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'रघुकुल रीत' और इमरान मसूद की जीत... राजपूतों के प्रण से सहारनपुर में कैसे बिगड़ा BJP का चुनावी गणित?

सहारनपुर लोकसभा सीट पर पहले चरण में मतदान हुआ था. और ठीक उससे पहले किसान नेता और क्षत्रिय समाज के नेता ठाकुर पूरन सिंह ने अपनी बिरादरी से बीजेपी के खिलाफ वोट करने का आह्वान किया था.

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 : इमरान मसूद की जीत में राजपूत समाज के वोट भी अहम माने जा रहे हैं
: इमरान मसूद की जीत में राजपूत समाज के वोट भी अहम माने जा रहे हैं

Congress Candidate Imran Masood Victory Factor: सहारनपुर में लोकसभा चुनाव की वोटिंग के दिन कांग्रेस के उम्मीदवार इमरान मसूद ने कहा था 'चुनाव जीत रहें, भारी वोटों से जीत रहें हैं. रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन ना जाई. लोग वचन निभा रहे हैं बूथ पर खड़े होकर. वोट देकर. मेरा मान मेरा संविधान. संविधान का संरक्षण कर रहे हैं बूथ पर खड़े होकर करके. मेरे लिए तो ये सबसे बड़ी बात है.'

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इमरान मसूद के इस बयान में जो आत्मविश्वास था, वो अब उनकी जीत बनकर सामने आ रहा है. उन्होंने 'रघुकुल रीत सदा चला आई, प्राण जाए पर वचन ना जाई' कहकर जो भविष्यवाणी की थी. वो सच होती दिख रही है. पहली बार इमरान मसूद सहारनपुर से संसद पहुंचने के लिए तैयार हैं. लेकिन इस 'रघुकुल रीत' और इमरान की जीत की इबारत चुनाव से करीब दो साल पहले ही लिखी जा चुकी थी. ये वो दौर था, जब सहारनपुर जिले में एक महापुरुष को लेकर दो जाति समूह आमने-सामने आने लगे थे. और बात सिर्फ यहीं तक नहीं थी. इसके बाद कई ऐसे मामले और मुद्दे भी आते गए, जो सत्तापक्ष के लिए अब परेशानी का सबब बनकर सामने आए हैं.

इससे पहले कि उन तमाम मुद्दों पर बात की जाए, पहले सहारनपुर के पिछले चुनावी आंकडों पर बात कर ली जाए.

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पिछले लोकसभा चुनाव यानी साल 2019 में सहारनपुर की जनता ने भारी मोदी लहर के बावजूद भी बीजेपी को नकार दिया था और ये सीट बसपा के खाते में चली गई थी. तब बसपा उम्मीदवार हाजी फजलुर्र रहमान ने बीजेपी के प्रत्याशी राघव लखनपाल को 22417 वोटों से हराया था. उस वक्त हाजी फजलुर्र रहमान को 5 लाख 14 हजार 139 वोट मिले थे, जबकि राघव लखनपाल को 4 लाख 91 हजार 722. तब कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद 2 लाख 7 हजार 68 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे. सियासी जानकार कहते हैं कि अगर उस वक्त बसपा से कोई गैरमुस्लिम उम्मीदवार होता, तो शायद इमरान तब सहारनपुर के सांसद बन जाते. मगर ये हो ना सका. 

आगे बढ़ने ले पहले ये भी बता दें कि सहारनपुर लोकसभा सीट पर जातिगत समीकरण क्या कहते हैं.

सहारनपुर लोकसभा सीट पर आबादी को देखा जाए तो वहां 56 फीसदी हिंदू और 41 फीसदी से ज्यादा जनसंख्या मुस्लिम समुदाय की है. जिनमें दलित मतदाताओं की तादाद 3 लाख के करीब है. जिले में राजपूत, गुर्जर, सैनी जैसी बिरादरियों के भी अच्छे खासे वोट हैं. वहां गुर्जर समुदाय के 1.5 लाख वोट हैं. 3.5 लाख स्वर्ण वोटर हैं. जबकि अन्य वोटर करीब 3 लाख हैं. 

आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सहारनपुर के मुस्लिम वोटर दो जगह बंट गए थे. लेकिन इस बार उनका रुझान इमरान की तरफ ज्यादा रहा. और दूसरों समुदाय के लोगों ने इमरान पर भरोसा जताया. इमरान ने भी बयान देते वक्त काफी संयम बरता. और सर्वसमाज की बात की. तो अब वापस आते हैं, 'रघुकुल रीत' और इमरान की जीत के कनेक्शन पर. असल में इस बार इमरान की जीत में सबसे बड़ा फैक्टर राजपूत समाज की बीजेपी से नाराजगी को माना जा रहा है. और ये नाराजगी कोई नई बात नहीं, बल्कि करीब दो साल से चली आ रही थी. 

