अपने 77 साल के इतिहास में पाकिस्तान आधे से अधिक समय तक अलग-अलग सैन्य शासनों के अधीन रहा. जब भी लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर सरकार आई उसे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ा और आज तक पाकिस्तान का कोई भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. लेकिन तमाम आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा पड़ोसी मुल्क वर्तमान में एक ऐसे राजनीतिक दौर से गुजर रहा है जो काफी अलग है.
सत्ता में एक ऐसी सरकार है जो चुनाव में धांधली के आरोपों के बाद भी लोकतांत्रिक तरीके से चुने जाने का दावा कर रही है. लेकिन लोकतांत्रिक शासन के लिए अनिवार्य विपक्ष नदारद है. पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान जेल में बंद हैं और अब पाक पीएम शहबाज शरीफ की अगुवाई वाली सरकार उनकी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ पर बैन लगाने की तैयारी कर रही है. खुद सूचना मंत्री ने इसकी जानकारी दी है. पिछले साल इमरान की गिरफ्तारी के बाद हुई हिंसा से ही पीटीआई को बैन करने की खबरें आती रही हैं जिस पर अब मुहर लग गई है.
अगस्त 2018 से अप्रैल 2022 तक पाकिस्तान की सत्ता पीटीआई के हाथ में थी. अगर इस पर बैन लगता है तो यह पाकिस्तान में कोई नई बात नहीं होगी. पाकिस्तान में राजनीतिक दलों को प्रतिबंधित करने का इतिहास काफी पुराना रहा है. 1954 से अब तक पाकिस्तान में पांच पार्टियों को बैन किया जा चुका है.
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ पाकिस्तान
पाकिस्तानी न्यूज वेबसाइट जियो टीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई 1954 में पाकिस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी को 1951 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयास के आरोप में प्रतिबंधित कर दिया गया था. मेजर-जनरल अकबर खान के नेतृत्व वाली इस पूरी प्लानिंग को रावलपिंडी कॉन्सपिरेसी केस के रूप में जाना जाता है जिसका कथित तौर पूर्व सोवियत संघ समर्थन कर रहा था.
जनरल अकबर, उनकी पत्नी, मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, दर्जनों सैन्य अधिकारी और कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सैयद सज्जाद ज़हीर को गिरफ्तार कर लिया गया था. उन पर केस चलाया गया और सलाखों के पीछे डाल दिया गया.
अवामी लीग
26 मार्च 1971 को तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल याह्या खान ने शेख मुजीबुर रहमान की अवामी लीग पर बैन लगा दिया था. इसका ऐलान करते हुए उन्होंने कहा, 'शेख मुजीबुर रहमान का असहयोग आंदोलन की देशद्रोह है. उन्होंने और उनकी पार्टी ने तीन हफ्ते से अधिक समय तक कानूनी प्राधिकार की अवहेलना की है. उन्होंने पाकिस्तान के झंडे का अपमान किया है और राष्ट्रपिता की तस्वीर को अपवित्र किया है. उन्होंने एक समानांतर सरकार चलाने की कोशिश की है. अशांति, आतंक और असुरक्षा पैदा की है. आंदोलन के नाम पर कई हत्याएं कीं.'
नेशनल अवामी पार्टी
नेशनल अवामी पार्टी (NAP) के वली खान गुट का गठन 1967 में मूल एनएपी में मौलाना भशानी और अब्दुल वली खान के बीच विभाजन के बाद हुआ था. बांग्लादेश (पूर्व पूर्वी पाकिस्तान) की आजादी के बाद वली खान गुट को आगे चलकर नेशनल अवामी पार्टी का नाम दिया गया. आठ साल में एनएपी पर दो बार प्रतिबंध लगाया गया. पहली बार 1971 में याह्या खान की सरकार के तहत और दूसरी बार 1975 में जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार द्वारा.
जय सिंध कौमी महाज़-अरिसर
मई 2020 में, पाकिस्तान के गृह मंत्रालय ने 'उचित कारणों' का हवाला देते हुए दो कथित उग्रवादी समूहों -सिंधुदेश लिबरेशन आर्मी और सिंधुदेश रिवोल्यूशनरी आर्मी- के साथ जय सिंध कौमी महाज़-अरिसर (JSQM-A) को गैरकानूनी घोषित कर दिया. कहा गया कि ये संगठन आतंकवाद में शामिल हैं. यह पार्टी चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विरोध कर रही थी.
तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान
पाकिस्तान की पंजाब सरकार ने 15 अप्रैल 2021 को हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसमें कुछ पुलिसकर्मियों की जान चली गई थी. प्रतिबंध के बावजूद पार्टी ने चुनाव में भाग लेना जारी रखा क्योंकि उसे ईसीपी (पाकिस्तान चुनाव आयोग) द्वारा सूची से बाहर नहीं किया गया था. प्रतिबंधित संगठन ने अक्टूबर 2021 को विरोध प्रदर्शन किया, जिसके बाद सरकार उसी वर्ष 7 नवंबर को पार्टी पर से प्रतिबंध हटाने पर सहमत हुई.