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क्या है ऑपरेशन 1027...जिसने म्यांमार में बिगाड़ दिए हालात, भारत के लिए क्यों है चिंता की बात

म्यांमार में एक बार फिर हालात बिगड़ने लगे हैं. वहां लगभग तीन हफ्ते से सेना और विद्रोही संगठनों के बीच संघर्ष चल रहा है. इसका असर भारत पर भी दिखने लगा है. म्यांमार के सैनिक और नागरिक भारत में आ रहे हैं. ऐसे में जानते हैं कि म्यांमार में हो क्या रहा है और भारत के लिए ये कितनी बड़ी चिंता की बात है.

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म्यांमार में तीन हफ्ते से भयानक संघर्ष चल रहा है. (फाइल फोटो)
म्यांमार में तीन हफ्ते से भयानक संघर्ष चल रहा है. (फाइल फोटो)

भारत के पड़ोसी मुल्क म्यांमार में एक बार फिर हालात बिगड़ रहे हैं. वहां बीते तीन हफ्ते से सेना और जुंटा-विरोधी बलों के बीच लड़ाई चल रही है. 

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जुंटा माने सैन्य शासन, तानाशाही या निरंकुशता. म्यांमार की मौजूदा सरकार को 'जुंटा शासन' ही कहते हैं. वहां 2021 में सैन्य तख्तापलट हो गया था. और सेना ने वहां की नेता आंग सान सू की को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था. 

अब वहां फिर से लोकतंत्र समर्थक फोर्सेस और सेना के बीच जंग छिड़ गई है. लोकतंत्र समर्थक फोर्सेस ने इसे 'ऑपरेशन 1027' नाम दिया है. 

ऑपरेशन 1027, असल में वो तारीख है जिस दिन इसे शुरू किया गया था. फोर्सेस ने सेना के खिलाफ 27 अक्टूबर को ऑपरेशन लॉन्च किया था. 

ये तीन गुट आए साथ में

इस साल 27 अक्टूबर को म्यांमार के तीन विद्रोही गुट साथ आए. ये थे- अराकन आर्मी (AA), म्यांमार नेशनल डिफेंस अलायंस आर्मी (MNDAA) और ताआंग नेशनल लिबरेशन आर्मी (TNLA). 

चूंकि, वहां के सैन्य शासन के खिलाफ इन तीन गुटों ने 27 अक्टूबर को विद्रोह छेड़ा था, इसलिए इसे 'ऑपरेशन 1027' नाम दिया गया है.

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कितने ताकतवर हैं तीनों?

- MNDAA: म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी इन तीनों में सबसे ताकतवर मानी जाती है. ऑपरेशन 1027 को यही लीड कर रही है. इसका गठन 1989 में हुआ था. इसमें लगभग 6 हजार लड़ाके हैं.

- AA: अराकन आर्मी का गठन 2009 में हुआ था. ये रखाइन प्रांत में एक्टिव है और यूनाइटेड लीग ऑफ अराकन (ULA) की मिलिट्री विंग है. इसके नेता त्वान म्राट नाइंग हैं. माना जाता है कि इसके पास 35 हजार से ज्यादा लड़ाके हैं, जो काचिन, रखाइन और शान प्रांत में एक्टिव हैं.

- TNLA: ताआंग नेशनल लिबरेशन आर्मी पलाउंग स्टेट लिबरेशन फ्रंट (PSLF) की मिलिट्री विंग है. 2005 में सरकार के साथ समझौते के बाद TNLA का विघटन हो गया था. 2011 में इसे फिर से गठित किया गया. माना जाता है कि इसमें आठ हजार के आसपास लड़ाके हैं.

पर विद्रोह किस बात का?

इस पूरे ऑपरेशन का मकसद वहां के सैन्य शासन का मुकाबला करना है. 'ब्रदरहुड अलायंस' के नाम से बना ये विद्रोही गठबंधन उत्तरी शान प्रांत में सेना और उसके सहयोगी सैन्य संगठनों को खदेड़ना है. ये प्रांत म्यांमार-चीन सीमा के पास पड़ता है.

