अब शादी और संतान गोद लेने के कानूनी अधिकार की मांग को लेकर ट्रांसजेंडर काफी समय से चर्चा में रहे. अब इसकी लिस्ट थोड़ी और लंबी हो सकती है. शादी या प्रेम संबंध में रहती ट्रांस महिला अगर किसी वजह से प्रताड़ित हो तो वो घरेलू हिंसा कानून का सहारा भी ले सकती है. फिलहाल ये पक्का नहीं हुआ, लेकिन अदालत इसपर जल्द ही कोई एक्शन ले सकती है.
मामले की शुरुआत बॉम्बे हाई कोर्ट में आए एक केस से हुई. मामला एक पुरुष और ट्रांस महिला के संबंधों का था. इसमें प्रताड़ित महिला ने कोर्ट की मदद ली, और कोर्ट ने भी उसका साथ देते हुए कहा कि सेक्स चेंज करवाकर महिला बन चुका पुरुष भी प्रताड़ित होने पर घरेलू हिंसा कानून का सहारा ले सकता है.
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि महिला शब्द अब महिलाओं तक ही सीमित नहीं. इसमें ट्रांसजेंडर भी शामिल हैं, जिन्होंने अपनी पहचान के मुताबिक सेक्स चेंज करवा लिया हो. मामला पहले लोअर कोर्ट में भी जा चुका था. वहां भी जज ने ट्रांस महिला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए पति से उसे गुजारा भत्ता देने को कहा था.
16 मार्च को आए इस फैसले के खिलाफ पति सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. अब जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ इसपर विचार करेगी. अगर फैसला ट्रांस महिला के पक्ष में जाए, तो बाकी महिलाओं की तरह उसे भी घरेलू हिंसा में राहत मिल सकती है.
कौन है पीड़िता
डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005 के सेक्शन 2(a) के मुताबिक, कोई भी महिला जो किसी पुरुष के साथ घरेलू संबंधों में है और इस दौरान किसी भी तरह की प्रताड़ना झेलती है, वो पीड़िता मानी जाएगी.
इसमें घरेलू संबंध सिर्फ पति और पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका के बीच रिश्ता नहीं है. इसके अलावा जॉइंट परिवार में रहने वाले पुरुष-स्त्री भी इसी श्रेणी में आएंगे. इसके तहत गृहस्थी में रहने वाली कोई भी महिला घर के दूसरे सदस्यों पर घरेलू हिंसा का मुकदमा दायर कर सकती है. मसलन, अगर कोई मां परेशान की जाएगी तो वो भी अपने बेटे-बहू पर घरेलू हिंसा का आरोप लगा सकती है. यहां तक कि बेटी भी अपने माता-पिता से इस कानून पर बात कर सकती है.
ट्रांस महिला के मामले में उसके पति का तर्क था कि महिला ने ट्रांसजेंडर पर्सन्स एक्ट 2019 के तहत कोई सर्टिफिकेट नहीं दिया है. इसलिए उसे महिला न माना जाए, बल्कि सेक्स चेंज से पहले के जेंडर यानी पुरुष की तरह ही आइडेंटिफाई किया जाए. एक पुरुष, दूसरे पुरुष पर घरेलू हिंसा कानून के तहत मुकदमा दर्ज नहीं करा सकता.
ट्रांसजेंडर एक्ट उन सभी लोगों को सुरक्षा देता है, जो अपने जेंडर को अपने मौजूदा शरीर से अलग पहचानते हैं. कोर्ट मानता है कि उन्हें उनकी सोच के मुताबिक ही ट्रीट किया जाना चाहिए. यानी अगर कोई पुरुष खुद को स्त्री माने जाने पर जोर देता हो तो यही उसकी जेंडर आइडेंटिटी है. इस एक्ट का सेक्शन 5 लोगों को ये छूट देता है कि जिला जज को आवेदन देकर एक सर्टिफिकेट लें. इससे वे आधिकारिक तौर पर ट्रांसजेंडर कहलाएंगे.
अगर कोई ट्रांस सेक्स चेंज सर्जरी कराता है तो भी उसे डॉक्टर के सर्टिफिकेट समेत जिला मजिस्ट्रेट से मिलना होगा ताकि वो अपने बाकी कागजों पर भी अपनी पहचान बदलवा सके.