पंजाब में मिली प्रचंड जीत के बाद आम आदमी पार्टी के हौसले बुलंद हैं. पार्टी संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अब राष्ट्रीय स्तर पर अपना सियासी आधार बढ़ाने के लिए देश के दूसरे राज्यों में संगठन खड़ा करने में जुट गए हैं. आगामी विधानसभा चुनावों पर फोकस करते हुए दिल्ली सरकार के मंत्रियों को हिमाचल, गुजरात, असम, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों की जिम्मेदारी दी गई है. साफ है कि केजरीवाल अपनी सियासी उड़ान को राष्ट्रीय बुलंदी देना चाहते हैं.
बीते सप्ताह आम आदमी पार्टी ने 9 राज्यों के लिए अपने प्रभारियों के नाम का ऐलान किया. दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को हिमाचल प्रदेश का चुनाव प्रभारी बनाया गया है. पार्टी नेता दुर्गेश पाठक को पहले ही प्रभारी नियुक्त किया जा चुका है. रत्नेश पाठक को भी हिमाचल भेजा गया है और वही रहकर संगठन का काम देखने को कहा गया है.
असम के लिए पार्टी के विधायक राजेश शर्मा को प्रभारी बनाया गया है. छत्तीसगढ़ के लिए दिल्ली सरकार में मंत्री गोपाल राय और बुराड़ी विधायक संजीव झा को प्रभारी बनाया गया है. पार्टी ने दक्षिण दिल्ली से विधायक सौरभ भारद्वाज को हरियाणा की तो द्वारका से विधायक विनय मिश्रा को राजस्थान की कमान सौंपी है. मालवीय नगर से विधायक और दिल्ली सरकार में पूर्व कानून मंत्री सोमनाथ भारती को तेलंगाना का चुनाव प्रभारी बनाया गया है.
केरल में संगठन को मजबूत करने के लिए ए राजा को वहां का प्रभारी बनाया गया है तो वहीं दिल्ली के तिलक नगर से विधायक जरनैल सिंह और डॉक्टर संदीप पाठक को पंजाब का प्रभारी बनाया गया है. केजरीवाल ने ज्यादातर राज्यों का चुनाव प्रभारी उन्हीं नेताओं को नियुक्त किया जो तीसरी बार दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीत कर आए हैं.
हिमाचल में इसी साल चुनाव, AAP लगाएगी दांव
हिमाचल प्रदेश की लड़ाई अभी तक दो ध्रुवी रही है, लेकिन अब तीसरे दल के तौर पर आम आदमी पार्टी किस्मत आजमाने की कवायद में है. सूबे के कुल 68 सीटों में से 43 सीटों पर बीजेपी का कब्जा है जबकि कांग्रेस 22 विधायकों के साथ विपक्ष में बैठी है. ऐसे में आप ने जिस प्रकार पंजाब में कांग्रेस की जमीन खींच ली, उससे सबसे बड़ी चिंता कांग्रेस के लिए है. सीएम जयराम ठाकुर के सामने भी केजरीवाल की पार्टी चुनौती बनकर खड़ी हो सकती है. हालांकि, पंजाब के सियासी मिजाज से हिमाचल की राजनीति अलग है.
दिल्ली से गुजरात की दूरी पाट पाएगी AAP
केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी ने पिछले साल गुजरात निकाय चुनावों में शानदार प्रदर्शन करते हुए सूरत नगर निगम की 27 सीटों पर विजय हासिल की थी. आप की इस जीत का आलम यह था कि कांग्रेस इन क्षेत्रों में एक भी सीट नहीं जीत सकी थी. हालांकि इस चुनाव में आप द्वारा घोषित प्रत्याशियों में ज्यादातर बीजेपी या कांग्रेस छोड़कर आये प्रत्याशी ही थे लेकिन नतीजों से स्पष्ट हो गया कि आप का अगला लक्ष्य गुजरात ही होगा.
दिल्ली से वैसे तो गुजरात की दूरी तो किलोमीटर में 500+ है, लेकिन यहां के राजनीतिक मुद्दे और विचारों में दूरी इससे कहीं ज्यादा है. आजतक की वरिष्ठ पत्रकार गोपी घांघर बताती हैं कि आम आदमी पार्टी का संगठन गुजरात में बीजेपी के मुकाबले फिलहाल बड़े स्तर पर नहीं है. पिछले चुनाव में आप 182 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी, लेकिन चुनाव लड़ने के लिए उसे उम्मीदवार तक नहीं मिल पाए थे. निकाय चुनाव के दौरान संगठन की मजबूती पर जोर दिया, लेकिन फिर भी वह बीजेपी के मुकाबले कुछ भी नहीं है.
गोपी मानती हैं कि इस बारे में पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल भी काफी हद तक क्लियर हैं. उनका लक्ष्य 22 नहीं 27 का चुनाव होगा, लेकिन उसकी बुनियाद वे इसी चुनाव में रखना चाहेंगे. विधानसभा चुनाव की इस स्ट्रैटिजी को केजरीवाल के पंजाब मॉडल से समझा जा सकता है. पहले मुख्य विपक्ष दल की भूमिका और फिर सीधे सूपड़ा साफ. हालांकि, गुजरात की स्थापना के बाद से ही राज्य में कांग्रेस बनाम बीजेपी ही मुकाबला रहा है. केजरीवाल अगर इस मुकाबले को त्रिकोणीय बना पाते हैं तो ये पार्टी के लिए बड़ी उपलब्धि होगी.
