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अफगानिस्तान के NSA बोले- पाकिस्तान और ISI का मुखौटा है तालिबान

अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) हमदुल्लाह मोहिब ने कहा कि उनके देश की बागडोर कभी भी ऐसे पिछड़े देश के मुखौटे के हाथों में नहीं जाएगी, जिसके पास अपने लोगों को खिलाने को नहीं है.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (फाइल फोटो) पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • काबुल,
  • 03 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 7:51 AM IST

  • अफगानिस्तान ने कहा तालिबान पाकिस्तान और ISI का मुखौटा
  • अफगान NSA बोले- कभी स्वीकार नहीं करेंगे तालिबान की बादशाहत
  • कहा- पाकिस्तान के पास अपने लोगों को खिलाने तक के लिए नहीं

अफगानिस्तान ने तालिबान को पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई का मुखौटा बताया है. अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) हमदुल्लाह मोहिब ने कहा कि उनका देश की बागडोर कभी भी ऐसे पिछड़े देश के मुखौटे के हाथों में नहीं जाएगी, जिसके पास अपने लोगों को खिलाने को नहीं है.

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काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस में एनएसए हमदुल्लाह मोहिब ने कहा, 'तालिबान सिर्फ पाकिस्तान का नहीं बल्कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का प्रॉक्सी है. अफगानिस्तान कभी भी पाकिस्तानियों द्वारा शासित होना स्वीकार नहीं करेगा. अगर हमने सोवियत रूस का शासन स्वीकार नहीं किया, तो इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है कि हम एक पिछड़े देश के प्रॉक्सी शासन को स्वीकार करेंगे, जिसके पास अपने लोगों को खिलाने तक के लिए नहीं है.'

शांति वार्ता के लिए अफगान सरकार से बात करें ट्रंप

इससे पहले हमदुल्लाह मोहिब ने कहा था कि तालिबान की डराने की रणनीति सफल नहीं होगी. अफगानिस्तान में शांति का एकमात्र तरीका अफगान सरकार के साथ बातचीत करके ही शुरू किया जा सकता है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने तालिबानी हमले के बाद शांति वार्ता को रोक दिया था. इस हमले में एक अमेरिकी सैनिक की मौत हुई थी.

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हमलों के बाद अमेरिका ने बंद कर दी थी शांति वार्ता

शांति वार्ता को रोके जाने के बाद तालिबान ने कहा था कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अगर भविष्य में शांति वार्ता फिर से शुरू करना चाहते हैं तो उनके दरवाजे खुले हैं. यह बयान तालिबान के दो हमलों के दावे के घंटे भर बाद आया था. इन हमलों में अफगानिस्तान के 48 लोग मारे गए थे.

पाकिस्तान ने शांति वार्ता के लिए चले कई दांव

पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में शांति का कार्ड कई बार खेला. तालिबान पर उसका असर माना जाता है और माना जाता है कि तालिबान को शांति वार्ता के मेज पर लाने में उसकी भूमिका रही है. इसे अमेरिका ने भी माना था और इस माहौल का इस्तेमाल पाकिस्तान ने कई बार फायदा उठाने के लिए की.

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