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जलीकट्टू पर जंग के बाद अब कर्नाटक में 'कम्बाला' को लेकर बवाल

तमिलनाडु सरकार द्वारा सांड के खेल जलीकट्टू को कानूनी रूप देने के लिए बिल लाने के बाद कर्नाटक में भैसों की पारंपरिक दौड़ 'कम्बाला' को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं.

भैंसों की दौड़ है कम्बाला भैंसों की दौड़ है कम्बाला
रोहिणी स्‍वामी
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  • 25 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 2:10 PM IST

तमिलनाडु सरकार द्वारा सांड के खेल जलीकट्टू को कानूनी रूप देने के लिए बिल लाने के बाद कर्नाटक में भैसों की पारंपरिक दौड़ 'कम्बाला' को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. कर्नाटक में प्रदर्शनकारी यह मांग कर रहे हैं कि कम्बाला को भी इसी तरह से कानूनी रूप दिया जाए और उसे आयोजित करने की इजाजत दी जाए.

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने सोमवार को कहा था कि उनकी सरकार इस आयोजन की समर्थक है और उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को इस मामले में उसी तरह का अनुकूल कदम उठाना चाहिए जैसा कि उसने जलीकट्टू के मामले में उठाया है. उन्होंने कहा, 'हम इस मसले पर विचार करेंगे और जरूरी हुआ तो अध्यादेश भी ला सकते हैं.' जलीकट्टू मामले पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने वाला है, इसके पहले केंद्र सरकार ने कहा है कि वह जनवरी 2016 का अपना नोटिफिकेशन वापस लेना चाहती है, क्योंकि तमिलनाडु सरकार ने बिल पास कर दिया है.

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गौरतलब है कि कम्बाला एक ऐसा परंपरागत सालाना भैंस दौड़ है जो कर्नाटक के तटीय जिलों में कीचड़ भरे खेतों में आयोजित की जाती है. इसके आयोजन पर कोर्ट ने रोक लगा रखी है. इस मामले में 30 जनवरी को हाई कोर्ट अपना आदेश सुनाएगा.

जलीकट्टू आंदोलन से प्रेरित होकर मंगलुरु की कम्बाला समितियों ने मीटिंग कर यह तय किया है कि 28 जनवरी को दक्षिण कन्नड़ जिले के मूडबिडरी में विशाल प्रदर्शन किया जाएगा. यही नहीं कम्बाला के आयोजकों ने यह निर्णय लिया है कि मंगलुरु में भी अगले हफ्ते एक विशाल प्रदर्शन कर कम्बाला पर लगी रोक को हटाने की मांग की जाएगी.

चीफ जस्टिस एस.के. मुखर्जी की अध्यक्षता वाली कर्नाटक हाई कोर्ट की एक डिविजन बेंच ने नवंबर 2016 के अपने अंतरिम आदेश में कम्बाला के आयोजन पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट द्वारा जलीकट्टू पर आदेश से प्रेरित होकर पेटा ने कम्बाला के आयोजन को चुनौती दी थी. यह मामला फिर पिछले शुक्रवार को हाई कोर्ट के डिविजन बेंच के सामने आया, जिसने मामले को 30 जनवरी तक के लिए टाल दिया.

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कर्नाटक बीजेपी के प्रेसिडेंट बीएस येदुरप्पा ने कम्बाला को हजारों साल से चलने वाला एक लोक उत्सव बताया. उन्होंने कहा कि इससे लोग काफी भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं. इस सोमवार को बंगलुरु में करीब 50 कन्नड़ आंदोलनकारियों को हिरासत में लिया गया जो कम्बाला पर लगी रोक हटाने की मांग कर प्रदर्शन कर रहे थे.

विरोध प्रदर्शन की तैयारी

कन्नड़ आंदोलनकारियों ने बुधवार सुबह को राजभवन का घेराव करने का निर्णय लिया है. कम्बाला के समर्थकों का कहना है कि वे इसके लिए जेल जाने को तैयार हैं. 28 जनवरी को बंगलुरु में एक विशाल प्रदर्शन होगा जिसमें 200 जोड़ी भैसों को भी शामिल किया जा सकता है.

मूदबिदरी के विधायक अभय चंद्र जैन ने कहा, 'कम्बाला हमारी तुलुनाडु संस्कृति का हिस्सा है, भारत सरकार यदि जलीकट्टू को इजाजत देती है तो आखिर यह हमारी तुलुनाडु संस्कृति का सवाल है. कम्बाला को समर्थन देना हमारा कर्तव्य है. लोगों के लिए मैं जेल जाने को भी तैयार हूं.' संदलवुड एक्टर रक्षित शेट्टी ने भी कम्पाला का समर्थन करते हुए कहा कि भैंस पालना उनके परिवारों के लिए गर्व की बात रही है और लोग उन्हें अपने बच्चों की तरह पालते हैं. बंगलुरु में 28 जनवरी को होने वाले प्रदर्शन में स्वराज मैदान पर कम से कम 50,000 लोग शामिल हो सकते हैं.

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महाराष्ट्र में भी इस खेल पर प्रतिबंध हटाने की मांग शुरु हो गई है. महाराष्ट्र के पशुधन कल्याण मंत्री महादेव जांकर ने कहा कि बैन सही नहीं है, लेकिन उन्होंने कहा कि फिलहाल सरकार के हाथ बंधे हुए हैं और कोर्ट के आदेश का पालन करना उनका कर्तव्य है.

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