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क्यों जान का खतरा लेकर अब बांग्लादेश से भी भाग रहे रोहिंग्या, किन नए देशों की शरण ले रहे?

पिछले महीने रोहिंग्या शरणार्थियों से भरी हुई एक बोट इंडोनेशिया के पास पलट गई. हादसे में 70 लोग समुद्र में समा गए. ये अकेली घटना नहीं. म्यांमार से खदेड़े गए रोहिंग्या अब बांग्लादेश छोड़ दूसरे देशों में शरण ले रहे हैं. जानिए, कौन से देश बन रहे उनका नया ठिकाना? कितनी तैयार हैं वहां की सरकारें इन शरणार्थियों को अपनाने के लिए?

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रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश से दूसरे देशों की तरफ जा रहे हैं. (Photo- AFP)
रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश से दूसरे देशों की तरफ जा रहे हैं. (Photo- AFP)

पिछले महीने ही भारत ने अपने यहां अवैध तौर पर बसे रोहिंग्या मुसलमानों को वापस म्यांमार डिपोर्ट करना शुरू कर दिया. सेंटर ने साफ कहा कि बिना कागजात के चुपके से भीतर आए लोगों का देश में रहना खतरनाक है इसलिए उन्हें वापस भेजा जाएगा. भारत के अलावा बांग्लादेश में भी रोहिंग्या समुदाय में अफरातफरी है. वे वहां के कैंप छोड़कर 18 सौ किमोमीटर लंबी समुद्री दूरी पार करके इंडोनेशिया पहुंच रहे हैं. हालात ये हैं कि इंडोनेशियाई पुलिस और मछुआरे तक सुमात्रा द्वीप के चारों ओर पेट्रोलिंग में जुट गए, ताकि रोहिंग्या रोके जा सकें. 

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यहां कई सवाल उठते हैं

क्यों बसे-बसाए लोग बांग्लादेश छोड़कर भाग रहे हैं?

किन देशों की तरफ जा रहे हैं?

क्या ये देश उन्हें आधिकारिक तौर पर अपना रहे हैं?

खुद तंगहाल बांग्लादेश ने क्यों दी शरण

साल 2017 में म्यांमार में हुई हिंसा के बाद लाखों रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश पहुंचने लगे. बांग्लादेश खुद आर्थिक तौर पर काफी मजबूत नहीं है, लेकिन मानवीय आधार पर वो शरणार्थियों को अपने यहां बसाने के लिए तैयार हो गया. इसमें बड़ा हाथ यूएन का भी था. उसने और कई दूसरी इंटरनेशनल संस्थाओं ने बांग्लादेश को काफी मदद देने का वादा किया.

यूएन ने जॉइंट रिस्पॉन्स प्लान लॉन्च किया, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि संस्थाओं ने रोहिंग्या मुसलमानों की मदद के लिए 943 मिलियन डॉलर की रकम जमा की. इसमें उनके लिए शेल्टर, खाना-पानी और हेल्थकेयर जैसी बेसिक सुविधाएं शामिल थीं.

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rohingya refugees escaping bangladesh camps and heading towards malaysia indonesia photo Reuters

कॉक्स बाजार में बसाए गए 

बांग्लादेश के दक्षिण पूर्वी तट कॉक्स बाजार में शरणार्थियों को बसाया गया. फिलहाल यहां सवा लाख से ज्यादा शेल्टर बने हुए हैं, जहां 10 लाख से ज्यादा शरणार्थी रहते हैं. कॉक्स बाजार को दुनिया का सबसे बड़ा रिफ्यूजी कैंप कहा जाता है. लेकिन रोहिंग्याओं को शिकायत है कि कैंपों में रहने-खाने या बसाहट के अच्छे इंतजाम नहीं. उन्हें कैंपों के भीतर रहने को कहा जाता है. बाहर निकलने पर मारपीट होती है. 

भाषा भी नहीं सीखने दे रहे

कैंप में रहने वाले आरोप लगाने लगे कि उन्हें न तो स्कूलों में एडमिशन मिलता है, न ही बंगाली भाषा सीखने दी जा रही है. स्थानीय लोगों को डर है कि बांग्ला सीखकर वे आम लोगों के बीच घुलमिल जाएंगे. बता दें रोहिंग्या मुस्लिम कई भाषाएं बोलते हैं, जिसमें रोहिंग्या, बर्मीज, राखाइन शामिल हैं. मानवाधिकारों पर काम कर रही संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच का ये भी कहना है कि मुस्लिम चरमपंथी और क्रिमिनल्स इन कैंपों को टारगेट कर रहे हैं. खुद बांग्लादेश सरकार भी ज्यादा आबादी का हवाला देकर शरणार्थियों को भाषण चार द्वीप पर भेज रही है. ये निर्जन द्वीप है, जहां जब-तब तूफान आता रहता है. 

कौन से देशों तक जा रहे

कुल मिलाकर, म्यांमार जैसा हिंसक तो नहीं, लेकिन कुछ बढ़िया हाल भी रोहिंग्या का बांग्लादेश में नहीं. यही वजह है कि कैंप छोड़कर लोग भाग रहे हैं. यहां से वे इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों को नया ठिकाना बना रहे हैं. इनकी यात्रा मानसून के बाद शुरू होती है. जब समुद्र में तूफान का डर कुछ कम हो जाए, बांग्लादेश से छोटी-बड़ी बोट्स इन देशों की तरफ निकलने लगती हैं. 

