केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप चर्चा में है. पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय यात्रा के बाद लक्षद्वीप के बारे में जानने के लिए हर किसी की दिलचस्पी बढ़ गई है. लक्षद्वीप टूरिज्म के बारे में बहुत चर्चा हो रही है. लोग इसे बेहतरीन टूरिस्ट डेस्टिनेशन के तौर पर देख रहे हैं. कई मशहूर हस्तियों ने भी सोशल मीडिया हैंडल पर लक्षद्वीप को पर्यटन हॉटस्पॉट बताया है. हालांकि, बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग हैं, जो लक्षद्वीप के इतिहास के बारे में जानना चाहते हैं. आजादी के 9 साल बाद यानी 1956 में यह केंद्र शासित प्रदेश बना और फिर 26 साल बाद यानी 1973 में इसका नाम लक्षद्वीप रखा गया. यहां 68 हजार की आबादी रहती है. जानिए, लक्षद्वीप के राजनीतिक इतिहास से लेकर द्वीप बसने की कहानी तक...
लक्षद्वीप, केरल के कोच्चि से करीब 440 किलोमीटर दूर है. यहां 36 छोटे-छोटे द्वीपों का समूह है. यह मुस्लिम बहुल राज्य है. साल 2011 की जनगणना के अनुसार, लक्षद्वीप की कुल आबादी करीब 64 हजार 473 है, जिसमें पुरुष की संख्या 33,123 और महिलाओं की संख्या 31,350 है. 2001 में कुल जनसंख्या 60,650 थी, जिसमें पुरुष 31,131 और महिलाएं 29,519 थीं. लक्षद्वीप में 96.58% आबादी मुसलमानों की है. यहां 2.77 % हिंदू रहते हैं. लक्षद्वीप में ईसाई धर्म के 0.49%, जैन धर्म के 0.02%, बौद्ध धर्म के 0.02% और सिख धर्म के 0.01% लोग रहते हैं. लक्षद्वीप में लिंग अनुपात 946 है. यहां साक्षरता दर 91.85 प्रतिशत है. कुल जनसंख्या में से 78.07% लोग शहरी क्षेत्रों में रहते हैं. लगभग 21.93 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं.
'लक्षद्वीप में बोली जाती है मलयालम भाषा'
लक्षद्वीप में इस्लाम के उदय की बात 7वीं शताब्दी से की जाती है. यहां का क्षेत्रफल करीब 32 वर्ग किलोमीटर है. लक्षद्वीप में 10 बसे हुए द्वीप में हैं. इनमें कवाराट्टी, अगाट्टी, अमिनी, कदमत, किलातन, चेतलाट, बिट्रा, आनदोह, कल्पनी और मिनिकॉय हैं. बिट्रा में सिर्फ 271 लोग रहते हैं और बंगाराम द्वीप में सिर्फ 61 लोग रहते हैं. यहां मलयालम भाषा बोली जाती है. सिर्फ मिनिकॉय में लोग मह्हे बोलते हैं, जिसकी लिपि धिवेही है. अंग्रेजी, जेसेरी भी बोली जाती है. लक्षद्वीप में लोगों की कमाई का अहम जरिया मछली पकड़ना, नारियल की खेती करना है. लक्षद्वीप में पर्यटन उद्योग भी तेजी से बढ़ा है. पिछले कुछ दिनों से पर्यटकों का रुझान भी लक्षद्वीप घूमने को लेकर देखा जा रहा है.
'कोच्चि से लक्षद्वीप पहुंचना आसान'
बीते साल लक्षद्वीप जाने वाले पर्यटकों की संख्या करीब 25 हजार रही थी. अगाट्टी में एक हवाई पट्टी है. कोच्चि से यहां पहुंचा जा सकता है. अगाट्टी से कवाराट्टी और कदमत के लिए बोट की उपलब्धता है. अगाट्टी से कवाराट्टी के लिए हेलिकॉप्टर सेवा उपलब्ध है. इतना ही नहीं, कोच्चि से अगाट्टी की फ्लाइट करीब डेढ़ घंटे की है. कोच्चि से लक्षद्वीप जहाज के जरिए 14 से 18 घंटों में पहुंचा जा सकता हैं. यहां द्वीप घूमने के हिसाब से समय और खर्चे का आकलन किया जा सकता है.
लक्षदीप के बारे में क्या कहानियां हैं...
