scorecardresearch
 

क्या है अमेरिका, मिडिल ईस्ट और इजरायल का लव-हेट ट्राएंगल, क्यों US इस्लामिक देशों में अपनी सेनाएं भेजता रहा?

इजरायल और हमास की जंग का असर मिडिल ईस्ट से लेकर अमेरिका तक पहुंच चुका है. हमास के सपोर्ट में हूती मिलिटेंट्स ने लाल सागर में लड़ाई छेड़ दी. इनका असल टारगेट अमेरिका है. हालात ये हैं कि हूतियों के कंट्रोल से चलते यमन में अमेरिका के खिलाफ प्रोटेस्ट होने लगे. वे यूएस को आतंकवाद की जड़ बता रहे हैं. जानिए, क्यों मिडिल ईस्ट अमेरिका से उखड़ा रहता है.

Advertisement
X
अमेरिका के खिलाफ नारे लिखा हुआ पोस्टर (Photo- Reuters)
अमेरिका के खिलाफ नारे लिखा हुआ पोस्टर (Photo- Reuters)

सबसे पहले समझते हैं, कौन हैं हूती विद्रोही, जो अमेरिका को टैररिस्ट देश बता रहा है. ये अल्पसंख्यक शिया जैदी समुदाय का एक हथियारबंद समूह है, जो यमन में रहता है. इस चरमपंथी गुट का मकसद है दुनिया से अमेरिका और इजरायल समेत पश्चिमी असर को खत्म करना. नब्बे के दशक में यमन के तत्कालीन प्रेसिडेंट अब्दुल्लाह सालेह को सत्ता से हटाने के लिए लोगों ने एक मुहिम शुरू की. इसकी शुरुआत हुसैन अल हूती ने की. उन्हीं के नाम पर संगठन का नाम पड़ा. इसके लड़ाके हर उस गुट को सपोर्ट करते हैं जोअमेरिका और इजरायल के खिलाफ हों. 

Advertisement

लगभग पूरे मिडिल ईस्ट में एंटी-अमेरिकी माहौल

मध्य-पूर्व में बहरीन, साइप्रस, मिस्र, ईरान, इराक, इजरायल, जॉर्डन, कुवैत, लेबनान, उत्तरी साइप्रस, ओमान, फिलिस्‍तीन, कतर, सऊदी अरब, सीरिया, तुर्की, यूएई, और यमन शामिल हैं. इनमें से अधिकतर देश अमेरिका से इतना नाराज रहते हैं कि उसके खिलाफ जो भी बोले, उसके साथ हो जाते हैं.

यह भी पढ़ें: यूपी: Jaunpur के चंद्रभूषण यादव America में बनवा रहें भव्य Ram Mandir और रामायण म्यूजियम, भूमि पूजन के लिए CM योगी को किया आमंत्रित

इजरायल इससे अलग है, जिसे अमेरिका काफी सपोर्ट करता रहा. तुर्की भी पिक्चर से अलग है. ये NATO का सदस्य है और अमेरिका से ठीक-ठाक रिश्ते रहे. 

58 हजार लोगों ने जाहिर किया गुस्सा

मिडिल ईस्ट के थिंक टैंक अरब बैरोमीटर ने प्यू ग्लोबल एटिट्यूट प्रोजेक्ट के साथ मिलकर एक सर्वे किया. इसमें मिडिल ईस्ट और नॉर्थ अफ्रीका में रह रहे 58 हजार से ज्यादा अरब लोगों से बात की गई. इसमें पता लगा कि मिडिल ईस्टर्न न केवल अमेरिकी पॉलिसीज से नाराज रहते हैं, बल्कि वे अमेरिकियों को भी अच्छी नजर से नहीं देखते. वे उनसे मिलते या किसी भी तरह का संपर्क करते हुए बेहद सावधान रहते हैं. ये तब होता है, जब आपका पुराना अनुभव किसी के साथ खराब हो. 

