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लंदन के गुरुद्वारे के मेन हॉल में 2 बड़े ‘खालिस्तानी’ बैनर, चैरिटी कमीशन ने मांगे और सबूत

धर्मस्थल चैरिटी सर्किट में आते हैं और ब्रिटेन में चैरिटी कमीशन की देखरेख में हैं. कमीशन की रूल बुक साफ तौर पर कहती है कि चैरिटी (धर्मार्थ कार्य) के लिए किसी संगठन को चैरिटी उद्देश्यों के लिए ही आवश्यक तौर पर स्थापित हुआ होना चाहिए.

लंदन के एक गुरुद्वारे के 2 मेन गेट पर लगे हुए हैं खालिस्तान के पोस्टर (फोटो-लवीना) लंदन के एक गुरुद्वारे के 2 मेन गेट पर लगे हुए हैं खालिस्तान के पोस्टर (फोटो-लवीना)
लवीना टंडन
  • लंदन,
  • 27 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 12:51 PM IST

  • ब्रिटेन के चैरिटी कमीशन ने संज्ञान लिया
  • ‘रिस्क फ्रेमवर्क’के तहत होगा रीव्यू
  • चैरिटी कमीशन ने मांगे और सबूत

ग्रेटर लंदन के स्लो क्षेत्र में स्थित गुरुद्वारा श्री सिंह सभा के मेन हॉल में दो बड़े ‘खालिस्तानी’ बैनर लगे देखे गए. ये वही क्षेत्र है जहां से ब्रिटेन के पहले सिख सांसद तनमनजीत सिंह ढेसी चुने गए हैं. हालांकि गुरुद्वारे के पूर्व प्रमुख जोगिंदर सिंह बेदी ने इंडिया टुडे से कहा, 'बैनर यहां पर 1984 से लगे हुए हैं. ये कोई नई बात नहीं है.'

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बता दें कि धर्मस्थल चैरिटी सर्किट में आते हैं और ब्रिटेन में चैरिटी कमीशन की देखरेख में हैं. कमीशन की रूल बुक साफ तौर पर कहती है- 'चैरिटी (धर्मार्थ कार्य) के लिए किसी संगठन को चैरिटी उद्देश्यों के लिए ही आवश्यक तौर पर स्थापित हुआ होना चाहिए, जिससे लोगों को इसका लाभ मिले. अगर एक संगठन के उद्देश्य राजनीतिक हों तो वो चैरिटेबल नहीं हो सकता.'

इस रूल बुक में इस संवैधानिक जरूरत को भी बताया गया है- 'चैरिटी राजनीतिक उद्देश्य के लिए नहीं हो सकती. इसके तहत किसी भी राजनीतिक दल के हितों को साधने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया जा सकता. या इसके जरिए किसी कानून, नीति या फैसलों में देश में या देश के बाहर किसी बदलाव का विरोध नहीं किया जा सकता या कोई बदलाव नहीं कराया जा सकता.'

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खालिस्तान का बैनर कैसे लगा

ऐसे में कैसे 'खालिस्तान ' का बैनर लगाया जा सकता है जो किसी और देश (इस मामले में भारत) की सम्प्रभुता से टकराता हो. क्या इसे बरसों से लगे रहने दिया जा सकता है?

ब्रिटेन में चुनाव प्रचार के दौरान धर्मस्थल से लोगों को संबोधित करना आम बात है. दिसंबर में चुनाव हो रहे हैं. ऐसे में स्लो के गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा में भी इस तरह की गतिविधियां देखी जा रही हैं. तनमनजीत सिंह ने भी गुरुद्वारे के मेन हॉल में एकत्र लोगों को संबोधित किया. इसी हॉल में दो बड़े 'खालिस्तानी' बैनर लगे हुए हैं. अन्य पार्टियों के नेताओं ने भी यहां से संबोधन किए होंगे. फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी ने भी चैरिटी कमीशन को इस बारे में रिपोर्ट नहीं किया.

इंडिया टुडे ने इस मामले में सांसद तनमनजीत सिंह ढेसी को लिखित सवाल भेज कर पूछा कि क्या वो ‘खालिस्तान’की मांग के साथ हैं, यदि नहीं तो फिर वो क्यों इस तरह की अलगाववादी गतिविधि को रिपोर्ट नहीं किया गया? इसके जवाब में ढेसी ने एक वीडियो भेजा जिसमें कोई और विरोधी उम्मीदवार उसी हॉल में लोगों को संबोधित कर रही हैं जहां उपरोक्त बैनर लगे हुए हैं. हालांकि ढेसी ने मूल सवाल का जवाब नहीं दिया.

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बर्मिंघम के स्मेथविक स्थित गुरु नानक गुरुद्वारा में एक और कदम बढ़ाते हुए चैरिटेबल उद्देश्य का जिक्र किया गया है. और वो है- 'पंजाब की मौजूदा राजनीतिक स्थिति को जेहन में रखते हुए ‘खालिस्तान’ की स्थापना के लिए कोशिशें करना.'

सबूत उपलब्ध कराने का आग्रह

इंडिया टुडे ने इस बारे में चैरिटी कमीशन को लिखा. कमीशन ने इस मामले में और सबूत उपलब्ध कराने का आग्रह करते हुए कहा है- 'ट्रस्टीज कर्तव्यबद्ध हैं कि वे सुनिश्चित करें कि वो जो भी करें, चैरिटी के श्रेष्ठ हित में हो, साथ ही चैरिटी कानून के तहत हो. चैरिटी की ओर से प्रदर्शित की गई किसी भी सूचना को भी इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए. चैरिटी कमीशन इस मामले को देखेगा. दोनों चैरिटी को लेकर जताई गई चिंताओं का अपने प्रकाशित ‘रिस्क फ्रेमवर्क’ के दायरे में निस्तारण किया जाएगा.'

पूर्व सांसद और हैरो ईस्ट लंदन से मौजूदा कंजरवेटिव उम्मीदवार बॉब ब्लैकमैन ने सांसद की जिम्मेदारियों का उल्लेख करते हुए कहा कि अगर वो चैरिटीज की ओर से अलगाववादी राजनीतिक एजेंडा फैलाने का कोई सबूत देखता है तो उसे चैरिटी कमीशन के संज्ञान में इसे लाना चाहिए. साथ ही पुलिस को भी सूचना दे कि कोई आपराधिक कार्य तो नहीं हो रहा.

बता दें कि ‘खालिस्तान’ जैसे अलगाववादी एजेंडे के लिए ‘रेफरेंडम 2020’ की शुरुआत ब्रिटेन से ही हुई. हाशिए पर पहुंच चुके कुछ सिख ग्रुप ‘खालिस्तान’ के एजेंडे के लिए पाकिस्तान समर्थक कश्मीरी ग्रुप्स के साथ नियमित तौर पर हाथ मिलाते देखे गए हैं. इनकी ओर से किए जाने वाले विरोध-प्रदर्शनों में हिंसा बढ़ती जा रही है. ऐसे में इन गतिविधियों के सिर उठाने से पहले ही अंकुश लगाने के लिए कदम नहीं उठाए गए तो इनसे भविष्य में ब्रिटेन में ‘आतंकवाद’ के लिए नया दरवाजा भी खुल सकता है.

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