लक्षद्वीप सरकार के मुताबिक, यहां का प्रारंभिक इतिहास अलिखित है. अब जो इतिहास बनता है, वो अलग-अलग किंवदंतियों पर आधारित है. स्थानीय परंपराएं इन द्वीपों पर पहली बसावट का श्रेय केरल के अंतिम राजा चेरामन पेरुमल के काल को देती हैं. ऐसा माना जाता है कि कुछ अरब व्यापारियों के कहने पर यहां के राजा चेरामन पेरुमल ने इस्लाम धर्म अपना लिया था. उसके बाद वो अपनी राजधानी क्रैंगनोर (वर्तमान में कोडुंगलुर, पुराना बंदरगाह शहर कोच्चि) से निकल कर मक्का चले गए थे. ऐसा माना जाता है कि राजा की नावों में से एक भयंकर तूफान की चपेट में आ गई और वो उस द्वीप पर नष्ट हो गई, जिसे अब बंगाराम के नाम से जाना जाता है. जब उनके लापता होने की जानकारी हुई तो खोजी दल की नावों को राजा की तलाश में मक्का के तटों के लिए रवाना किया गया.
'राजा से जोड़कर सुनाई जाती है कहानी'
वहां से वे पास के अगत्ती द्वीप पर गए. मौसम में सुधार हुआ और वे रास्ते में अन्य द्वीपों को देखते हुए वापस लौट आए. ऐसा कहा जाता है कि राजा के लौटने के बाद नाविकों और सैनिकों के एक अन्य दल ने अमिनी द्वीप की खोज की और वहां रहना शुरू कर दिया. किंवदंतियों का कहना है कि पहले अमिनी, कावारत्ती, एंड्रोट और कल्पेनी द्वीपों में छोटी बस्तियां शुरू हुईं और बाद में इन द्वीपों से लोग अगत्ती, किल्टान, चेटलाट और कदमत के अन्य द्वीपों में चले गए. हालांकि, चेरामन पेरुमल की यह किंवदंती प्रमाणित नहीं है.
'जेद्दा जाने के लिए निकले थे अरब सूफी उबैदुल्लाह'
चूंकि इस्लाम का आगमन 7वीं शताब्दी में सन् 41 हिजरी के आसपास हुआ. यह सार्वभौमिक रूप से माना जाता है कि अरब सूफी उबैदुल्लाह मक्का में प्रार्थना करते समय सो गए थे. उन्होंने सपना देखा कि पैगंबर मोहम्मद साहब चाहते हैं कि वो जेद्दा जाएं और वहां से जहाज लेकर दूर-दराज के स्थानों पर जाएं. इस तरह उन्होंने जेद्दा छोड़ दिया लेकिन महीनों तक नौकायन करने के बाद इन छोटे द्वीपों के पास एक तूफान ने उनके जहाज को नष्ट कर दिया. वो एक तख्ते पर तैरता हुआ अमिनी द्वीप के तट पर बह गया. वे वहीं सो गए, लेकिन फिर सपने में पैगंबर ने उन्हें उस द्वीप में इस्लाम का प्रचार करने के लिए कहा. उबैदुल्ला ने ऐसा करना शुरू कर दिया. लेकिन इससे द्वीप का मुखिया क्रोधित हो गया और उसने तुरंत उसे बाहर निकलने का आदेश दे दिया. उबैदुल्लाह दृढ़ रहे. इसी बीच एक युवती को उनसे प्यार हो गया. उन्होंने उसे हमीदत बीबी नाम दिया और उससे शादी की. इससे मुखिया और ज्यादा आहत हुआ और उसने उसे मारने का फैसला किया.
'अरब सूफी उबैदुल्लाह के बारे में किवदंती'
कहा जाता है कि मुखिया और उसके गुर्गों ने उबैदुल्लाह और उसकी पत्नी को मारने के लिए घेर लिया. तुरंत ही उबैदुल्लाह ने सर्वशक्तिमान को बुलाया और लोग अंधे हो गए. इस समय उबैदुल्लाह और उनकी पत्नी गायब हो गए और जैसे ही उन्होंने द्वीप छोड़ा तो लोगों की आंखों की रोशनी वापस आ गई. अमिनी से सेंट उबैदुल्ला एंड्रोट पहुंचे, जहां उन्हें इसी तरह के विरोध का सामना करना पड़ा. अंततः वो धर्म परिवर्तन करने में सफल रहे. इसके बाद वो अन्य द्वीपों पर गए और इस्लाम का प्रचार किया. बाद में एंड्रोट लौट आए, जहां उनकी मृत्यु हो गई और उन्हें दफनाया गया. उबैदुल्लाह की कब्र आज एक पवित्र स्थान है. यह एक मकबरा है. एंड्रोट के प्रचारकों का श्रीलंका, मलेशिया, बर्मा आदि सुदूर देशों में गहरा सम्मान किया जाता है.
