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क्या 'भोला' को सच में थी 3D की जरूरत, या फिल्म की कमाई में सेंध लगा रही तकनीक?

अजय देवगन की लेटेस्ट फिल्म 'भोला' थिएटर्स में पहुंच चुकी है. 'भोला' एक धमाकेदार एक्शन फिल्म है और मेकर्स ने प्रमोशन के समय इस बात पर जोर दिया है कि इसे 3D में देखा जाए. फिल्म का 2D वर्जन भी थिएटर्स में है. क्या 'भोला' के कंटेंट के हिसाब से, 3D इसे सूट करता है और क्या फिल्म की कमाई पर इसका असर पड़ रहा है?

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'भोला' में अजय देवगन (क्रेडिट: यूट्यूब)
'भोला' में अजय देवगन (क्रेडिट: यूट्यूब)

बॉलीवुड स्टार अजय देवगन की लेटेस्ट फिल्म 'भोला' गुरुवार को थिएटर्स में रिलीज हो चुकी है. इस बार अजय सिर्फ फिल्म के स्टार ही नहीं हैं, बल्कि डायरेक्टर भी हैं. 'भोला', तमिल हिट फिल्म 'कैथी' का रीमेक है. दोनों की कहानी भले एक जैसी हो मगर हिंदी फिल्म का ट्रीटमेंट, ऑरिजिनल के मुकाबले काफी अलग है. 

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'भोला' का ट्रेलर आने के बाद ही ये साफ हो चुका था कि अजय ने फिल्म के एक्शन को शानदार बनाने पर काफी मेहनत की है. चाहे बाइक चेज का सीन हो या पचासों खूंखार दिखते गुंडों से अजय की फाइट, 'भोला' का एक्शन वाकई बॉलीवुड स्टैण्डर्ड के हिसाब से बहुत बड़ा है. और शायद इसी स्केल को स्क्रीन पर शानदार तरीके से पेश करने के लिए अजय ने फिल्म को 3D में बनाया है. हालांकि, 'भोला' का 2D वर्जन भी अवेलेबल है. मगर रिपोर्ट्स बता रही हैं कि 3D वर्जन में अजय की फिल्म ज्यादा देखी जा रही है.

डायरेक्टर अजय देवगन (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

सिनेमा एक विजुअल मीडियम है और 3D तकनीक विजुअल्स को यकीनन ज्यादा भव्य दिखाने में हेल्प करती है. ये एक ऐसी तकनीक है जिसके फायदे भले शानदार नजर आते हों मगर इसके अपने नुकसान भी हैं. 'भोला' को रिलीज हुए दो दिन हो चुके हैं और फिल्म ने पहले दो दिन में 18.60 करोड़ रुपये कमाए हैं. ये कलेक्शन बुरा तो नहीं है, लेकिन फिल्म के स्केल और रिलीज से पहले के माहौल के हिसाब से थोड़ा फीका जरूर है. क्या 3D में फिल्म बनाना, इसकी एक वजह हो सकती है? आइए बताते हैं उन वजहों के बारे में जो इस सवाल को जन्म देती हैं. 

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'भोला' को कितना सूट करता है 3D?
'भोला' की टाइमलाइन को अगर एक लाइन में समेटा जाए, तो ये सिर्फ एक रात की कहानी है. जहां हीरो 10 साल बाद जेल से छूटकर अपनी बेटी के पास जा रहा है, लेकिन एक टॉप-कॉप को बहुत बड़े केस में उसकी मदद की जरूरत है. रात के सीन ज्यादा होने का मतलब ये है कि फिल्म में ज्यादातर सीन्स रात के समय फिल्माए हुए होंगे और इनमें लाइट कम होगी. 

3D एक ऐसी तकनीक है, जिसमें इमेज की लाइट कम हो जाती है और वो थोड़ी डार्क दिखती हैं. ऊपर से इसमें कलर्स भी उतने क्लियर नहीं होते. एक तो पहले ही कहानी रात में घट रही है, ऊपर से 3D में होने से डार्कनेस और बढ़ जाती है. 'भोला' देखते हुए ये चीज थिएटर में महसूस की जा सकती है कि डार्कनेस को बैलेंस करने के लिए फिल्म में कलर्स थोड़े ज्यादा चटख रखे गए हैं. 

