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'नया पाकिस्तान' बनना तय, लेकिन खत्म नहीं होंगी भारत की चिंताएं

इमरान खान की पार्टी को बहुमत नहीं मिला है, इसलिए वह कई छोटे-छोटे कट्टरपंथी दलों के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं. ऐसे में वहां सरकार पर फिर से सेना और आईएसआई का प्रभुत्व कायम हो सकता है.

पाकिस्तान में इमरान खान की पार्टी पीटीआई को मिली जीत (फोटो: रायटर्स) पाकिस्तान में इमरान खान की पार्टी पीटीआई को मिली जीत (फोटो: रायटर्स)
दिनेश अग्रहरि
  • नई दिल्ली,
  • 26 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 9:06 AM IST

पाकिस्तान ने बदलाव के लिए वोट किया है. पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के बाद इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने की पूरी संभावना है. तो अब इमरान खान 'नया पाकिस्तान' बनाने का अपना वादा पूरा करेंगे, लेकिन वहां के इस बदलाव से भी भारत के लिए चिंताएं कम नहीं होने वालीं.

पाकिस्तान में चुनाव के पूरे घटनाक्रम पर भारत और चीन दोनों की गहरी नजर थी. भारत और चीन दोनों शायद यही चाहते थे कि पाकिस्तान में एक बहुमत वाली स्थ‍िर सरकार बने ताकि वहां सेना-आईएसआई का नियंत्रण कम हो. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इमरान खान की पार्टी को बहुमत नहीं मिला है, ऐसे में संभवत: वह तमाम छोटे-छोटे कट्टरपंथी दलों के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे. इस तरह वहां सरकार पर फिर से सेना और आईएसआई का प्रभुत्व कायम रह सकता है.

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पाकिस्तान की प्रमुख सुरक्षा और विदेश नीति में सेना का हस्तक्षेप रहता है. इस बार चुनाव में सेना-आईएसआई पर गंभीर आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने इमरान खान को जिताने का पूरा प्लॉट रचा है और धांधली कराई है. हालांकि, पाकिस्तानी सेना इन आरोपों से साफ इंकार कर रही है.

तो अब जब एक कमजोर गठबंधन सरकार बनना तय है, तो पाकिस्तान की भारत के प्रति नीति पर वहां की सेना की मजबूत पकड़ बनी रह सकती है. पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते पहले से ही तल्ख हैं, ऐसे में भारत के लिए चिंता और बढ़ने वाली है.

हाल के वर्षों में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिनसे दोनों देशों के रिश्ते कड़वे हुए हैं. कश्मीर के उरी में सेना के एक बड़े बेस पर आतंकी हमले के जवाब में भारत ने सीमा पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक किया और भारतीय नौसेना के एक अधिकारी कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान में फांसी मिलने के विरोध में भारत ने उसे संयुक्त राष्ट्र की अदालत में घसीट लिया.

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पिछले साल जब नवाज शरीफ को सत्ता से बाहर किया गया, तो एक अमेरिकी अखबार ने अपने संपादकीय में कहा, 'उनके जैसे चुने हुए नेताओें में चाहे जो कमी हो, लेकिन उन्होंने  भारत के साथ रिश्ते सुधारने की समय-समय पर कोशिश की है और सत्ता पर सेना की पकड़ को कमजोर किया है.'

 पाकिस्तान में तमाम जो छोटे-छोटे इस्लामी धार्मिक दल पनपे हैं, वह असल में सेना द्वारा सशस्त्र इस्लामी और अन्य चरमपंथियों को मुख्यधारा की राजनीति में लाने की कोशिश लगती है. हालांकि सेना और ये तमाम दल एक-दूसरे से किसी तरह के संपर्क होने से इंकार करते हैं.

कश्मीर के प्रति अतिवादी रवैया बढ़ेगा!

ये पार्टियां पाकिस्तान में कट्टर इस्लामी कानून लागू करने की हिमायती तो हैं हीं, भारत और खासकर कश्मीर के प्रति उनका नजरिया भी अतिवादी और चरमपंथियों को समर्थन करने वाला है. ऐसे में इनका सत्ता में आने से कश्मीर और भारत पर हमले करने वाले आतंकियों को ताकत मिलेगी. यह भारत के लिए एक बड़ी चिंता है.

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