इस साल फरवरी में ही ऐसी गर्मी पड़ी जैसी पहले मार्च आखिर में पड़ा करती थी. भारत की बात छोड़ दें तो भी ठंडे देश तक अब गर्मी से जूझ रहे हैं. सर्दियों में -20 से कम तापमान वाले देशों में ऐसी विंटर हीट वेव चली कि सरकारों को अपने नागरिकों को सचेत करना पड़ा. इस बीच बार-बार ग्लोबल वार्मिंग टर्म सुनाई दे रहा है. ग्लोबल वार्मिंग यानी दुनिया का तापमान लगातार बढ़ रहा है जिसकी वजह है कार्बन उत्सर्जन का बढ़ना. अमीर देश इसके लिए गरीब देशों पर ऊंगली उठा रहे हैं, लेकिन स्टडीज कुछ और ही कहती हैं. कई अध्ययन मानते हैं कि अमीर लोगों का कार्बन फुटप्रिंट आम लोगों से कई सैकड़ा या हजारों गुना ज्यादा होता है.
कुछ भी समझने से पहले एक बार कार्बन फुटप्रिंट की मोटा-मोटी जानकारी लेते चलें. कोई शख्स, संस्था या देश नियमित तौर पर जितनी कार्बन डाइऑक्साइड निकालता है, वही उसका कार्बन फुटप्रिंट है. सिर्फ कार्बन ही नहीं, बल्कि मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड जैसी कई दूसरी जहरीली गैसें भी हमारी कई तरह की एक्टिविटीज के दौरान निकलती हैं. एक साथ मिलाकर इन्हें ग्रीनहाउस गैस कहते हैं. ये दुनिया का तापमान बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं.
ये गैसें हमारी जीवनशैली से भी निकलती हैं, जैसे हम क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं, किस तरह ट्रैवल करते हैं और किस तरह छुट्टियां मनाते हैं. कोई शख्स छुट्टियां मनाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट से दूसरे राज्य जाए, या फिर कोई प्राइवेट याच लेकर समुद्र में कई दिनों तक पार्टी मनाए तो ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कौन ज्यादा पॉल्यूशन कर रहा है.
अध्ययन मानते हैं कि अमीर देश और सिर्फ कुछ अमीर ही अगर अपना फुटप्रिंट कुछ छोटा कर सकें तो ग्लोबल वार्मिंग की रफ्तार पर बड़ा ब्रेन लग सकेगा. पेरिस में एक संस्था है, वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब. (WIL) ये इसी चीज पर काम करती है कि कौन कितना प्रदूषण फैला रहा है. इसके मुताबिक दुनिया के सिर्फ 10 प्रतिशत अमीर लोग ही 50% से ज्यादा कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं. इसमें भी जो सबसे ज्यादा रईस हैं, उनका कार्बन फुटप्रिंट सबसे ज्यादा बड़ा है.
इंडियाना यूनिवर्सिटी के एंथ्रोपोलॉजी विभाग ने ये देखना चाहा कि किन-किन खरबपतियों का कार्बन फुटप्रिंट सबसे बड़ा है. इसके लिए साल 2020 की फोर्ब्स लिस्ट में से 2095 खरबपतियों की लिस्ट का रेंडम सर्वे हुआ. हालांकि इसके नतीजे उतने पक्के नहीं रहे क्योंकि बहुत से रईस कारोबारियों की निजी जिंदगी और सुख-सुविधाओं की जानकारी पब्लिक डोमेन में नहीं है. इसके बाद भी कई बातें खुलकर सामने आईं.
रूसी पॉलिटिशन और कारोबारी रोमन अब्रामोविच का नाम दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वालों में है. लगभग 20 खरब डॉलर के मालिक रोमन का कारोबार रूस ही नहीं, दुनिया के बहुत से देशों में फैला है. लंदन का चेल्सी फुटबॉल क्लब, जिसमें बहुत कम ही अमीरों को एंट्री मिल पाती है, वो भी इसी की है. ऑइल और गैस का बिजनेस करने वाले इस व्यावसायी पर अक्सर आरोप लगा कि उसने बिजनेस में ही कई मानकों की अनदेखी की, जिससे प्रदूषण फैला.
निजी जिंदगी में भी इस रूसी बिजनेसमैन का कार्बन फुटप्रिंट काफी बड़ा है. उसके पास कई प्राइवेट विमान और कई याच हैं. एक कस्टमाइज बोइंग 767 है, जिसमें 30 सीटर डाइनिंग रूम तक है. यानी हवा और पानी दोनों ही जगहों पर उसके कारण पॉल्यूशन बढ़ा. साल 2018 में इस कारोबारी ने अकेले अपने निजी जिंदगी में ऐशोआराम के साथ लगभग 34 हजार मैट्रिक टन कार्बन उत्सर्जित किया.
इनके बाद काफी सारे कारोबारियों का नाम आता है, जो अपनी लाइफस्टाइल के चलते बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार माने जा हैं. ये बात अलग है कि सुरक्षा वजहों से ज्यादातर खरबपति अपनी लाइफस्टाइल छिपाकर रखते हैं. यही कारण है कि इसपर पक्का डेटा नहीं दिया जा सका कि किसका कार्बन फुटप्रिंट लगभग कितना बड़ा होगा.
नवंबर 2022 में ऑक्सफेम की एक रिपोर्ट ने दावा किया दुनिया के 125 खरबपति ही हर साल लगभग 400 मिलियन मैट्रिक टन कार्बन उत्सर्जित कर रहे हैं. साल 2021 में दुनिया का कुल कार्बन एमिशन लगभग 37 बिलियन मैट्रिक टन था. यानी पूरी दुनिया की आबादी एक तरफ और सवा सौ खरबपति एक तरफ. इसके बाद भी वे चेत नहीं रहे हैं.
ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार इन दौलतमंद लोगों को उनकी जिम्मेदारी याद दिलाने के लिए वेस्ट में समय-समय पर कई कैंपेन चलते रहे. जैसे साल 2014-15 के दौरान कैलीफोर्निया में भयंकर सूखा पड़ा. लोग पानी और अनाज की कमी से परेशान थे, ऐसे में रईस लोग वे सारे काम कर रहे थे, जिनसे पानी बर्बाद होता है. तब वहां की मीडिया और आम लोगों ने ड्राट शेमिंग अभियान चलाया. वे लोगों को कारें धोने और लॉन को हराभरा रखने या स्विमिंग करने पर शर्मिंदा करने लगे. स्वीडन में तीन साल पहले ही एक नया टर्म आया- flygskam, यानी फ्लाइंग शेम. कम दूरी के लिए भी हवाई यात्रा करने वालों के खिलाफ ये अभियान था. इसका काफी असर भी हुआ और लोग छोटी दूरी के लिए बस या ट्रेन से सफर करने लगे.
ट्रैवल के दौरान निकलने वाले कार्बन की बात करें तो इसपर कई अध्ययन हो चुके. ऐसा ही एक अध्ययन बताता है कि पूरी दुनिया में सालाना उत्सर्जित हो रहे कुल कार्बन में लगभग 10 प्रतिशत कार्बन में यात्राओं का हाथ है. इसे इस तरह से समझें, जैसे आप लंदन से न्यूयॉर्क की फ्लाइट लें तो उस यात्रा के दौरान जितनी कार्बन निकलेगी, उसे सोखने में एक एकड़ में फैले घने जंगल को एक साल लग जाता है. पर्यावरण के लिए इतनी खराब है हवाई यात्राएं. स्वीडन और नॉर्वे जैसे कई देश इसपर भी जागरुकता ला रहे हैं.