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मुस्लिमों का वो समुदाय, जिनके लिए वक्फ की जगह होगा औकाफ बोर्ड, क्या है इसकी वजह?

प्रस्तावित वक्फ बिल में कई संशोधनों की बात है, जिनमें से एक है- बोहरा और आगा खान मुसलमानों के लिए अलग बोर्ड बनाना. महाराष्ट्र में आगा खानियों ने पहले भी वक्फ बोर्ड की शिकायत करते हुए कहा था कि वे संपत्तियों पर मनमानी करते हैं. जानें, कौन हैं आगा खानी और बोहरा समुदाय.

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वक्फ बोर्ड बिल में वंचित मुस्लिमों की बात की जा रही है.
वक्फ बोर्ड बिल में वंचित मुस्लिमों की बात की जा रही है.

लोकसभा में पेश वक्फ बोर्ड बिल अटक गया गया है. अब यह संयुक्त संसद समिति (जेपीसी) को भेजा जाएगा. बिल पर विपक्षी दल आपत्ति जता रहे हैं, वहीं केंद्र का कहना है कि इससे अल्पसंख्यकों का ही हित होगा. बिल में एक खास बात ये है कि बोहरा और आगाखानी मुस्लिमों के लिए वक्फ की बजाए एक अलग बोर्ड बनेगा. इसे औकाफ बोर्ड कहा जा रहा है. 

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क्यों बन सकता है अलग बोर्ड?

केंद्र ने बुधवार को वक्फ बोर्ड एक्ट में बदलाव के लिए संशोधन विधेयक पेश किया, जिसपर विपक्ष ने काफी हंगामा किया. सेंटर का कहना है कि इस बिल के आने से आम मुस्लिमों को, खासकर वंचितों को इंसाफ मिल सकेगा. साथ ही वक्फ बोर्ड के कामों में पारदर्शिता रह सकेगी. विधेयक में कई खास बातें हैं, जैसे महिलाओं को ज्यादा जगह देना और बोहरा और आगा खानियों के लिए औकाफ बोर्ड बनाना. औकाफ वक्फ का ही पर्यायवाची है लेकिन इसे विस्तृत अर्थों में लिया जाता है. 

आगा खानियों ने लगाया था भेदभाव का आरोप

इन मुस्लिम समुदायों की तरफ से वक्फ बोर्ड की मनमर्जी और संपत्ति हड़पने जैसे आरोप लग चुके हैं. आंध्रप्रदेश वक्फ बोर्ड ने साल 2023 में आगा खान शिया इमामी काउंसिल ने आरोप लगाया था कि महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड आगा खानी मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों को जबरन लेना चाहता है. असल में आगा खानियों के मुंबई में पांच ट्रस्टों को वक्फ बोर्ड ने अपनी प्रॉपर्टी बता दिया था. काउंसिल ने इस पर सेंटर से हस्तक्षेप की मांग की थी. केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय ने इस शिकायत पर संज्ञान भी लिया था लेकिन मामले में आगे क्या हुआ, इसकी जानकारी कहीं नहीं दिखती. 

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auqaf board waqf board for bohra and aghakhani muslim community

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने बिल पेश करते हुए कहा था कि विपक्ष कुछ ही मुस्लिमों की बात कर रहा है, जबकि केंद्र बिल लाकर मुस्लिमों में पिछड़े समुदाय को भी इंसाफ देना चाहता है. यहीं पर बोहरा, आगा खानी और अहमदिया का जिक्र आता है, जिनके लिए अलग बोर्ड की बात हो रही है ताकि उनकी संपत्ति पर उन्हीं का अधिकार रहे. 

कौन होते हैं बोहरा?

बोहरा शब्द गुजराती में वोहरू से आया, जिसका मतलब है व्यापार. व्यापार- व्यावसाय से जुड़ा ये समुदाय भारत में गुजरात और मुंबई के अलावा मध्यप्रदेश, कोलकाता, राजस्थान और चेन्नई में फैला हुआ है. ये शिया और सुन्नी दोनों ही हो सकते हैं. सुन्नी बोहरा हनफी इस्लामिक कानून को मानने वाले हैं, जबकि दाऊदी बोहरा शियाओं के ज्यादा करीब हैं. भारत के अलावा ये तबका खाड़ी देश और पाकिस्तान में भी है, यहां भी वे कारोबारी हैं. 

अलग दिखता है पहनावा

बोहरा समुदाय अपनी पहचान प्रोग्रेसिव के तौर पर करता है. बोहरा समुदाय के पुरुष और महिलाएं के कई तौर-तरीकों से देश के बाकी मुसलमानों से खुद को अलग मानते हैं. ये फर्क पहनावे में भी झलकता है. दाऊदी बोहरा महिलाओं का पारंपरिक परिधान रिदा है जो इन्हें देश के बाकी मुस्लिमों से अलग दिखाता है. ये महिला के चेहरे को पूरी तरह नहीं ढंकता बल्कि इसमें एक छोटा पल्ला होता है, जिसे परदी कहते हैं. ये एक तरफ मुड़ा हुआ होता है ताकि खुद ही महिला का चेहरा ज्यादा न दिखे. बता दें कि रिदा काले रंग के अलावा बाकी किसी भी रंग का हो सकता है. 

