.

खास बात यह है कि इंटेल ने पिछले साल इस ACAT प्रोग्राम को ओपेन सोर्स कर दिया है ताकि इसका यूज करके दुसरी कंपनियां ऐसी मशीन डेवलप कर सकें जिससे लोगों को मदद मिल सके.

नए रिसर्च में दिमाग पढ़ने वाला प्रोग्राम
डेली मेल की एक रिपोर्ट के मुताबिक रिसर्चर्स ने क ऐसा कंप्यूटर प्रोग्राम डेवेलप किया है जो बोले जाने वाले वाक्यों को प्रेडिक्ट करने के लिए दिमाग की एक्टिविटी को पढ़ेगा.

इस टेक्नॉलोजी पर रिसर्च करने वाले अमेरिकी यूनिवर्सिटी ऑफ रोचेस्टर के रिसर्चर डॉक्टर एंड्रू एंडर्सन के मुताबिक यह तकनीक उन लोगों की मदद कर सकती है जिन्हें किसी स्ट्रोक की वजह से बोल नहीं सकते हैं.

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उन्होंने कहा है, ' हमने पाया है कि हम दिमाग की एक्टिविटी पैटर्न को प्रेडिक्ट कर सकते हैं. हालांकि यह सटीक नहीं हो सकता लेकिन कुछ हद तक यह सही कर सकता है'

उनका मानना है कि अभी नहीं, अगले साल भी नहीं लेकिन ऐसे रिसर्च आने वाले दिनों में उन लोगों की काफी मदद कर सकता है जो बोल नहीं पाते या उन्हें कोई ब्रेन इंज्री हुई है.

इस रिसर्च के लिए रिसर्चरों की टीम ने कई लोगों को इसमें शामिल किया है. रिसर्चर्स ने लोगों के दिमाग को स्कैन करने के लिए MRI यूज किया और दिमाग की एक्टिविटी का पता लगाया. इस दौरान रिसर्च में शामिल लोगों के बोले जाने वाले वाक्यों का कुछ हद तक अंदाजा लगाने में सफल हुए.

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