3D ऐसी तकनीक है जिससे विजुअल्स में डेप्थ बढ़ती है और किसी स्ट्रक्चर के साइज का ज्यादा बेहतर आइडिया मिलता है. यही वजह है कि फिल्मों में इसका सबसे बेहतर इस्तेमाल एक नई दुनिया क्रिएट करने या फिर एक्शन सीन्स को एलिवेट करने के लिए किया जाता है क्योंकि इससे विजुअल्स ज्यादा जीवंत लगते हैं.

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जैसे- मार्वल की फिल्मों में सुपरहीरोज के एक्शन 3D में ज्यादा मजेदार लगते हैं या फिर 'थॉर' का ग्रह एस्गार्ड 3D में अद्भुत लगता है. इसी तरह 'डॉक्टर स्ट्रेंज' अपने मैजिक से जब रियलिटी को तोड़ता-मरोड़ता है तो वो 3D में ज्यादा बेहतर लगता है. यही 3D इफेक्ट ऑस्कर जीतने वाली RRR में रियलिटी को ज्यादा खूबसूरत दिखाता है या एक्शन सीन्स को अद्भुत बनाता है.  

क्रेडिट: सोशल मीडिया

'भोला' के साथ समस्या ये है कि अगर फिल्म में सबसे पहले आए, बाइक्स वाले एक्शन सीक्वेंस को छोड़ दें तो 3D का ज्यादा लॉजिक समझ नहीं आता. इसके अलावा ज्यादातर एक्शन अजय के फाइट सीन्स में हैं, जहां हाइट से जंप या ऐसा कुछ नहीं है जो विजुअल लेवल पर 3D की डिमांड करता हो. फिल्म देखते हुए टाइम नोट करने पर आप पाएंगे कि एक बार तो पूरा 20 मिनट का पोर्शन ऐसा है जहां सिर्फ कहानी का ड्रामा डेवलप हो रहा है और कोई ऐसा सीन नहीं है जिसमें वाकई 3D की कोई जरूरत हो. 'भोला' में 10-15 मिनट के कई और पोर्शन ऐसे हैं जहां वाकई आंखों पर रंगीन चश्मा लगाकर सीन देखने का लॉजिक नहीं समझ आता. इसमें फिल्म के हीरो की लव स्टोरी वाला हिस्सा भी है.

दर्शक पर कितना अलग असर करते है 3D और 2D?
लगभग एक दशक पहले अमेरिका की यूटा यूनिवर्सिटी ने एक शोध किया था जिसमें लोगों को चार फिल्मों के सीन्स 3D और 2D दोनों में दिखाए गए. मेल ऑनलाइन से बात करते हुए इस स्टडी की ऑथर्स में से एक शीला क्रोवेल ने बताया, 'इमोशनल रिस्पॉन्स पैदा करने के मामले में 2D और 3D दोनों एक बराबर इफेक्टिव हैं, जिसका एक मतलब ये भी हो सकता है कि 3D फिल्म प्रोड्यूस करने में लगा खर्च एक नॉवेल्टी फैक्टर से ज्यादा कुछ नहीं क्रिएट करता.'

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शीला ने ये भी बताया था कि इस स्टडी में दर्शकों पर केवल एक फिल्म (द पोलर एक्सप्रेस) का असर 3D में ज्यादा नजर आया था और उसकी वजह ये थी कि 'ये सबसे बढ़िया क्वालिटी की 3D फिल्मों में से एक थी और इसमें स्पेशल इफेक्ट्स की संख्या और वैरायटी बहुत ज्यादा थी.' इस स्टडी का एक प्रैक्टिकल असर यूं समझा जा सकता है कि 'अवतार' या इसका सीक्वल 'अवतार 2' आपको 3D में ही ज्यादा बेहतर लगेगा क्योंकि वहां विजुअल्स में एक अनदेखा, अद्भुत संसार है जिसे आप फिल्म से डिस्कवर कर रहे हैं. इसलिए बहुत सारी फिल्में जो ऐसा नहीं कर रही हैं, उनके लिए 3D 'कुछ अलग करने' की नीयत से किया गया टेक्निकल प्रयास ज्यादा है, कहानी की डिमांड कम. इसलिए 'भोला' में शायद 3D की उतनी जरूरत थी भी नहीं. 

