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Super Computer से कम नहीं है हमारा दिमाग, क्वांटम कंप्यूटर की तरह करता है काम

वैज्ञानिक बड़े और बेहतर Quantum computers बनाने के लिए प्रयास करते हैं, लेकिन हो सकता है कि जिस क्वांटम कंप्यूटर को लेकर वैज्ञानिक इतनी मेहनत कर रहे हैं, वैसा शक्तिशाली कंप्यूटर पहले से ही हमारे सिर के अंदर छिपा हो. हाल ही में किए गए शोध से पता चलता है कि हमारा दिमाग किसी सुपर कंप्यूटर से कम नहीं है.

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सुपर कंप्यूटर से कम नहीं है इंसानी दिमाग (Photo: Gerd Altmann/Pixabay)
सुपर कंप्यूटर से कम नहीं है इंसानी दिमाग (Photo: Gerd Altmann/Pixabay)

जर्नल ऑफ फिजिक्स (Journal of Physics Communications) में हाल ही में प्रकाशित शोध के मुताबिक, ट्रिनिटी कॉलेज डबलिन के वैज्ञानिकों की एक टीम ने मानव मस्तिष्क और उसके कामकाज की जांच करने के लिए क्वांटम ग्रैविटी (Quantum gravity) की मौजूदगी दिखाने के लिए बनाए गए एक कॉन्सेप्ट को मॉडिफाई किया है. इस शोध में वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हमारा दिमाग क्वांटम कम्प्यूटेशन (Quantum computation) का इस्तेमाल कर सकता है.

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दिमाग के फंक्शन और सचेत जागरूकता (Conscious awareness) और शॉर्ट टर्म मेमोरी फंक्शन (Short-term memory function) के बीच संबंध से पता चलता है कि क्वांटम प्रोसेस भी संज्ञानात्मक (Cognitive) और सचेत मस्तिष्क के कामकाज (Conscious brain functioning) का एक हिस्सा हैं.

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हमारा दिमाग क्वांटम कम्प्यूटेशन का इस्तेमाल कर सकता है.(Photo: Anna Shvets/Pexels)

अगर टीम के निष्कर्षों की पुष्टि की जाती है, तो यह हमें समझने में मदद करेगा कि हमारा दिमाग कैसे काम करता है. साथ ही, इसे कैसे संरक्षित किया जा सकता है या इसे कैसे रिपेयर किया जा सकता है. वे शायद बेहतर तकनीक की खोज करके, और भी बेहतर क्वांटम कंप्यूटर बनाने पर काम कर सकते हैं.

ट्रिनिटी कॉलेज इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंस (TCIN) के मुख्य फिजिसिस्ट और शोध के लेखक डॉ क्रिश्चियन केर्सकेन्स (Dr Christian Kerskens) का कहना है कि हमने क्वांटम ग्रैविटी की मौजूदगी को साबित करने के लिए हमारा मानना है कि आप ज्ञात क्वांटम सिस्टम लेते हैं, जो एक अज्ञात सिस्टम के साथ इनटरैक्ट करते हैं. अगर ज्ञात सिस्टम इनटैंगल होते हैं, तो अज्ञात सिस्टम क्वांटम सिस्टम ही होना चाहिए. 

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ब्रेन फंक्शन न्यूक्लियर स्पिन के साथ इन्टरैक्ट करते हैं (Photo: Gerd Altmann/Pixabay)

उन्होंने आगे कहा कि हमने हमारे एक्सपेरिमेंट के लिए, ज्ञात सिस्टम के तौर पर 'ब्रेन वॉटर' के प्रोटॉन स्पिन का इस्तेमाल किया. 'ब्रेन वाटर' हमारे दिमाग में स्वाभाविक रूप से तरल के रूप में बनता है और प्रोटॉन स्पिन को MRI की मदद से मापा जा सकता है. इसके बाद, उलझे हुए स्पिनों खोजने के लिए एक खास एमआरआई डिज़ाइन का इस्तेमाल करके, हमें एमआरआई सिग्नल मिले जो दिल की धड़कन से पैदा होने वाली क्षमता, EEG सिग्नल की ही तरह दिखता है. ईईजी इलेक्ट्रिकल ब्रेन करंट को मापते हैं.

 

डॉ केर्सकेन्स का कहना है कि अगर उलझाव ही यहां एकमात्र संभावित स्पष्टीकरण है, तो इसका मतलब यह होगा कि मस्तिष्क की प्रक्रियाओं ने न्यूक्लियर स्पिन के साथ इन्टरैक्ट किया होगा. इसका नतीजा यह है कि मस्तिष्क के उन फंक्शन को क्वांटम होना चाहिए. चूंकि ये ब्रेन फंक्शन शॉर्ट टर्म मेमोरी परफॉर्मेंस और conscious awareness से भी जुड़े थे, तो यह माना जा सकता है कि वे क्वांटम प्रोसेस हमारे कॉग्निटिव और कॉशियस ब्रेन फंक्शन का एक अहम हिस्सा हैं.

डॉ क्रिश्चियन केर्सकेन्स का कहना है कि क्वांटम ब्रेन फंक्शन बता सकते हैं कि खास परिस्थितियों में, जब हम निर्णय लेने या कुछ नया सीखने की बात करते हैं, तो हम कभी-कभी सुपर कंप्यूटर से भी बेहतर प्रदर्शन क्यों करते हैं. 

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