Advertisement

america and middle east conflict history amid israel and hamas war in palestine photo Getty Images

निजी मामलों में दखल का आरोप

मिडिल ईस्ट का मानना है कि अमेरिका अपनी ताकत के बूते बार-बार उनके अंदरुनी मामलों में दखल देता रहा. मिसाल के तौर पर ईरान को लें तो पहले वहां एंटी-अमेरिकन सेंटिमेंट्स नहीं थे. दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद दोनों के बीच तनाव की शुरुआत तेल को लेकर हुई. ईरान में भारी मात्रा में कच्चे तेल का भंडार मिला. इसे पाने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन ने ईरान में अपनी पसंद की सरकार लानी चाही. जबकि ईरानी लोगों की अलग पसंद थी. 

50 के दशक में अमेरिका ने वहां तख्तापलट कर दिया ताकि उसके फेवर वाली सरकार आ जाए. इस बीच ईरान में बगावत हो गई. एक तरफ अमेरिका की चुनी सत्ता थी, दूसरी तरफ ईरानी जनता की पसंद की सरकार. दोनों के बीच लड़ाई होने लगी. लेकिन गृहयुद्ध की तरह दिखाई देने वाली ये लड़ाई ईरान और अमेरिका की जंग थी.

लड़ाई में ईरान भारी पड़ा और उसके बाद ही वहां इस्लामिक गणतंत्र आ गया. चरमपंथी सरकार के बाद इस देश के अमेरिका से रिश्ते लगातार खराब होते गए. 

america and middle east conflict history amid israel and hamas war in palestine photo Getty Images

सीरिया के साथ भी ऐसा ही मामला

वहां साल 1949 में राजनैतिक उथलपुथल के बाद ऐसा लीडर आया, जिसने सारी पॉलिसीज अमेरिका के पक्ष में बनाई. यहां तक कि इजरायल के साथ लड़ाई में पैर पीछे खींच लिए. आम लोग इसके विरोध में थे. इसके बाद से ही सीरिया में भी एंटी-अमेरिकी इमोशन्स सुगबुगाने लगे. 

Advertisement

इराक के साथ जंग

इराक पर भी अमेरिका ने हमला कर दिया क्योंकि उसे शक था कि देश के पास भारी मा्त्रा में विनाशकारी हथियार हैं. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने दावा किया था कि इराक लगातार हथियार बना रहा है. उसके साथ-साथ ईरान और नॉर्थ कोरिया को भी निशाने पर लिया था. मार्च 2003 को अमेरिका समेत साथी देशों ने इराक पर अटैक करके सद्दाम हुसैन सरकार को गिरा दिया.

तीन महीने चली लड़ाई में इराक में भारी तबाही मची. इसके बाद वहां भी एंटी-अमेरिकी सेंटिमेंट्स बनने लगे. 

america and middle east conflict history amid israel and hamas war in palestine photo Getty Images

गुस्से की बड़ी वजह इजरायल भी

सबसे पहले अमेरिकी सरकार ने ही इजरायल को आजाद देश माना. इसके बाद से वो लगातार उसे सपोर्ट कर रहा है. वहीं अरब देश इजरायल के खिलाफ हैं. वे आजाद फिलिस्तीन की मांग करते रहे हैं, जिसमें येरूशलम भी शामिल हो. कुल मिलाकर अमेरिका की विदेश नीति ने उसे मिडिल ईस्ट में खलनायक की तरह बना रखा है. 

अमेरिका को मिडिल ईस्ट से क्या सरोकार है

दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद अमेरिका का बड़ा ध्यान इस बात पर रहने लगा कि रूस दुनिया के किसी भी हिस्से में ज्यादा ताकत न पा ले. उसने अपनी फॉरेन पॉलिसी ऐसी बनाई कि उसका दखल हर देश में कम-ज्यादा हो सके. वो देशों के गार्जियन की तरह काम करने लगा. वक्त-जरूरत में अपनी सेना या मदद देने लगा. मिडिल ईस्ट में इसके अलावा उसका तेल का हित भी सध रहा था. यही वजह है कि लगातार इस क्षेत्र में एक्टिव रहा. 

Advertisement

फिलहाल मिडिल ईस्ट के लोगों में भले ही अमेरिका को लेकर अच्छी सोच हो, न हो, लेकिन दोनों के डिप्लोमेटिक रिश्ते जरूर हैं. ईरान और सीरिया के अलावा बाकी सारे देशों से उसकी बातचीत होती है.

Live TV

Advertisement
Advertisement