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'समलैंगिक विवाह सिर्फ शहरी कॉन्सेप्ट', केंद्र के तर्क पर SC का जवाब- 'इसका कोई डेटा नहीं'

समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को भी सुनवाई हुई. सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की संवैधानिक बेंच इस पर सुनवाई कर रही है. इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक और हलफनामा दायर कर सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग की थी. साथ ही ये भी कहा था कि इस पर फैसला लेने का अधिकार अदालत को नहीं है.

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सांकेतिक तस्वीर (Vani Gupta/aajtak.in)
सांकेतिक तस्वीर (Vani Gupta/aajtak.in)

सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर बुधवार को लगातार दूसरे दिन भी सुनवाई हुई. इन याचिकाओं पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई कर रही है. 

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समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग पर याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें पेश करते हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि अगर देश को आगे बढ़ाना है तो कोर्ट को पहल करनी होगी. उन्होंने कहा कि कभी-कभी कानून नेतृत्व करता है लेकिन कई ऐसे मौके भी आते हैं, जब समाज नेतृत्व करता है. 

वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण इस वर्ग का भेदभावपूर्ण बहिष्कार है, जो जेंडर पर आधारित है. इस पर सीजेआई ने कहा कि आप कह रहे हैं, राज्य किसी व्यक्ति के साथ उस विशेषता के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है जिस पर किसी शख्स का कोई नियंत्रण नहीं है. 

'सरकार के पास डेटा नहीं'

चीफ जस्टिस ने कहा कि समलैंगिक विवाह की मांग को लेकर शहरी क्षेत्रों से अधिक लोग सामने आ रहे हैं. लेकिन सरकार के पास इस तरह का कोई डेटा नहीं है, जिससे यह सिद्ध हो सके कि समलैंगिक विवाह एक शहर, एलिट कॉन्सेप्ट है. 

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अदालत ने कहा कि सिद्धांत वास्तव में बहुत सरल है कि राज्य किसी व्यक्ति के खिलाफ विशेषता के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता, जिसके लिए व्यक्ति का कोई नियंत्रण नहीं है. जब आप कहते हैं कि यह एक सहज विशेषता है, तो यह इस विवाद का जवाब भी है कि यह शहरी लोगों के लिए बहुत अभिजात्य है और इसमें एक वर्ग के लिए पूर्वाग्रह है. जब यह जन्मजात होता है तो उस वर्ग के लिए पूर्वाग्रह नहीं हो सकता. 

'बीते पांच साल में चीजें बदली हैं'

सीजेआई ने कहा कि समलैंगिकों को अब हमारे समाज में अधिक स्वीकृति मिली है. इसे हमारे विश्वविद्यालयों में स्वीकृति मिली है. हमारे विश्वविद्यालयों में केवल शहरी बच्चे ही नहीं हैं, वे सभी क्षेत्रों से हैं. हमारे समाज ने समलैंगिक संबंधों को स्वीकार कर लिया है. बीते पांच सालों में चीजें बदली हैं. 

केंद्र ने कहा- राज्यों को भी पार्टी बनाकर नोटिस किया जाए

समलैंगिक विवाह मामले की दूसरे दिन की सुनवई के दौरान केंद्र सरकार ने राज्यों की भागीदारी की बात रखी. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमने राज्यों से परामर्श करना शुरू किया है. राज्यों को भी पार्टी बनाकर नोटिस किया जाए. ये अच्छा है कि राज्यों को भी मामले की जानकारी है.

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इस पर याचिकाकर्ता के वकील मुकुल रोहतगी ने विरोध करते हुए कहा कि ये पत्र कल लिखा गया है, लेकिन अदालत ने पांच महीने पहले नोटिस जारी किया था. ये गैरजरूरी है. रोहतगी ने कहा कि अगर अदालत आदेश देगी तो समाज इसे मानेगा. अदालत को इस मामले में आदेश जारी करना चाहिए. हम इस अदालत की प्रतिष्ठा और नैतिक अधिकार पर भरोसा करते हैं. संसद कानून से इसका पालन करे या न करे, लेकिन इस अदालत का आदेश हमें बराबर मानेगा. अदालत हमें समान मानने के लिए समाज पर दबाव डाले. ऐसा ही संविधान भी कहता है. इस अदालत को नैतिक अधिकार और जनता का विश्वास प्राप्त है.

समलैंगिक विवाह की उम्र पर बहस

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को समलैंगिक विवाह के लिए न्यूनतम उम्र की सीमा को लेकर जोरदार बहस हुई. उम्रसीमा को लेकर याचिकाकर्ता के वकील रोहतगी ने कहा कि इसे लेकर स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 4 के उपबंध सी में बदलाव किया जाए. जिसमें पुरुष की शादी की उम्र 21 और महिला के लिए 18 साल तय की गई है. 

