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झुक गया एअर इंडिया, चीन के विरोध के बाद वेबसाइट में बदला ताइवान का नाम

लगता है कि चीन के विरोध का सामना करना आज की तारीख में किसी के लिए संभव नहीं है, ऐसे में एअर इंडिया की क्या बिसात? यह विमानन कंपनी भी दुनिया के उन कई विमानन कंपनियों में शुमार हो गई है जिन्हें चीन की धमकी के आगे झुकना पड़ गया.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
अनंत कृष्णन
  • बीजिंग,
  • 04 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 7:31 AM IST

लगता है कि चीन के विरोध का सामना करना आज की तारीख में किसी के लिए संभव नहीं है, ऐसे में एअर इंडिया की क्या बिसात? यह विमानन कंपनी भी दुनिया के उन कई विमानन कंपनियों में शुमार हो गई है जिन्हें चीन की धमकी के आगे झुकना पड़ गया.

पिछले महीने एअर इंडिया की वेबसाइट पर ताइवान को स्वतंत्र देश के रूप में दिखाया जा रहा था, जिस पर चीन को आपत्ति थी और उसने इस पर विरोध भी जताया. इसके बाद एअर इंडिया ने चीन की इच्छानुसार 'ताइवान' की जगह 'चीनी ताइपे' कर दिया.

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इससे पहले भी दुनिया की कई हवाई सेवा देने वाली सिंगापुर एयरलाइंस, जापान एयरलाइंस और एयर कनाडा समेत कई विमानन कंपनियों ने भी अपनी वेबसाइट पर बदलाव करते हुए 'ताइवान' की जगह 'चीनी ताइपे' कर दिया था. चीन की नागरिक उड्डयन प्राधिकरण (सीएएसी) की ओर से 25 अप्रैल को जारी आदेश में कहा गया कि वह नहीं चाहता कि ताइवान को एक स्वतंत्र देश के रूप में दर्शाया जाए.

चीन ने भेजा पत्र

एअर इंडिया का एक ऑफिस शंघाई में है, और यह इस देश में उसकी एकमात्र जगह है, को भी चीनी नागरिक उड्डयन प्राधिकरण की ओर से पत्र भेजा गया और उसे 25 जुलाई तक उसे सभी जरूरी बदलाव करने का समय दिया गया था.

हालांकि हाल तक एअर इंडिया अमेरिकी विमानन कंपनी की तरह ताइवान को स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में दर्शाती रही है, जिसका अर्थ यह हुआ कि वह चीन का हिस्सा नहीं है.

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इसके बाद चीनी नागरिक उड्डयन प्राधिकरण ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए चीन की साइबर स्पेस प्रशासन को आदेश दिया कि ऐसी वेबसाइटों की तलाश करे जिससे उसे चीन की एअरलाइन वेबसाइट से ब्लॉक किया जा सके.

ग्लोबल टाइम्स की चेतावनी

चीन की सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने बुधवार को एअर इंडिया को चेतावनी देते हुए कहा कि कुछ भारतीय मीडिया और विद्वान मानते हैं कि भारत को ताइवान को चीन का हिस्सा नहीं मानना चाहिए, जब तक चीन भारत की सीमावर्ती इलाकों को अपनी मान्यता न दे दे.

ग्लोबल टाइम्स की ओर से कहा गया कि भारत ने कभी भी चीन के साथ 'एक चीन की योजना' पर अपने विचार नहीं रखे और न ही उसका समर्थन किया, साथ ही किसी भारतीय नेता ने इस नीति को लेकर कभी कुछ नहीं कहा, तो ऐसे में कोई भारतीय कंपनी कैसे अपना विचार रख सकती है.

चीनी विद्वान लोंग झींगचुन के अनुसार, विदेशी कंपनियां जो चीन में बिजनेस करना चाहती हैं या अपने उत्पाद चीनी बाजार में उतारना चाहती हैं, उन्हें चीनी कानून को मानना पड़ता है. यही चीज हर देश में लागू होती है.

चीन ताइवान को अपना एक प्रांत मानता है, हालांकि 1949 में चीनी गृह युद्ध खत्म होने के बाद ताइवान स्वतंत्र रूप से अपनी सरकार द्वारा प्रशासित है. भारत का ताइवान के साथ किसी भी तरह का कूटनीतिक संबंध नहीं है, लेकिन उसके साथ आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध बने हुए हैं.

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एअर इंडिया की ओर से कहा गया है कि वह इस मामले को विदेश मंत्रालय के समक्ष रखेगा. माना जा रहा है कि चीन के इस कदम के बाद चीन भारतीय कंपनियों पर राजनीतिक मामलों पर एक स्टैंड लेने का दबाव बना सकती है.

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