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पुरुष तीन हिस्सों वाली पोशाक पहनते हैं, जिसमें अंगरखा की तरह का कुर्ता, ओवरकोट की तरह दिखने वाला साया और पैंट को इजार कहते हैं. पुरुष गोल्डन या सफेद टोपी भी पहनते हैं, जिसपर बारीक कढ़ाई रहती है. 

auqaf board waqf board for bohra and aghakhani muslim community photo Getty Images
आगाखानी और बोहरा मुस्लिमों के लिए अलग से कोई वक्फ बोर्ड नहीं. प्रतीकात्मक फोटो

कारोबारी होने की वजह से बोहरा वैसे तो बाकियों से खूब मिलते हैं, लेकिन निजी तौर पर वे एकदम अलग-थलग रहते हैं. समुदाय में बाहर शादियां अब भी नहीं के बराबर होती हैं. साथ ही बोहराओं की मस्जिदों में आमतौर पर दूसरे लोग प्रवेश नहीं कर सकते. 

आगा खानी मुस्लिमों में क्या है अलग?

इस्लाइली या आगा खानी मुस्लिम भारत समेत दुनिया के 35 देशों में बसी हुई है. दुनियाभर में इस मुस्लिम समुदाय के लोगों की आबादी डेढ़ करोड़ के करीब है. आगाखानी लगभग हजार साल पहले अफगानिस्तान के खैबर प्रांत से सिंध आए और भारत में बस गए.

इनकी आधिकारिक वेबसाइट द इस्लाइली में इस बारे में काफी बातें मिलती हैं. ये अकेले शिया मुस्लिम हैं, जो जीवित इमाम को मानते हैं. फिलहाल आगा खान इस मुस्लिम समुदाय के इमाम हैं. इस समुदाय की एक बात काफी अलग है कि ये सार्वजनिक तौर पर नमाज अदा करते कम ही दिखते हैं. 

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धार्मिक तरीकों में उतनी कट्टरता नहीं

इनके कई और भी धार्मिक तौर-तरीके बाकियों से थोड़े अलग हैं. जैसे जरूरत पड़ने पर जैसे नमाज के लिए जगह की कमी या किसी और मौके पर महिलाएं भी पुरुषों के साथ नमाज पढ़ सकती हैं. ये समुदाय पूरे महीने रोजे का उतनी कट्टरता से पालन नहीं करता. इस्माइली मुस्लिमों के लिए हज पर जाना वैकल्पिक है. ये पूरी तरह से उनकी मर्जी पर होता है. 

auqaf board waqf board for bohra and aghakhani muslim community  photo Pixabay
धार्मिक तौर-तरीकों को लेकर कई मुस्लिम समुदाय अलगाव झेलते रहे. प्रतीकात्मक फोटो

इनके अलावा अहमदिया मुस्लिमों को भी वक्फ में अलग से जगह दी जा सकती है. मुसलमानों के इस तबके पर काफी विवाद रहा. यहां तक कि आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने अहमदिया को गैर-मुस्लिम बताने के लिए प्रस्ताव तक ला दिया था, जिसपर हाई कोर्ट ने रोक लगाई थी. 

क्या है वजह?

अहमदिया सुन्नी मुस्लिमों की सब-कैटेगरी है, जो खुद को मुसलमान मानते हैं, लेकिन मोहम्मद साहब को आखिरी पैगंबर नहीं मानते. वे यकीन करते हैं कि उनके गुरु यानी मिर्जा गुलाम अहमद, मोहम्मद के बाद नबी (दूत या मैसेंजर) हुए थे. वहीं पूरी दुनिया में इस्लाम को मानने वाले मोहम्मद को ही आखिरी पैगंबर मानते रहे. यही बात अहमदिया मुस्लिमों को बाकियों से अलग बनाती है. 

अहमदिया के साथ पाकिस्तान और सऊदी में भी फर्क

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पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिमों को नॉन-मुस्लिम का दर्जा दिया जा चुका और उनके साथ हिंसा आम है. उनके कब्रिस्तान से लेकर मस्जिदें भी अलग की जा चुकी हैं. उनका हज पर जाना भी आधिकारिक तौर पर बैन है, जो खुद सऊदी ने लगा रखा है. हमारे यहां अहमदियों से इस दर्जे की नफरत तो नहीं लेकिन भेदभाव जरूर दिखता है. जैसे आंध्र प्रदेश वक्फ का बार-बार इन्हें गैर-मुस्लिम करार देना. ऐसे में संपत्ति का लाभ भी प्रभावित हो रहा था. यही वजह है कि नए मसौदे में इन्हें भी वक्फ बोर्ड में अलग जगह देने की बात हो रही है. 

क्या है औकाफ बोर्ड, जिसका जिक्र हो रहा?

वक्फ के साथ अलग से औकाफ बोर्ड की चर्चा है, जिसमें मुस्लिमों के इन समुदायों को रखा जाएगा. औकाफ भी अरबी शब्द है जिसका अर्थ अल्लाह के नाम पर दान ही है. मूल तौर पर वक्फ और औकाफ एक ही हैं. इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि फिलहाल सुन्नी और शिया वक्फ बोर्ड हैं, लेकिन सेंटर ने बोहरा और आगाखानी वक्फ की भी बात की.

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