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क्या गाजा पट्टी को खरीद सकते हैं ट्रंप, क्यों उनके विवादित बयान के आगे बेबस दिख रहीं इंटरनेशनल संस्थाएं?

डोनाल्ड ट्रंप ने पनामा और ग्रीनलैंड के बाद अब विवादित इलाके गाजा पट्टी पर भी कब्जे की बात कर डाली. अमेरिकी राष्ट्रपति इस पर कंट्रोल करके खंडहर हो चुके क्षेत्र में विकास की बातें कर रहे हैं. ये अलग बात है कि ट्रंप का प्लान फिलिस्तीनी आबादी के साथ-साथ अरब देशों की भी चिंता बढ़ा चुका.

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डोनाल्ड ट्रंप गाजा पट्टी पर लगातार बयान दे रहे हैं. (Photo- Getty Images)
डोनाल्ड ट्रंप गाजा पट्टी पर लगातार बयान दे रहे हैं. (Photo- Getty Images)

डोनाल्ड ट्रंप को वाइट हाउस पहुंचे महीनाभर ही हुआ, लेकिन दुनियाभर में उनकी वजह से हलचल मची हुई है. कभी वे कनाडा को अपना अगला राज्य बनाने की कहते हैं, तो कभी ग्रीनलैंड को ऐसा प्रस्ताव देते हैं. हाल में ट्रंप ने गाजा पट्टी के बारे में कुछ ऐसा कह दिया, जिससे पहले से ही युद्ध-प्रभावित इलाके में डर पसर चुका है. राष्ट्रपति गाजा को रीसैटल करना चाहते हैं.

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जानिए, क्या है इसका मतलब और क्यों ट्रंप का प्लान एक साथ कई देशों को आशंकित कर रहा है. 

इजरायल और हमास के बीच फिलहाल सीजफायर लागू है. साल 2023 के अक्टूबर में हमास के हमले के साथ शुरू जंग का सबसे ज्यादा असर गाजा पट्टी पर पड़ा. हजारों मौतों के अलावा लाखों लोग अस्थाई रूप से विस्थापित हो गए. हाल-हाल में इजरायल और हमास के बीच अस्थाई शांति आई, जिसका क्रेडिट डोनाल्ड ट्रंप को दिया जा रहा है, जिन्होंने हमास को धमकाया था. हालांकि शायद ये सिक्के का एक ही पहलू रहा हो.

कुछ रोज पहले ही ट्रंप ने गाजा पट्टी की तुलना रियल एस्टेट से करते हुए कह दिया कि वे इस पर कब्जा करके एक बढ़िया प्रॉपर्टी बनाएंगे. इसके लिए गाजावासियों को इलाका छोड़ना पड़ सकता है. उनके इस बयान के बाद से न केवल फिलिस्तीनियों, बल्कि पास-पड़ोस के देशों में भी खलबली मची हुई है. उन्हें डर है कि गाजा पट्टी से विस्थापित लोग कहीं उनके यहां बसेरा न कर लें.

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पहले भी दे चुके ये प्रस्ताव 

ट्रंप ने गाजा पट्टी को खरीदने का इरादा साल 2019 में भी जताया था. अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने कहा था कि फिलिस्तीनी लीडरशिप ठीक से काम नहीं कर रही, लिहाजा वे इस क्षेत्र को किसी को बेच दें तो अच्छा हो. ये बयान तब आया था, जब ट्रंप मिडिल ईस्ट में इजरायल की कई देशों से दोस्तियां करा रहे थे. इस सोच का काफी विरोध हुआ था. दिलचस्प बात ये है कि विरोधियों में गाजावासी कम और पड़ोसी मुल्क ज्यादा थे. 

donald trump proposal to take control over gaza strip what will happen to palestinians photo AFP