'टीपू सुल्तान का भी कनेक्शन'
भारत में पुर्तगालियों के आगमन ने लैकडाइव्स को फिर से नाविकों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान बना दिया. यह द्वीपों के लिए लूट के वर्षों की शुरुआत भी थी. पुर्तगालियों ने द्वीपीय जहाजों को लूटना शुरू कर दिया. वे 16वीं शताब्दी की शुरुआत में जबरन अमिनी में उतरे. ऐसा कहा जाता है कि लोगों ने सभी आक्रमणकारियों को जहर देकर मार डाला, जिससे पुर्तगाली आक्रमण समाप्त हो गया. संपूर्ण द्वीपों के इस्लाम में परिवर्तित होने के बाद भी कुछ वर्षों तक संप्रभुता चिरक्कल के हिंदू राजा के हाथों में रही. 16वीं शताब्दी के मध्य के आसपास द्वीप का प्रशासन चिरक्कल राजा के हाथों से कन्नानोर के अरक्कल के मुस्लिम घराने के पास चला गया. अरक्कल शासन दमनकारी और असहनीय था. इसलिए वर्ष 1783 में किसी समय अमिनी के कुछ द्वीपवासियों ने साहस किया और मैंगलोर में टीपू सुल्तान के पास गए और उनसे अमिनी द्वीप समूह का प्रशासन अपने हाथ में लेने का अनुरोध किया. उस समय टीपू सुल्तान अरक्केल की बीबी के साथ मित्रवत शर्तों पर था और विचार-विमर्श के बाद अमिनी समूह के द्वीप उसे सौंप दिए गए थे.
'ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्जे में भी रहा'
इस तरह द्वीपों का आधिपत्य विभाजित हो गया, क्योंकि पांच द्वीप टीपू सुल्तान के शासन में आ गए और बाकी अरक्कल घराने के अधीन रहे. 1799 में सेरिंगपट्टम की लड़ाई के बाद द्वीपों को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्जे में ले लिया गया और उन्हें मैंगलोर से प्रशासित किया गया. 1847 में एंड्रोट द्वीप पर एक भयंकर चक्रवात आया और चिरक्कल के राजा ने नुकसान का आकलन करने और राहत वितरित करने के लिए द्वीप का दौरा करने का फैसला किया. ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अधिकारी सर विलियम रॉबिन्सन स्वेच्छा से उनके साथ जाने के लिए तैयार हुए. एंड्रोट पहुंचने पर, राजा को लोगों की सभी मांगों को पूरा करना मुश्किल हो गया. सर विलियम ने तब राजा को कर्ज के रूप में मदद की पेशकश की. इसे स्वीकार कर लिया गया. यह व्यवस्था लगभग चार वर्षों तक जारी रही, लेकिन जब ब्याज बढ़ने लगा तो अंग्रेजों ने राजा से चुकाने के लिए कहा, जो वो नहीं कर सके. 1854 में शेष सभी द्वीपों को प्रशासन के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया गया. तब यहां ब्रिटिश शासन आया.
'1973 में लक्षद्वीप नाम रखा गया'
द्वीपों पर कब्जा करना अंग्रेजों द्वारा भारत में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए अपनाई गई राजनीतिक चालाकियों और तरीकों का यह एक उदाहरण था. पारंपरिक प्रशासन प्रणाली को अंग्रेज कुशासन के समान मानते थे. लेकिन वे द्वीपों की अच्छी सरकार की तुलना में अपने स्वयं के राजनीतिक और आर्थिक हितों में अधिक रुचि रखते थे. बाद में ब्रिटिश लक्षद्वीप विनियमन 1912 लाए, जो द्वीपों के अमीनों/करणियों को न्यायिक और मजिस्ट्रियल दर्जे की सीमित शक्ति प्रदान करता है. विनियमन द्वारा बाहरी लोगों पर उचित प्रतिबंध भी लागू किया गया. द्वीपों में औपनिवेशिक शासन के दौरान 9 प्राथमिक विद्यालय और कुछ औषधालय शुरू किए गए थे. आजादी के 9 साल बाद 1956 में यहां केंद्र शासित प्रदेश का गठन किया गया और 1973 में इसका नाम लक्षद्वीप रखा गया.
फिलहाल, लक्षद्वीप में राष्ट्रपति की तरफ से नियुक्त प्रशासक का शासन है. एक स्थानीय सरकार है, जिसे लक्षद्वीप प्रशासन के नाम से जाना जाता है. यह द्वीपों के शासन और विकास के लिए जिम्मेदार है.