27 अक्टूबर को अलायंस ने बयान जारी कर कहा था कि उनके ऑपरेशन का मकसद नागरिकों की रक्षा करना, आत्मरक्षा करना, अपने इलाकों पर नियंत्रण हासिल करना और म्यांमार सेना के हमलों और हवाई हमलों का जवाब देना है.

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बयान में ये भी कहा था कि सैन्य शासन का पूरी तरह से सफाया करना है, और म्यांमार की पूरी आबादी भी यही चाहती है.

अब तक क्या-क्या हुआ?

ब्रदरहुड अलायंस का दावा है कि उसने म्यांमार सेना की सवा सौ से ज्यादा चौकियों पर कब्जा कर लिया है. साथ ही बड़ी मात्रा में हथियार भी जब्त कर लिए हैं. छह टैंक और कई बख्तरबंद गाड़ियों पर भी अलायंस ने कब्जा कर लिया है.

म्यांमार सेना ने कबूल किया है कि चिन श्वे हॉ, पंसाई और हाउंग साई टाउन में उसने अपना नियंत्रण खो दिया है.

अलायंस ने नाम्तु नदी के उत्तर में सेनवी पर नियंत्रण कर लिया है, लेकिन नदी के दक्षिणी ओर म्यांमार की सेना डिफेंसिव पोजिशन में है.

उत्तरी शान प्रांत में कम्युनिकेशन नेटवर्क बाधित हो गए हैं. सीमा पर 105वें माइल कैम्प, जिनसानजियाओ और चिन श्वे हॉ के जरिए होने वाला कारोबार भी ठप पड़ गया है.

भारत में घुसे म्यांमार के सैनिक

ब्रदरहुड अलायंस से चल रहे संघर्ष के बीच म्यांमार सेना के सैनिक भारत में घुस रहे हैं. पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, अब तक म्यांमार के कुल 45 सैनिक मिजोरम में घुस चुके हैं. 

अधिकारियों ने बताया कि, सोमवार शाम को 39 सैनिकों ने सीमा पार की और अपने हथियारों के साथ जोखाव्थर पुलिस स्टेशन पहुंचे. मंगलवार को फिर तीन और बुधवार को दो सैनिक मिजोरम में आए.

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39 सैनिकों को असम राइफल्स को सौंप दिया गया है और उन्हें सुरक्षित जगहों पर ले जाया गया है. बाकी 6 सैनिकों को भी सुरक्षित जगहों पर ले जाया जाएगा.

गृह विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, इन सैनिकों को एयरलिफ्ट कर मणिपुर के चम्पाई जिले के मोरे में ले जाया जाएगा. यहां से उन्हें तामू भेज दिया जाएगा, जो म्यांमार का इलाका है.

मिजोरम की म्यांमार के साथ 510 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है. जब से वहां सेना और ब्रदरहुड अलायंस के बीच संघर्ष के बाद से म्यांमार के पांच हजार से ज्यादा नागरिक मिजोरम में आ गए हैं. 

मिजोरम में म्यांमार के जिन नागरिकों ने शरण ले रखी है, वो चिन समुदाय से आते हैं. मिजोरम के मिजो और चिन, दोनों ही जो जनजातीय समूह से आते हैं.

भारत के लिए चिंता की बात क्यों?

म्यांमार में चल रहे इस संघर्ष ने चिंता बढ़ा दी है. चीन ने भी संघर्षविराम की बात कही है. वहीं, भारत के लिए ये और बड़ी चिंता की बात है.

दरअसल, संघर्ष की वजह से म्यांमार से हजारों शरणार्थी पहले ही मिजोरम में आकर बस चुके हैं. फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट के बाद से अब तक 31 हजार शरणार्थी आ चुके हैं. 

शरणार्थियों के आने से पूर्वोत्तर भारत में तनाव फैलने की आशंका है. म्यांमार के चिन जातीय समूह का मणिपुर के कुकी के साथ अच्छे संबंध हैं. वहीं, मणिपुर के मैतेई उग्रवादी संगठनों की म्यांमार में भी मौजूदगी है. ऐसे में मणिपुर की स्थिति बिगड़ने का भी डर है. 

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