गोपी घांघर कहती हैं कि दिल्ली चुनाव से लेकर पंजाब चुनाव में एक ट्रेंड कॉमन रहा कि आप ने कांग्रेस को हराया है. बीजेपी को आप ने सिर्फ वोट परसेंट के रूप में डैमेज किया है. जैसे गोवा और उत्तराखंड में आप ने पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ा था, जिसमें से गोवा में तो 2 सीटें जीत लीं, लेकिन उत्तराखंड में ज्यादातर प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई. जिन सीटों पर आप ने बीजेपी को टक्कर भी दी, वो सिर्फ एंटी-इंकम्बेंसी फैक्टर था. बीते माह आम आदमी पार्टी ने असम नगर निकाय चुनाव की भी दो सीटों पर जीत दर्ज की थी.
राष्ट्रीय पार्टी बनने से AAP ज्यादा दूर नहीं
देश में फिलहाल करीब 400 राजनीतिक पार्टियां रजिस्टर्ड हैं, लेकिन महज 7 को ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है. भगवंत मान लोकसभा से इस्तीफा दे चुके हैं. ऐसे में लोकसभा में आप शून्य हो गई है, लेकिन राज्यसभा में पार्टी के अब 8 सांसद हो गए. इस तरह से संसद के ऊपरी सदन की AAP पांचवें नंबर की पार्टी बन गई है. राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए किसी भी पार्टी को चार राज्यों में प्रादेशिक (क्षेत्रीय) दल बनने की जरूरत होती है. अब प्रादेशिक पार्टी बनने के लिए जरूरी है विधानसभा चुनाव में छह फीसदी वोट और दो सीटें. आप पहले से ही दिल्ली और पंजाब में क्षेत्रीय दल है. गोवा में इस बार यह संभव हो गया है. अक्टूबर में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इनमें से अगर एक भी राज्य में आप का प्रदर्शन अच्छा रहा तो राष्ट्रीय पार्टी के रूप में दर्जा हासिल कर लेगी.
तेजी से बढ़ रहा AAP का कारवां
2 अक्टूबर 2012 को बनी आम आदमी पार्टी 10 साल से भी कम समय में इतना कुछ हासिल कर लेगी. इसका अंदाजा किसी भी राजनीतिक एक्सपर्ट्स को नहीं रहा होगा. लेकिन, आम आदमी पार्टी ने तेजी से अपना ग्राफ बढ़ाया है. एक के बाद एक राज्य में वो पैर पसारती जा रही है. पार्टी अब उत्तर प्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले निकाय चुनाव भी लड़ेगी तो हरियाणा निकाय चुनाव में भी किस्मत आजमाएगी. राज्यसभा सांसद और हरियाणा के पार्टी प्रभारी सुशील गुप्ता ने कह चुके हैं कि आम आदमी पार्टी हरियाणा के सभी 41 नगर निकायों के लिए चुनाव लड़ेगी.
यूपी में सक्रिय, लेकिन असर नहीं दिखा
आम आदमी पार्टी के पास उत्तर प्रदेश में भी एक टीम मौजूद है. साल 2017 के यूपी निकाय चुनावों में आम आदमी पार्टी के 19 नगर पंचायत सदस्य, 2 नगर पंचायत अध्यक्ष, 17 नगर पालिका परिषद सदस्य और 3 नगर निगम पार्षद जीते थे. निकाय चुनाव में भले ही आम आदमी पार्टी ने कुछ सीटें जीतकर दस्तक दी थी, लेकिन 2017-2022 विधानसभा और 2014-2019 लोकसभा चुनाव में वो असर नहीं दिखा सकी. संजय सिंह खुद यूपी से हैं और केजरीवाल तो 2014 में काशी में मोदी के खिलाफ चुनाव भी लड़ चुके हैं. इसके बाद भी आप सूबे में अपनी सियासी जड़ें मजबूत नहीं कर सकी.
आम आदमी पार्टी को कहां-कहां मिली हार
दिल्ली और पंजाब की सत्ता पर भले ही आम आदमी पार्टी काबिज हो, लेकिन कई राज्यों में केजरीवाल का जादू अभी भी फीका है. बीते कई सालों में आप ने क्रमचय-संचय के बहुत सारे कॉम्बिनेशन ट्राई किए, जिसमें कुछ सफल रहे तो कुछ में करारी हार भी मिली. पार्टी को मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में जबरदस्त हार मिली. इसके अलावा हरियाणा, उत्तराखंड और गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी को जबरदस्त निराशा हाथ लगी. यूपी विधानसभा में भी ऐसा ही हश्र हुआ, लेकिन जैसे तैसे करके पार्टी गोवा से खुशखबरी ले ही आई. ऐसे में देखना है कि केजरीवाल कैसे देश के दूसरे राज्यों में सियासी आधार खड़ा करते हैं?