अभी किस हाल में है गाजा पट्टी

जंग शुरू के बाद से अब तक गाजा में 48200 से ज्यादा लोग मारे जा चुके. ज्यादातर गाजावासी एक से ज्यादा बार विस्थापित हो चुके. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इलाके की 70 फीसदी से ज्यादा इमारतें खंडहर हो चुकीं. हेल्थकेयर से लेकर बेसिक जरूरत जैसे साफ पानी तक का बंदोबस्त नहीं हो पा रहा. इसी खस्ताहाल और विवादित क्षेत्र को ट्रंप रियल एस्टेट की तरह विकसित करना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने गाजा पट्टी को खरीदने तक की बात कर डाली. लेकिन फिलहाल ये इलाका इंटरनेशनल स्तर पर विवादित है, जिसकी खरीदी मुमकिन नहीं. अगर खरीदी हो भी जाए तो लगभग जर्जर हो चुके गाजा के इस प्रपोज्ड रीसैटलमेंट के लिए वहां रहने वालों को जगह खाली छोड़नी होगी. 

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ट्रंप ने इसकी भी योजना बना रखी थी. उन्होंने जॉर्डन और इजिप्ट को प्रस्ताव दिया कि वे गाजावासियों को अपने यहां रख लें, बदले में उन्हें सालाना कई बिलियन डॉलर मिलेंगे. हालांकि दोनों ही देशों ने ट्रंप का प्रस्ताव खारिज कर दिया. 

अब सवाल ये है कि गाजा के आसपास बसे सारे देश फिलिस्तीन को अलग देश की मान्यता मिले, इसके लिए लड़ाई तो करते हैं, लेकिन वे फिलिस्तीनियों को अपनाने को तैयार नहीं. कई बार जंग के दौरान गाजा और वेस्ट बैंक के लोगों ने अरब देशों से शरण मांगी लेकिन हर बार उन्हें रिजेक्शन मिला. इसकी क्या वजह है?

एक समस्या है कागजों की कमी 

मदद का दावा करते अरब देशों की अक्सर यही दलील रहती है. गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक और येरूशलम में रह रहे फिलिस्तीनी इजरायल के स्थाई नागरिक माने जाते हैं. उनके पास इजरायली कागजात होते हैं. अगर वे उन्हें छोड़कर दूसरी नागरिकता अपने फिलिस्तीनी होने के आधार पर चाहें, तो पेलेस्टीनियन अथॉरिटी उन्हें कुछ डॉक्युमेंट्स देती है. ये कागज सिर्फ ट्रैवल के ही काम आ सकते हैं. इनके आधार पर यह साबित नहीं हो सकता कि वे फिलिस्तीनी हैं. यानी इजरायली सिटिजनशिप छोड़ने के बाद वे कहीं के नागरिक नहीं रह जाते. ऐसे में अरब देश किसी हाल में उन्हें नहीं स्वीकारते.

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donald trump proposal to take control over gaza strip what will happen to palestinians photo Unsplash

दूर से सगा बनना चाहता है अरब 

फिलिस्तीनियों को नागरिकता न देने के पीछे ग्लोबल पॉलिटिक्स भी काम करती है. इजरायल भले ही छोटा लेकिन ताकतवर देश है. उसके पास मॉर्डन हथियार हैं. साथ ही वो अमेरिका, यूरोप और भारत जैसी ताकतों का अच्छा दोस्त है. फिलहाल तेल पर निर्भर कई अरब देश टूरिज्म पर भी फोकस कर रहे हैं. ऐसे में अगर वे इजरायल के खुलेआम खिलाफ गए तो उन देशों के साथ केमिस्ट्री गड़बड़ा सकती है, जहां से सैलानी आते हैं.

