
देश में आज यानी 19 अप्रैल से आम चुनाव की शुरुआत हो चुकी है. चुनाव में EVM का बहुत ही महत्वपूर्ण रोल होता है. वैसे तो EVM हर बार राजनीति का शिकार होती है. सभी आरोपों के बाद भी EVM देश को नई सरकार देने में मदद करती है. इसका इस्तेमाल दूसरे चुनावों में भी होता है.
EVM यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल लोकसभा और विधानसभा चुनाव में शुरू कैसे हुआ. ईवीएम ने भारत में बैलेट पेपर के इस्तेमाल को रिप्लेस किया है. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर कई बार आरोप लगे हैं, लेकिन आज तक कोई इसे सिद्ध नहीं कर पाया है.
इन आरोपों के बाद इलेक्शन कमीशन ने वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रायल यानी VVPAT सिस्टम को इंट्रोड्यूस किया है. हालांकि, ये सिस्टम अभी पूरी तरह से लागू नहीं है. साल 2014 में इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया था.
साल 1980, एम. बी. हनीफा ने पहली वोटिंग मशीन को बनाया था. इस वक्त इसे इलेक्ट्रॉनिक्ली ऑपरेटेड वोट काउंटिंग मशीन नाम दिया गया था. इसका ओरिजनल डिजाइन आम लोगों को तमिलनाडु के 6 शहरों में हुए सरकारी एग्जीबिशन में दिखाया गया था. EVM का पहली बार इस्तेमाल 1982 में केरल के उत्तर परवूर में हुए उप-चुनाव में हुआ था.
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शुरुआती दिनों में चुनाव आयोग को EVM के इस्तेमाल को लेकर बहुत से विरोध का सामना करना पड़ा. साल 1998 में EVM का इस्तेमाल 16 विधानसभा में हुआ था. इसके बाद 1999 में इसका विस्तार हुआ और 46 लोकसभा सीट पर इन्हें इस्तेमाल किया गया. साल 2004 में लोकसभा चुनाव में EVM का इस्तेमाल सभी सीट पर हुआ.
EVM में दो यूनिट्स- कंट्रोल और बैलेट होती है. यानी एक यूनिट जिस पर बटन दबा कर आप अपना वोट देते हैं और दूसरी यूनिट जिसमें आपके वोट को स्टोर किया जाता है. कंट्रोल यूनिट मतदान अधिकारी के पास होती है, जबकि बैलेट यूनिट को दूसरी तरफ रखा जाता है, जहां से लोग वोट डाल पाते हैं.
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बैलेट यूनिट पर आपको तमाम पार्टियों के चिह्न और उम्मीदवार के नाम दिए होते हैं, जिनके आगे एक नीली बटन होती है. इन बटन्स को दबाकर आप अपना वोट डालते हैं. वहीं कंट्रोल यूनिट पर Ballot मार्क वाला एक बटन होता है, जिसे दबाने के बाद दूसरा वोटर अपना वोट डाल पाता है.
जैसे ही किसी मतदान केंद्र पर आखिरी वोट पड़ता है, पोलिंग ऑफिसर कंट्रोल यूनिट पर लगे Close बटन को दबा देता है. इसके बाद EVM पर वोट्स नहीं पड़ सकते हैं. मतदान खत्म होने के बाद कंट्रोल यूनिट को बैटल यूनिट से अलग करके रख दिया जाता है. रिजल्ट के लिए कंट्रोल यूनिट पर दिए गए Result बटन को दबाना होता है.
ये बटन कहीं गलती से दब ना जाए, इसके लिए दो सेफगार्ड भी होते हैं. इस बटन को तब तक इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, जब तक Close बटन ना दबाई जाए और वोटिंग प्रक्रिया पूरी तरह से खत्म ना हो जाए. ये बटन छिपी हुई होती है और इसे सुरक्षा कारणों से सील रखा जाता है. इस सील को सिर्फ काउंटिंग सेंटर पर ही तोड़ा जाता है.
एक्सपर्ट्स की मानें तो EVM में एक माइक्रोप्रोसेसर लगा होता है. इस प्रोसेसर को सिर्फ एक बार ही प्रोग्राम किया जा सकता है. यानी एक बार प्रोग्राम लिखे जाने के बाद आप इसमें बदलाव नहीं कर सकते हैं. दूसरे शब्दों में कहें, तो इस पर कोई दूसरा सॉफ्टवेयर राइट नहीं किया जा सकता है.
हालांकि, इसमें कौन-सा चिप या प्रोसेसर इस्तेमाल होता है, इस बारे में जानकारी नहीं है. EVM को इस्तेमाल करने के लिए इलेक्ट्रिसिटी की जरूरत नहीं होती है. EVM 7.5-volt की एल्कलाइन पावर पैक यानी बैटरी के साथ आती है, जिसकी सप्लाई भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड करती है.
EVM के पुराने मॉडल में 3840 वोट्स को स्टोर किया जा सकता था. हालांकि, इसके नए वर्जन में सिर्फ 2000 वोट्स ही स्टोर होते हैं. EVM में स्टोर डेटा 10 साल या इससे ज्यादा वक्त तक सुरक्षित रखा जा सकता है. EVM की एक यूनिट की कॉस्ट लगभग 8,670 रुपये पड़ती है. पहले ये कीमत और भी कम थी.
EVM को दो कंपनियां मिलकर बनाती हैं. इसे इलेक्शन कमिशन, भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड, बेंगलुरू (मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस) और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड हैदरबाद ( डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी) के साथ मिलकर तैयार करता है.