scorecardresearch
 

'देश में आजादी से पहले का कानून', सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से नया 'Bail Act' लाने को कहा

जस्टिस एस के कौल और एम एम सुंदरेश की बेंच ने कहा, स्वतंत्रता कानून में निहित है, इसे संरक्षित और संरक्षित किया जाना चाहिए. देश की जेलों में विचाराधीन कैदियों की बाढ़ आ गई है. जबकि संज्ञेय अपराध के अलावा इनमें से ज्यादातर कैदियों को गिरफ्तार करने की भी आवश्यकता नहीं हो सकती.

Advertisement
X
फाइल फोटो
फाइल फोटो
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सुप्रीम कोर्ट ने नया जमानत कानून लाने की सिफारिश की
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा, लोकतंत्र में पुलिस का राज नहीं हो सकता

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जमानत को लेकर नया कानून (Bail Act) बनाने पर विचार करने के लिए कहा है. ताकि जमानत के अनुदान को कारगर बनाया जा सके. कोर्ट ने कहा कि अभी भी भारत में आजादी से पहले की की दण्ड प्रक्रिया संहिता (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर) संशोधन के साथ लगभग आज उसी रूप में मौजूद है. 

Advertisement

जस्टिस एस के कौल और एम एम सुंदरेश की बेंच ने कहा, स्वतंत्रता कानून में निहित है, इसे संरक्षित और संरक्षित किया जाना चाहिए. देश की जेलों में विचाराधीन कैदियों की बाढ़ आ गई है. कोर्ट ने कहा, हमारे सामने जो आंकड़े हैं, उनके मुताबिक जेलों के 2/3 से अधिक कैदी विचाराधीन कैदी हैं. जबकि संज्ञेय अपराध के अलावा इनमें से ज्यादातर कैदियों को गिरफ्तार करने की भी आवश्यकता नहीं हो सकती. 

सुप्रीम कोर्ट ने नए जमानत कानून (Bail Act) की सिफारिश ऐसे समय पर की है, जब कार्यकर्ताओं, राजनीतिक नेताओं और पत्रकारों समेत कई विचाराधीन कैदियों की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है. 

'लोकतंत्र कभी पुलिस राज नहीं हो सकता'

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ''लोकतंत्र में कभी भी पुलिस राज नहीं हो सकता. भारत में आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि की दर बहुत कम है. ऐसे में यह कारक नकारात्मक अर्थों में जमानत आवेदनों का निर्णय करते समय कोर्ट के विवेक पर असर डालता है. कोर्ट यह सोचती है कि दोषसिद्धि की संभावना निकट है. ऐसे में मजमानत आवेदनों पर कानूनी सिद्धांतों के विपरीत सख्ती से निर्णय लेना होगा. हम एक जमानत आवेदन पर विचार नहीं कर सकते हैं. जो कि ट्रायल के माध्यम से संभावित निर्णय के साथ प्रकृति में दंडात्मक नहीं है. इसके विपरीत, निरंतर हिरासत के बाद आखिरी में बरी करना घोर अन्याय का मामला होगा.''

Advertisement

ट्रायल कोर्ट के साथ आपराधिक अदालतें विशेष रूप से स्वतंत्रता के अभिभावक हैं. ऐसे में आपराधिक कोर्ट द्वारा कोई भी जानबूझकर की गई गलती स्वतंत्रता का अपमान होगी.  कोर्ट ने कहा, क्रिमनल कोर्ट का यह कर्तव्य है कि वह संवैधानिक मूल्यों और लोकाचार की रक्षा करे और एक सतत दृष्टि बनाए रखे. 
 
इतना ही नहीं कोर्ट ने जांच एजेंसियों को भी नसीहत दी है. कोर्ट ने कहा कि संदिग्ध व्यक्ति के कैद में रहते वक्त जांच एजेंसी को भी जांच की प्रक्रिया में तेजी लानी होगी. ऐसे में एजेंसी को निर्धारित समय में जांच पूरी करने का कर्तव्य सौंपा गया है. एक विफलता आरोपी को रिहा करने में सक्षम होगी. 

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को भी दिए निर्देश

बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट को भी उन विचाराधीन कैदियों का पता लगाने का निर्देश दिया जाता है जो जमानत की शर्तों का पालन करने में सक्षम नहीं हैं. ताकि उनकी रिहाई के लिए कानून के तहत उचित कदम उठाए जा सकें. कोर्ट ने कहा कि जमानत याचिकाओं का निपटारा दो हफ्तों के भीतर किया जाना चाहिए, सिवाय इसके कि जब प्रावधान अन्यथा अनिवार्य हों, जबकि अग्रिम जमानत की याचिका पर छह हफ्ते के भीतर फैसला किया जाए. 
 
कोर्ट ने सीबीआई द्वारा गिरफ्तार एक व्यक्ति से जुड़े केस में सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार नए बेल एक्ट अधिनियम पर विचार कर सकती है ताकि जमानत के अनुदान को सुव्यवस्थित किया जा सके. कोर्ट ने कहा कि विशेष रूप से जमानत के लिए नए अधिनियम को पेश करने की जरूरत है, जैसा यूके जैसे देशों में किया गया है. 
 
कोर्ट ने कहा, हम आशा और विश्वास करते हैं कि भारत सरकार दिए गए सुझावों पर गंभीरता से विचार करेगी. कोर्ट ने कहा कि राज्य और केंद्र सरकारों को विशेष अदालतों के गठन के संबंध में  सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय समय पर जारी दिशा निर्देशों का पालन करना होगा. 

Advertisement

 

Advertisement
Advertisement