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इंडोनेशियाई लोग समुद्र में वापस धकेल रहे

अकेले नवंबर 2023 में इंडोनेशिया के सुमात्रा की तरफ दर्जनों नावें गईं. इनमें से दो मामले ऐसे भी थे, जब किनारे बसे गांववालों ने लोगों को नीचे ही नहीं उतरने दिया, बल्कि निगरानी करते रहे कि बोट वापस समुद्र में लौट जाए. बीबीसी इंडोनेशिया ने इस घटना की तस्वीरें भी ली थीं. वहां के आचेक प्रांत में लगातार रोहिंग्याओं के खिलाफ प्रोटेस्ट हो रहे हैं. स्थानीय लोग डरे हुए हैं कि रोहिंग्याओं की आबादी उनके लिए मुसीबत ला सकती है. 

जान बचाने वालों को दी सजा

वहां की सरकार भी रोहिंग्यों पर खास नरमी नहीं दिखा रही. दो साल पहले वहां की कोर्ट ने तीन मछुआरों को सजा सुनाई थी. उनपर आरोप था कि वे रोहिंग्याओं की स्मगलिंग कर रहे हैं. इधर लोकल लोगों का तर्क था कि मछुआरों ने केवल डूबती हुई बोट से लोगों को बचाकर किनारे पहुंचाया था. ऐसी घटनाओं के बाद से स्थानीय लोग रोहिंग्याओं से बचने लगे हैं. 

किनारों पर ही रोका जा रहा 

शरणार्थी न आ सकें, इसके लिए पुलिस, नेवी और नेशनल सर्च एंड रेस्क्यू एजेंसी ने जॉइंट ऑपरेशन लॉन्च किया. इसमें कोस्टल इलाकों में रहते लोग भी सुरक्षा दलों की मदद कर रहे हैं. सरकारी नीति भी यहां रोहिंग्याओं के पक्ष में नहीं जा रही. बता दें कि इंडोनेशिया ने रिफ्यूजी कन्वेंशन पर दस्तखत नहीं किए. ऐसे में शरणार्थियों को लेने के लिए वो मजबूर नहीं. लेकिन इसका दूसरा सिरा भी है.

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इंडोनेशिया भले ही रिफ्यूजी कन्वेंशन का हिस्सा नहीं, लेकिन उसने यूएन कन्वेंशन ऑ द लॉ ऑफ सी पर साइन किए हैं. ये नियम कहता है कि इंडोनेशिया को समुद्र में खतरे में पड़े लोगों की मदद करके उन्हें निकटतम सेफ जगह तक ले जाना होगा. 

rohingya refugees escaping bangladesh camps and heading towards malaysia indonesia photo Reuters

कैसी है मलेशिया में स्थिति

बांग्लादेश से भागकर मलेशिया पहुंचे रोहिंग्याओं की हालत भी खास अच्छी नहीं. फरवरी में यहां के इमिग्रेशन डिटेंशन सेंटर से काफी शरणार्थी भाग गए, जिनकी तलाश जारी है. इमिग्रेशन डिपार्टमेंट ने लगभग 4 सौ पुलिस अधिकारियों को इस काम में लगाया हुआ है.

छिपकर रहने को मजबूर

यूनाइटेड नेशन्स हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीस के अनुसार, फिलहाल मलेशिया में 1 लाख से ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थी हैं. ये सभी अपनी रिस्क पर वहां रह रहे हैं. असल में मलेशिया में असाइलम के लिए प्रोसेस करने वाला कोई सिस्टम नहीं. ऐसे में रिफ्यूजियों को घुसपैठियों की तरह देखा जाता है. वे पहुंच तो जाते हैं लेकिन छिपकर या बहुत कम तनख्वाह पर काम करने को मजबूत रहते हैं. उनके बच्चों का कोई भविष्य नहीं होता है. 

स्थिति ये है कि मलेशियाई सरकार ने साल 2019 के बाद से UNHCR को भी अपने डिटेंशन सेंटरों में जाने की इजाजत नहीं दी. किसी को पक्की जानकारी नहीं कि डिटेंशन कैंपों में बंद शरणार्थी किन हालातों में हैं. यही कारण है कि वे मलेशिया के भी डिटेंशन सेंटर छोड़कर भागने लगे. लेकिन यहां भी छुटकारा नहीं.

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अप्रैल 2022 में पेनांग स्टेट से 5 सौ शरणार्थी भागे थे, जिनमें से 6 की हाईवे पर मौत हो गई. मलेशिया आने के लिए भी शरणार्थी समुद्र का रास्ता लेते हैं. ऐसे में पकड़े जाने का डर कम रहता है. हालांकि दूसरे खतरे हैं. जैसे पिछले साल ही 6 सौ के लगभग शरणार्थी समुद्र में लापता हो गए. माना जा रहा है कि वे डूब चुके होंगे.

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