सहारनपुर लोकसभा सीट पर पहले चरण में मतदान हुआ था. और ठीक उससे पहले किसान नेता और क्षत्रिय समाज के नेता ठाकुर पूरन सिंह ने अपनी बिरादरी से बीजेपी के खिलाफ वोट करने का आह्वान किया था. 

कांग्रेस नेता इमरान मसूद और क्षत्रिय नेता ठाकुर पूरन सिंह

भाजपा विरोध का कारण
ठाकुर पूरन सिंह ने कहा था 'देश में बहुत वर्षों से एक परम्परा बन गई कि राजपूत समाज को गाली दो और नेता बनो. इस परीपाटी में बहुत लोगों ने गालियां दी और नेता बनने का प्रयास किया. इसी दौरान लोगों ने मन बनाया. वो कहते हैं कि जब राजा मिहिर भोज जी का प्रकरण आया तो हमने कहा कि महापुरुष किसी एक जाति के नहीं होते. हमने हजारों मूर्तियां इस देश में लगाई मगर किसी एक मूर्ति के सामने भी हमने राजपूत सम्राट मिहिर भोज, राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान या राजपूत सम्राट महाराणा प्रताप नहीं लिखा. हमने लिखा क्षत्रिय सम्राट या महान सम्राट या फिर हमने लिखा हिंदू हृदय सम्राट.' 

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पूरन कहते हैं 'हमारा निवेदन रहा कि आप महापुरुष को छोटी सी व्यवस्था में बांटने का काम ना करो. हमारा निवेदन है कि ये लड़ाई दो समुदायों के बीच बहुत बड़ी हो जाएगी. तो उन्होंने उसके बदले में हमें क्या कहा, तुम मुगलों की औलाद हो. आप अंग्रेजों के साथ बेटी रोटी का रिश्ता रखते हो. तो कहीं ना कहीं समाज बहुत दिन से उबाल में था. फिर हमने भाजपा के बड़े नेतृत्व से अपने नेताओं से कहा कि इस बात को पहुंचाओ वहां. इन लोगों पर लगाम क्यों नहीं लगती. ऐसे लोग जो अपनी बिरादरी के साथ खड़े होकर शोषण कर रहे हैं दूसरी बिरादरी का. हमारे वोटो से सांसद बने. हिंदू धर्म के नाम पर सांसद बने और हिंदू हम भी हैं तो हमें गाली किस बात की? लेकिन इस बात पर ना भाजपा ने गौर किया, ना उन नेताओं ने किया और उसी का परिणाम है कि भाजपा के खिलाफ विरोध है.'

इमरान मसूद ने इस लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार के तौर पर अलग रणनीति अपनाई. जिसके तहत उन्होंने हर वर्ग तक पहुंचने की कोशिश की. जिले के हर विधानसभा क्षेत्र में जाकर जनसंपर्क किया. पूरे चुनाव प्रचार अभियान के दौरान इमरान आक्रमक नहीं हुए और अपने भाषणों में भी वो विपक्ष को घेरते नजर आए, लेकिन जनता से जुड़े मुद्दों को वे भूले नहीं. साथ ही उन्होंने पूरे चुनाव के दौरान कोई विवादित बयान या भाषण देने से भी परहेज किया. वे हर उस समुदाय और वर्ग तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश करते रहे, जो बीजेपी से नाराज थे. और उनकी कोशिश ये भी रही कि उनकी छवि एक सर्वमान्य नेता के तौर पर बनी रहे. काबिल-ए-गौर है कि सपा के लोकप्रिय विधायक उमर अली खान और MLC शाहनवाज खान समेत हर वर्ग के नेता उनके साथ नजर आए. मतदाताओं के सामने गठबंधन की एकजुटता दिखाई. और रही सही कसर पूरी की सहारनपुर के राजपूत मतदाताओं ने.