उन्होंने कहा कि फिलहाल इस प्रस्ताव से मसला हल नहीं होगा कि इसमें पुरुष या महिला शब्द को हटाकर दो व्यक्ति या पर्सन कर दिया जाए. रोहतगी ने दलील दी कि पुरुष-पुरुष से विवाह करे तो 21 साल और महिला के महिला से विवाह करने की न्यूनतम उम्र 18 तय की जा सकती है.

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जस्टिस भट ने पूछा- आप चाहते  क्या हैं?

लेकिन इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट संविधान पीठ के जज जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने कहा कि एक तरफ आप कह रहे हैं कि पुरुष और महिला शब्द को हटाकर 'व्यक्ति' कर दिया जाए. लेकिन व्यक्ति करने या महिला-महिला और पुरुष-पुरुष के लिए विवाह की अलग-अलग उम्र तय करने से फिर ट्रांसजेंडर का मसला अनसुलझा ही रह जाएगा क्योंकि वो तो पुरुष महिला से परे है. ऐसे में ये कैसे मुमकिन हो सकता है. 

उन्होंने कहा कि एक और आप चाहते हैं जेंडर न्यूट्रल हो जाए. लेकिन फिर आप पुरुष और महिला में भेद को बनाए रखना चाहते हैं. आप एक और महिला और पुरुष में भेद की बात कर रहे हैं. जबकि दूसरी ओर जेंडर न्यूट्रल बनना चाह रहे हैं. आखिर आप चाहते क्या है? क्या आप सिर्फ उन बातों को महत्व दे रहे हैं, जो आपको सूट करते हैं.

अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि सरोगेसी यानी किराए की कोख से संतान के पैदा होने, टैक्स कटौती, अनुग्रह के आधार पर सरकारी नौकरी, आश्रितों को मुआवजा, रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली सुविधाएं और मृत्यु के बाद पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार ये सब विवाह पर आधारित हैं. इन सबका आधार विवाह है. विवाह सिर्फ एक शब्द ही नहीं बल्कि यह बड़े असरदार अर्थ रखता है. आप भी इसी अर्थ के आयाम स्पष्ट करने के लिए इस पेचीदा मामले की सुनवाई कर रहे हैं. हम भी इसलिए यहां गुहार लगा रहे हैं कि सरोगेसी, टैक्स सुविधाएं और सेवानिवृत्ति आदि को लेकर विचार स्पष्ट हो जाएं.

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इस पर जस्टिस भट्ट ने कहा कि इन मुद्दों का रिश्ता और आधार विवाह के अलावा भी अन्य कई चीजों पर निर्भर करता है क्योंकि माता-पिता बनने पर कोई पाबंदी नहीं है. कोर्ट ने भी इस संबंध में कुछ मुद्दों पर गाइडलाइन जारी की हुई है, जहां तक बीमा की बात है तो इरडा नियमों के मुताबिक क्या इन बातों का जिक्र है? आप अपने परिवार से बाहर के भी किसी व्यक्ति को नामित कर सकते हैं. लेकिन आप शायद इस संबंध में अपने आप और सीधी स्पष्टता यानी डिफॉल्ट सिस्टम की बात कह रहे हैं.

क्या है मामला?

दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट समेत अलग-अलग अदालतों में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को लेकर याचिकाएं दायर हुई थीं. इन याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के निर्देश जारी करने की मांग की गई थी. पिछले साल 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट में पेंडिंग दो याचिकाओं को ट्रांसफर करने की मांग पर केंद्र से जवाब मांगा था.

इससे पहले 25 नवंबर को भी सुप्रीम कोर्ट दो अलग-अलग समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर भी केंद्र को नोटिस जारी की था. इन जोड़ों ने अपनी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की थी. इस साल 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक कर अपने पास ट्रांसफर कर लिया था.

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याचिकाओं में क्या है मांग?

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज कर दिया था. यानी भारत में अब समलैंगिक संबंध अपराध नहीं हैं. लेकिन अभी भारत में समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं मिली है. ऐसे में इन याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट समेत विवाह से जुड़े कई कानूनी प्रावधानों को चुनौती देते हुए समलैंगिकों को विवाह की अनुमति देने की मांग की गई है.

- समलैंगिकों की मांग है कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार LGBTQ (लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) समुदाय को उनके मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में दिया जाए. एक याचिका में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग की गई थी, ताकि किसी व्यक्ति के साथ उसके सेक्सुअल ओरिएंटेशन की वजह से भेदभाव न किया जाए. 

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