उनके अपने यहां आ सकती है अस्थिरता 

अरब देश भले ही काफी अमीर हैं, लेकिन उनके अपने दायरे हैं. फिलहाल कई अरब देश फिलिस्तीन से आए लोगों को रिफ्यूजी स्टेटस दे रहे हैं. उनके लिए काम और कॉलोनियों का बंदोबस्त भी है, लेकिन अगर सारे के सारे फिलिस्तीनी भागकर अरब में रहने लगें तो डेमोग्राफी पर असर होगा. भले ही यूनाइटेड नेशन्स इसमें पैसों की मदद करे, लेकिन जुर्म और अस्थिरता बढ़ सकती है. मूल निवासियों में भी गुस्सा भर सकता है. यही वजह है कि अरब ने उनसे दूरी बना रखी है.

जॉर्डन भी बरत रहा सावधानी

इजरायल का एक हिस्सा पश्चिम में जॉर्डन से सटा है, जो वेस्ट बैंक कहलाता है. यह भी फिलिस्तीनियों का इलाका है. वेस्ट बैंक से भागकर काफी सारे लोग एक समय पर जॉर्डन पहुंचे और वहां के नागरिक भी बन गए. देखा जाए तो अरब देशों में जॉर्डन अकेला है, जिसने फिलिस्तीन के लोगों को स्थाई नागरिकता दी. हालांकि अस्सी के दशक के आखिर में उसने भी ये बंद कर दिया.

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दूसरा कार्यकाल संभाल रहे ट्रंप के बयानों के बाद इंटरनेशनल संस्थाओं जैसे यूएन और आईसीसी ने नाराजगी जरूर जताई, लेकिन ये बेहद हल्के स्तर पर थी. जबकि गाजा पट्टी को खरीदने का इरादा ही अंतरराष्ट्रीय कानूनों के खिलाफ है. इस दौरान फोर्स्ड पलायन भी होगा, जो युद्ध अपराध की श्रेणी में आ सकता है. हालांकि यूएन और आईसीसी ट्रंप के आगे कुछ बेबस लग रहे हैं. 

donald trump proposal to take control over gaza strip what will happen to palestinians photo AFP

अमेरिका के आगे कमजोर क्यों लग रहीं संस्थाएं

चाहे UN हो या ICC, ट्रंप के आगे ये उतने जोरशोर से अपने मुद्दे नहीं उठा पातीं. हाल में ट्रंप ने कई बड़े फैसले लिए, जो बाकी किसी देश पर भारी पड़ सकते थे, लेकिन अमेरिका पर कोई पाबंदी नहीं लगी. इसकी वजह ये है कि अमेरिका यूएन का सबसे बड़ा फंडर है. साथ ही वो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का स्थाई मेंबर है. ऐसे में यूएन कोई सख्त प्रस्ताव लाना भी चाहे तो ट्रंप उसपर वीटो लगा सकते हैं.

अमेरिका ने ICC की मान्यता नहीं ली. ऐसे में इंटरनेशनल कोर्ट चाहकर भी अमेरिकी नेताओं पर मुकदमा नहीं कर सकता. इसके उलट, जब कोर्ट ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना पर वॉर क्राइम की जांच शुरू की, तो ट्रंप प्रशासन ने आईसीसी अधिकारियों पर पाबंदियां लगा दी थीं. 

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अमेरिका इलाके के बाहुबली की तरह है, जिसका रौब-दाब आसपास भी काफी है. ऐसे में कोई संस्था उसके खिलाफ एक्शन लेने की सोचे भी तो सहयोगी देश भी उसपर दबाव बनाने लगते हैं. 

ट्रंप के लापरवाह बयानों पर इनकी चुप्पी का एक और भी कारण है. दरअसल यूएन और आईसीसी के पास अपनी कोई आर्मी नहीं. वे कानून बना तो सकते हैं, या टोक तो सकते हैं लेकिन अपना प्रस्ताव मनवाने का उनके पास कोई तरीका नहीं. ऐसे में अमेरिका ही क्या, रूस या फिर कोई भी ताकतवर देश मनमानी करे तो वे निंदा से ज्यादा कुछ कर नहीं पाते, जब तक कि मामला यूएनएससी तक न चला जाए.

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