और भी मुद्दों को लेकर नाराजगी
ठाकुर पूरन सिंह ने कहा था 'मुद्दे ना बहुत हैं. आप ऐसे समझें कि हम राष्ट्रवादी हैं. अब जैसे ईडब्लूएस का मामला है. ईडब्लूएस में सबको 10 परसेंट आरक्षण देकर सभी लोगों को बताया गया कि हमने राजपूतों को 10 परसेंट आरक्षण दे दिया. स्वर्ण समाज को. लेकिन आप उसकी दूसरी बनागी अगर लगावें तो उन्होंने 10 परसेंट आरक्षण देने के बाद उसमें इतनी बाउंडेशन लगा दी कि उसका एक भी व्यक्ति को आज तक लाभ नहीं मिल पाया. तो वो बड़ा आक्रोष है. क्षत्रिय युवक संघ के द्वारा उसका विरोध किया गया. राजस्थान में बार-बार हमने कहा. केंद्र सरकार से हमने कहा कि आप इसमें सरलीकरण करो. जैसे अन्य आरक्षण में बंदिशें नहीं है. इस आरक्षण में बी बंदिशें नहीं होनी चाहिए.'

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उन्होंने आगे कहा था 'फिर हमारा सबसे बड़ा विरोध ये था कि जो हमारे समाज को गालियां दी जा रही थीं. वो हमारा बहुत बड़ा विरोध था. उसके बीच में अग्निवीर योजना आई. हमने अग्निवीर का बहुत बड़ा विरोध किया. ये इस देश की सुरक्षा के लिए सबसे कमजोर कानून बनाया. देश में इतनी बेरोजगारी है. इतने बच्चों को रोजगार के नाम पर झाड़ा पड़ा. अग्निवीर योजना भारत की सुरक्षा में कमजोरी का काम करेगी.'

समाज के लोगों को टिकट ना मिलना
पूरन का कहना था 'मेरा मुद्दा तो ये नहीं है. लेकिन समाज में इस पर उबाल है. और समाज ये महसूस करता है कि उत्तर प्रदेश की 7 परसेंट की आबादी को उसके हिसाब से भी टिकट नहीं मिल पाए. तो यह बहुत दुर्भाग्य है.'

वोट से चोट और बदला
वो कहते हैं 'पुरुषोत्तम रूपाला ने लोकतंत्र को बहुत शर्मसार किया. लोकतंत्र में इस प्रकार की बात कहना लोकतंत्र का अपमान है. मेरी समझ में आज तक ये बात नहीं आई कि 16 हजार हमारी माताओं बहनों ने जौहर कर लिया, उन आतातियों से अपने आपको बचाने के लिए. तो ये बात कहना कि हमारा रोटी बेटी का नाता है अंग्रेजों के साथ, मुगलों के साथ. तो उन 16 हजार रानियों को क्या ज़रूरत थी. एक बार नहीं 16 हजार बार जौहर किया. कभी जल जौहर कभी अग्नि जौहर. तो उस समाज को कितनी अंदर से ठेस पहुंचती होगी. जब उसे गाली दी जाती है, तो उन आत्माओं को गाली दी जाती है, जिसने इस संसार की लाज बचाई. पवित्रता के सारे रिश्तों को उन्होंने बचा कर रखा. उसके बाद पुरुषोत्तम रूपाला जैसे व्यक्ति, जो किसी योग्य नहीं हैं, वो एक समाज की मां बहनों को गाली देने के बाद संसद में जाना चाहता है. तो उस संसद में अपवित्रता होगी. वो मंदिर भी कहीं ना कहीं कलंकित होगा. और जिस तरीके से राजशेखर की पगड़ी पर हमला किया गया. तो ये कहीं ना कहीं राजपूतों में बड़ा उबाल है. और इस उबाल का बदला वो वोट की चोट से देना चाहते हैं.'

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प्राण जाए पर वचन ना जाई
इस बार तय कर लिया कि भाजपा को वोट नहीं देंगे? इस सवाल पर ठाकुर पूरन सिंह ने कहा था 'रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन ना जाई.' जब उनसे पूछा गया कि ये वचन किसके साथ है? सहारनपुर में किसके साथ? तो पूरन सिंह का साफ कहना था 'किसी के साथ नहीं. जो बीजेपी को हराएगा उसके साथ वचन है. पूरे देश में क्षत्रिय समाज इस स्वाभिमान की लड़ाई को लड़ रहा है. हमारी टिकटों की लड़ाई नहीं है. हमारी राजनीति भागीदारी की लड़ाई नहीं है. हमारी लड़ाई स्वाभिमान की है. हमारे महापुरुषों को अपमान का बदला, हमारी मां बहनों को गाली देने का बदला इस चुनाव में 100 प्रतिशत राजपूत समाज लेगा.'

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