क्रेडिट: सोशल मीडिया

दुनिया भर में 3D का हाल 
हर साल अमेरिकन मोशन पिक्चर्स एसोसिएशन की एक रिपोर्ट आती है जिसका नाम है THEME (Theatrical and Home Entertainment Market Environment). डिटेल एनालिसिस वाली इस रिपोर्ट का 2021 एडिशन कहता है कि 2010 के बाद से हर साल सिनेमा के 3D वर्जन का बॉक्स ऑफिस शेयर घट रहा है. कोविड 19 महामारी से पहले, 2019 में ग्लोबल बॉक्स ऑफिस पर 3D का हिस्सा सिर्फ 15 प्रतिशत ही बचा था. और कोविड वाले साल, 2020 में तो ग्लोबल बॉक्स ऑफिस कलेक्शन में 3D का शेयर घटकर सिर्फ 6% रह गया. जबकि, 2010 के बाद से 3D स्क्रीन्स और बॉक्स ऑफिस कलेक्शन, दोनों के काफी बढ़े हैं. 

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'भोला' को 3D के साथ 2D में भी रिलीज किया गया है. लेकिन फिल्म के पहले टीजर से लेकर रिलीज के बाद शेयर किए जा रहे प्रमोशनल मैटेरियल में भी इस बात पर ज्यादा जोर है कि 'भोला' 3D में देखना बेहतर है. इसमें दिक्कत ये है कि जब फिल्म का प्रचार 3D के तौर पर किया जाता है, तो उसकी 2D ऑडियंस कम होती है. अगर फिल्म वाकई में 3D में देखने लायक है, तो इसके 2D वर्जन की कमाई फीकी पड़ती है. और अगर फिल्म 3D में कोई अद्भुत चीज नहीं पेश कर रही, तो इस वर्जन में भी कमाई गिरने लगती है. 

बॉक्स ऑफिस कलेक्शन, 3D का असर और 'भोला' 
सैकनिल्क का डाटा कहता है कि बड़ा बॉक्स ऑफिस कलेक्शन देने वाले सेंटर्स में अजय की फिल्म के, 2D से ज्यादा शोज 3D में रखे गए हैं. जाहिर है कि कलेक्शन भी 3D वर्जन से ही ज्यादा हो रहा है. मगर 3D के टिकट 2D से ज्यादा महंगे होते हैं और ये महानगरों-बड़े शहरों के मल्टीप्लेक्स थिएटर्स में ज्यादा चलने वाला फॉर्मेट है. जबकि बॉक्स ऑफिस का ट्रेंड साफ इशारा कर रहा है कि कोविड वाले लॉकडाउन के बाद से लोगों के लिए फिल्म के टिकट का दाम ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है. दिल्ली के एक थिएटर में जहां 'भोला' के 2D वर्जन का टिकट 260 रुपये का है, वहीं 3D में टिकट का दाम 340 रुपये है. टैक्स जोड़ने के बाद दोनों में ऑलमोस्ट 100 रुपये का अंतर आ जाएगा. 

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कहीं न कहीं 'भोला' का रीमेक होना भी इसके खिलाफ जा रहा है और जब 3D का महंगा टिकट लेकर एक रीमेक देखने जाना शायद लोगों को उतना अच्छा आइडिया नहीं लग रहा. अजय एक मास एक्टर हैं और उनकी फिल्मों को जनता भीड़ लगाकर थिएटर्स में सेलिब्रेट करती है. 'सिंघम' वगैरह को तो अब कई साला बीत चुके हैं, लेकिन अजय की पिछली रिलीज 'दृश्यम 2' को भी मास सेंटर्स से बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिला था.

ऐसे में हर अनुमान यही कहता है कि 'भोला' को अगर नॉर्मल 2D वर्जन में बड़ी रिलीज मिलती तो शोज की ऑक्यूपेंसी ज्यादा बढ़ती. ऊपर से राम नवमी के अवसर पर फिल्म की रिलीज देखते हुए मेकर्स कुछ एक्स्ट्रा डिस्काउंट या अनोखा ऑफर भी दे सकते थे. जैसा कि पिछली कई फिल्मों के साथ किया गया. लेकिन 3D में बनने से फिल्म महंगी हो चुकी है और मेकर्स शायद डिस्काउंट जैसी चीज इतनी जल्दी न ऑफर करें.

फिलहाल, तो उम्मीद यही की जा रही है कि गुरुवार-शुक्रवार के मुकाबले, शनिवार को 'भोला' की कमाई बढ़ेगी. लेकिन ये कितना बढ़ेगी और फिल्म पहले वीकेंड में कितना कलेक्शन करेगी, ये 3D में फिल्म लाने वाली चर्चा को और मजबूत करेगा. 

 

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