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आने वाले दो महीने होंगे बेहद गर्म, कितना असर पड़ेगा चुनाव पर, क्या कहता है पिछले इलेक्शन का रिकॉर्ड?

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने चेतावनी दी कि अप्रैल से जून के बीच भीषण गर्मी पड़ेगी. ये वो वक्त है, जब आम चुनाव होने वाले हैं. गर्मी से मतदान पर असर न हो, इसके लिए इलेक्शन कमीशन ने कई निर्देश भी जारी किए हैं. वो पूरी कोशिश कर रहा है कि मतदाता सुरक्षित रहते हुए वोट दे सकें. लेकिन क्या गर्मी से वोटर टर्नआउट पर असर होता है?

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गर्मी कगर्मी का असर मतदाताओं पर भी हो सकता है. (Photo- Getty Images)
गर्मी कगर्मी का असर मतदाताओं पर भी हो सकता है. (Photo- Getty Images)

सोमवार को मौसम विभाग ने हीट वेव को लेकर एक प्रेस रिलीज जारी करते हुए कहा कि देश में इस साल मध्य और  पश्चिमी हिस्सा भारी गर्मी की चपेट में रहेगा. वहीं अप्रैल में लगभग पूरे देश में ही सामान्य से काफी ज्यादा गर्मी रहेगी. इस दौरान लोकसभा चुनावों के साथ चार राज्यों- उड़ीसा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और आंध्रप्रदेश में असेंबली चुनाव भी हैं. वोटर मतदान करने से पीछे हटें, इसके लिए भी इंतजाम हो रहे हैं. 

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किन जगहों पर पड़ेगी भारी गर्मी

राजस्थान, गुजरात, सौराष्ट्र-कच्छ, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, उत्तरी छत्तीसगढ़ और उत्तरी कर्नाटक इस मौसम में भयंकर गर्मी झेलेंगे. वहीं जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरी उड़ीसा, पश्चिम बंगाल के गंगा से सटे हुए हिस्से में तापमान सामान्य या कुछ ज्यादा हो सकता है. कई राज्य जहां हीट वेव एक से तीन दिनों तक चलती थीं, वहां ये आठ दिनों तक खिंच सकती हैं. 

आशंका जताई जा रही है कि इतनी गर्मी का असर वोटिंग पर भी पड़ सकता है. हो सकता है एक्सट्रीम तापमान के चलते वोटर घरों से बाहर ही न आ सकें, या फिर वोट के लिए इंतजार करते हुए कोई दिक्कत हो जाए. केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने मौसम विभाग की चेतावनी पर स्टेकहोल्डर्स को सावधानी बरतने को कहा है.

19 अप्रैल से 1 जून तक सात चरणों में चुनाव होंगे. इस बार 97 करोड़ से ज्यादा मतदाता वोट डाल सकते हैं. उनके लिए साढ़े 10 लाख के करीब पोलिंग बूथ बनाए जाने हैं. मतलब इस बार 46 दिनों तक चुनावी प्रक्रिया चलने वाली है. पिछली बार ये 36 दिनों तक चली थी. 

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will heat affect voter turnout general elections in india photo Getty Images

क्या वोटर टर्नआउट घटा था

साल 2019 की गर्मियों में हुए लोकसभा चुनावों में उन राज्यों पर असर दिखा, जहां ज्यादा गर्मी थी. हीटवेट से जूझ रहे सारे ही राज्यों में 70 प्रतिशत से कम मतदान हुआ. जैसे बिहार में 57 प्रतिशत,  उत्तर प्रदेश में 59 प्रतिशत, दिल्ली में 60 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 61, जबकि राजस्थान और झारखंड में 66 और 67 प्रतिशत लोगों ने वोट दिया था. ये तब था जबकि देश का कुल वोटर टर्नआउट 67.47 था, जो कि पिछले कई चुनावों से ज्यादा है. केवल उन्हीं इलाकों में मतदान घटा, जो भीषण गर्मी से जूझ रहे थे. 

इनपर होगा ज्यादा असर

माना जा रहा है कि लंबे समय तक चुनावों और जिस दौरान भारी गर्मी पड़ती है, वोटरों के लिए घर से निकलकर मतदान केंद्र तक जाना, और इंतजार करना आसान नहीं होगा. खासकर बुजुर्गों, प्रेग्नेंट महिलाओं और स्पेशली-एबल्ड लोगों के लिए. इलेक्शन कमीशन का डेटा कहता है कि देश में इस वक्त 88 लाख से ज्यादा दिव्यांग हैं, जो वोट दे रहे हैं. 

