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चीन के एक प्रमुख अखबार ने कहा है कि अफगानिस्तान और भारत के बीच हवाई गलियारा, पाकिस्तान और चीन के आर्थिक गलियारे के जवाब में बनाया गया है जो भारत का जिद्दीपन दर्शाता है. भारत और अफगानिस्तान ने पिछले हफ्ते द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए हवाई गलियारे का उद्धाटन किया था, ताकि मध्य एशिया के देशों को भारतीय बाजारों से अधिक से अधिक जोड़ा जा सके.
भारत और काबुल मिलकर वैकल्पिक और विश्वसनीय मार्ग बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं. भारत चाबहार पोर्ट के विकास के लिए ईरान और अफगानिस्तान के साथ भी काम कर रहा है. मई 2016 में तीन देशों के बीच चाबहार के माध्यम से समुद्री पहुंच के लिए त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे.
चीन के एक प्रमुख अखबार ने लिखा है कि भारत, अफगानिस्तान और ईरान के बीच प्रस्तावित मार्गों को पहले से ही शुरू किया जा चुका है जिससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या भारत अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ व्यापार करने के लिए पाकिस्तान को अनदेखा करेगा?
भारत ने पाकिस्तान-चीन आर्थिक गलियारे का विरोध किया था जबकि वो खुद कनेक्टिविटी के जरिए क्षेत्रीय आर्थिक विकास में शामिल है इससे भारत का जिद्दीपन उजागर हुआ है.
पाकिस्तान में चीन का 50 अरब डॉलर का निवेश अरब सागर के जरिए यूरेशिया के बाजारों तक पहुंचने की रणनीति के तहत किया गया है और CPEC के जरिए झिंजियांग से पाकिस्तान के बलूचिस्तान के ग्वादर तक सड़क और रेल मार्ग से जोड़ना है. भारत CPEC का निरंतर विरोध करता रहा है, जोकि बेल्ट और रोड इनीशिएटिव(बीआरआई) का हिस्सा है और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है. भारत हमेशा बीआरआई का विरोध करता है इसलिए सीपीईसी के खिलाफ उसने अपना गलियारा बनाया है.
इसके साथ ही इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि इस क्षेत्र में क्षेत्रीय समस्या काफी जटिल है लेकिन भारत के लिए आसान है कि वह पाकिस्तान के साथ आर्थिक और व्यापारिक रिश्ते बेहतर कर सके.
गौरतलब है कि पिछले हफ्ते भारत और अफगानिस्तान के बीच हवाई गलियारे की शुरुआत की गई थी जिसका उद्देश्य अफगानिस्तान को भारतीय बाजार में एक वैकल्पिक व्यापार लिंक देना है. साथ ही भारतीय माल को युद्ध से तबाह हुए इस देश में पहुंचाना है. अफगानिस्तान के फल, मेवों और कालीन की भारत में काफी मांग है. माल ढुलाई गलियारे से इनके आयात को भी बढ़ावा मिलेगा.