INS Karwar देश का तीसरा सबसे बड़ा नौसैनिक बेस है. हाल ही में यहां पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने दो पायर के उद्घाटन किए. एक पायर देश के एयरक्राफ्ट कैरियर INS Vikramaditya के लिए है. दूसरा पायर अन्य जंगी जहाजों के लिए. इसे प्रोजेक्ट सीबर्ड (Project Seabird) के फेज-2ए के तहत अपग्रेड किया जा रहा है.
जब यह फेज पूरा होगा, तब यह नौसैनिक बेस कुल मिलाकर तीन एयरक्राफ्टर कैरियर, 32 पनडुब्बियां और जंगी जहाज को डॉक कर सकेगा. इसके अलावा यहां पर 23 यार्डक्राफ्ट होंगे. नौसैनिक एयर स्टेशन, नौसैनिक डॉकयार्ड, 4 कवर्ड ड्राई बर्थ और 400 बेड का अस्पताल भी होगा.
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फेज-2ए में हो रहे अपग्रेडेशन की लागत करीब 3 बिलियन यूएस डॉलर्स यानी 24,816 करोड़ रुपए से ज्यादा है. उम्मीद ये है कि नौसेना इस काम को चार-पांच साल में पूरा कर लेगी. इसके बाद फेज-2बी शुरू होगा. जिसमें इस नौसैनिक बेस की क्षमता 50 जंगी जहाज और पनडुब्बियों के साथ अधिक एयरक्राफ्ट कैरियर डॉक करने की हो जाएगी.
हेलिकॉप्टर भी खड़ें होंगे, ड्रोन भी किए जाएंगे तैनात
फेज-2ए में यहां पर आठ ऑपरेशनल जेटी, दो रीफिट जेटी, चार कवर ड्राइवर्स और पूरी तरह से संचालित होने वाला डॉकयार्ड बनाए जा रहे हैं. ताकि अतिरिक्त युद्धपोतों को खड़ा किया जा सके. नौसैनिक एयर स्टेशन इसलिए बनाया जा रहा है ताकि यहां पर हेलिकॉप्टर्स, मानवरहित एरियल व्हीकल, ड्रोन्स और मीडियम ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट खड़े हो सके.
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1971 के युद्ध के बाद पड़ी थी इस बेस की जरूरत
इसके अलावा यहां पर सिविल टर्मिनल भी बनाया जा रहा है. आमतौर पर लोग इसे INS Kadamba भी कहते हैं. इसकी शुरूआत साल 2005 से हुई थी. 1971 में भारत और पाक के बीच हुई जंग के बाद नौसेना को महसूस हुआ कि मुंबई हार्बर में काफी ज्यादा भीड़ हो गई थी. इसलिए एक ऐसे बेस की जरूरत थी, जो अतिरिक्त लोड संभाल सके. युद्ध के बाद कई ऑप्शन पर विचार किया गया.
कई नाम सामने आए... पर फाइनल हुआ करवर
तिरुवनंतपुरम, कन्नूर और थुथूकुड़ी के नाम सामने आए. लेकिन 80 के दशक में यह सोचा गया कि बेस ऐसी जगह हो जहां पर समंदर के आसपास पहाड़ी इलाका हो. तब पश्चिमी घाट के पास अरब सागर के सामने कर्नाटक के करवर की खोज की गई. यह बेस मुंबई और गोवा से दक्षिण और कोच्चि से उत्तर में स्थित है.
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हमलों की रेंज से बाहर... सबसे व्यस्त समुद्री मार्ग सामने
इस बेस की खासियत ये है कि यह दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्ग के पास है. यहां से ही पारस की खाड़ी और पूर्वी एशिया के लिए जहाज आते-जाते रहते हैं. दूसरी बात ये कि यह पड़ोसी देशों के हमलावर फाइटर जेट की रेंज से दूर है. यहां समंदर की गहराई भी अच्छी है और काफी ज्यादा जमीन है, ताकि बेस को फैलाया जा सके.