वोटरों को गर्मी से बचाने के लिए इलेक्शन कमीशन  इंतजाम भी कर रहा है. उसने चीफ इलेक्टोरल ऑफिसर्स के लिए एडवायजरी निकाली, जिसमें कई निर्देश हैं. 

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चुनाव आयोग की क्या तैयारियां

ईसी ने साफ कहा कि पोलिंग बूथ ग्राउंड फ्लोर पर हों ताकि बुजुर्ग और दिव्यांगों को दिक्कत न हो, साथ ही गर्मी से भी बचाव हो सके.

इन बूथ पर प्रवेश और बाहर निकलने का रास्ता अलग-अलग होगा.

पोलिंग स्टेशन पर पीने के पानी, छायादार जगह के साथ मेडिकल किट भी होगी. अ

गर हीट स्ट्रोक की स्थिति बन जाए तो 'क्या करें, क्या न करें' को लेकर भी हैंडबिल बनाकर पोलिंग बूथ्स पर भेजा जा सकता है.

बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, चुनाव आयोग मतदाताओं से अपील भी कर सकता है कि वे डीहाइड्रेशन से बचने के लिए अपने साथ गीले तौलिए लेकर आएं.

हर पोलिंग पार्टी को ओरल रीहाइड्रेशन सॉल्यूशन (ओआरएस) मिल सकता है. 

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क्या है हीटवेव

IMD के पास इसके लिए कई मानक हैं. जब मैदानी इलाकों में जब तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाए, तब वहां हीटवेव का एलान होता है. पहाड़ी इलाकों में 30 से ज्यादा तापमान इस श्रेणी में आता है, जबकि समुद्री एरिया में 37 डिग्री सेल्सियस को हीटवेव माना जाता है. जब भी तापमान सामान्य से 4.5 डिग्री से 6.4 डिग्री तक पहुंच जाए, तब भी हीटवेव की घोषणा हो जाती है. गंभीर हीटवेव की बात तब होती है, जब गर्मी सामान्य से 6.4 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर जाए. एक और मानक है. अगर तापमान 45 से ऊपर चला जाए तो भी इसे हीटवेव की श्रेणी में रखते हैं. 

क्या गर्मी से कम होती है फैसले लेने की क्षमता

गर्मी का असर केवल शरीर पर नहीं, बल्कि दिमाग पर भी होता है. सबसे पहले फैसला लेने की क्षमता कम हो जाती है. अमेरिकन मार्केटिंग एसोसिएशन ने इसपर एक सर्वे किया था, जिसमें पाया गया कि गर्म कमरे में बैठे लोग अपेक्षाकृत गलत फैसले लेते हैं, जबकि ठंडे कमरों में दिमाग शांति से सोच पाता है. इस तरह की कई और स्टडीज हो चुकीं.  

will heat affect voter turnout general elections in india photo AP

मौसम बनाता है कम या ज्यादा गुस्सैल

कई अध्ययन जोर देते हैं कि गर्म देशों के मौसम का अपराध से डायरेक्ट नाता है. एम्सटर्डम की व्रिजे यूनिवर्सिटी ने इसपर एक स्टडी की, जिसके नतीजे बिहेवियरल एंड ब्रेन साइंसेज में छपे. इसमें वैज्ञानिकों ने देखा कि आम लोग, जो क्रिमिनल दिमाग के नहीं होते, वो एकदम से अपराध कैसे कर बैठते हैं. इसके लिए क्लैश (CLASH) यानी क्लाइमेट, एग्रेशन और सेल्फ कंट्रोल इन ह्यूमन्स को वजह माना गया.

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, लोग जिस क्लाइमेट में रहते हैं, वो गुस्से को उकसाता या उसपर कंट्रोल करता है. जो जितने ज्यादा गर्म मौसम में रहेगा, उसे उतनी जल्दी गुस्सा आ सकता है. वे अपराधी सोच न होते हुए भी अपराध कर जाते हैं. 

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सर्द मुल्कों में कम अपराध 

ठंडी जगहों पर रहने वालों में सेल्फ कंट्रोल ज्यादा दिखता है, बजाए गर्म जगहों के रहनेवालों से. क्लाइमेट और इंसानी व्यवहार पर लगभग 60 अलग-अलग स्टडीज को देखने के बाद ये माना गया कि गर्म या ठंडे मौसम से सेल्फ-कंट्रोल सीधे प्रभावित होता है. इसके लिए एक्सपर्ट्स ने यूएन के डेटा का भी सहारा लिया, जो बताता है कि दुनिया के किन हिस्सों में कितनी हत्याएं होती हैं. स्कैंडिनेवियाई और नॉर्डिक देश इसमें सबसे नीचे हैं. यहां सबसे कम अपराध होते हैं और ये बेहद ठंडे देश हैं.

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