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अगर PAK सरकार ने नहीं दिए सबूत, तो हाफिज को कर दिया जाएगा रिहाः लाहौर HC

लाहौर उच्च न्यायालय ने आगाह किया है कि अगर पाकिस्तान सरकार मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के खिलाफ सबूत दाखिल नहीं करती है, तो उसकी नजरबंदी रद्द कर दी जाएगी.

मुंबई हमले का मास्टरमाइंड हाफिज सईद मुंबई हमले का मास्टरमाइंड हाफिज सईद
राम कृष्ण
  • लाहौर,
  • 11 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 4:49 PM IST

भारत और अमेरिका के दबाव में आकर पाकिस्तान सरकार ने खूंखार आतंकी हाफिज सईद को नजरबंद जरूर कर रखा है, लेकिन उसके खिलाफ अदालत में सबूत नहीं दे रही है. पाकिस्तान सरकार की इस घोर लापरवाही के चलते मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद की नजरबंदी रद्द होने के आसार बढ़ गए हैं. लाहौर उच्च न्यायालय ने आगाह किया है कि अगर पाकिस्तान सरकार मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के खिलाफ सबूत दाखिल नहीं करती है, तो उसकी नजरबंदी रद्द कर दी जाएगी.

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जमात-उद-दावा सरगना सईद 31 जनवरी से नजरबंद है. मंगलवार को लाहौर उच्च न्यायालय ने उसकी हिरासत के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई की. माना जा रहा था कि इस सुनवाई में गृह सचिव हाफिज सईद की हिरासत से संबंधित मामले के पूरे रिकॉर्ड के साथ अदालत में पेश होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कार्यवाही के दौरान गृह सचिव की गैर मौजूदगी से नाराज अदालत ने कहा कि महज प्रेस क्लिपिंग की बुनियाद पर किसी नागरिक को किसी विस्तारित समय तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता.

लाहौर हाईकोर्ट के न्यायाधीश सैयद मजहर अली अकबर नकवी ने कहा कि पाकिस्तान सरकार का बर्ताव दिखाता है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ सरकार के पास कोई ठोस सबूत नहीं है. अदालत के सामने अगर कोई ठोस सबूत नहीं पेश किया गया, तो याचिकाकर्ताओं की नजरबंदी रद्द कर दी जाएगी. डिप्टी अटार्नी जनरल के साथ आए गृह मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी ने अदालत को बताया कि इस्लामाबाद में अपरिहार्य सरकारी जिम्मेदारी के चलते गृह सचिव पेश नहीं हो पाए.

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मामले में डिप्टी अटार्नी जनरल ने याचिका का जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा. जस्टिस नकवी ने अफसोस जताया कि एक सरकारी शख्सियत के बचाव के लिए अफसरों की फौज दी गई है, लेकिन अदालत की मदद के लिए एक भी अधिकारी उपलब्ध नहीं है. भारत के दुश्मन आतंकी हाफिज सईद के वकील एके डोगर ने दलील दी कि सरकार ने जमात-उद-दावा के नेताओं को अंदेशों और सुनी सुनाई चीजों की बुनियाद पर नजरबंद किया है. किसी कानून के तहत बिना किसी सबूत के किसी कयास और कल्पना से कोई अंदेशा नहीं बनता.

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