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सीतापुर से ग्राउंड रिपोर्ट: कैसे आदमखोर कुत्तों का निवाला बन रहे मासूम

वफादारी की कसौटी पर इंसानों से ज्यादा कुत्तों की मिसाल दी जाती है. लेकिन यूपी की राजधानी लखनऊ से 80 किलोमीटर दूर सीतापुर में कुत्तों से वफादारी की तमगा का छीन लिया गया है. क्योंकि सीतापुर के कुत्ते आदमखोर हो गए हैं. सीतापुर में आते ही कुत्तों के बारे में राय बदल जाती है. कुत्तों के नाम पर यहां आतंक फैला हुआ है. लेकिन क्या वाकई सीतापुर के कुत्ते आदमखोर हो गए हैं.

सीतापुर में कुत्तों के आतंक की वजह से बच्चे घरों में कैद होकर रह गए हैं सीतापुर में कुत्तों के आतंक की वजह से बच्चे घरों में कैद होकर रह गए हैं
परवेज़ सागर/शम्स ताहिर खान
  • सीतापुर,
  • 19 मई 2018,
  • अपडेटेड 3:44 PM IST

वफादारी की कसौटी पर इंसानों से ज्यादा कुत्तों की मिसाल दी जाती है. लेकिन यूपी की राजधानी लखनऊ से 80 किलोमीटर दूर सीतापुर में कुत्तों से वफादारी की तमगा का छीन लिया गया है. क्योंकि सीतापुर के कुत्ते आदमखोर हो गए हैं. सीतापुर में आते ही कुत्तों के बारे में राय बदल जाती है. कुत्तों के नाम पर यहां आतंक फैला हुआ है. लेकिन क्या वाकई सीतापुर के कुत्ते आदमखोर हो गए हैं. यही जानने के लिए आजतक की टीम सीतापुर पहुंची ताकि सच का पता लगाया जा सके.

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टिकरिया गांव, सीतापुर

एक सड़क. दोपहर का वक्त है. अभी-अभी स्कूल की छुट्टी हुई है. बच्चे घर को लौट रहे हैं. मगर अलग-अलग या अकेले नहीं, बल्कि एक साथ. उनसे बात करने पर कुत्तों का आतंक साफ दिखाई देता है. बच्चों में खौफ है.

ख़ैराबाद गांव, सीतापुर

बस कुछ देर पहले किसी ने गांव में एक कुत्ता देखा. खबर आग की तरह फैल गई. लोग उस खेत के इर्द-गिर्द जमा हो गए. लाठी-डंडे से लैस. पुलिस को भी खबर दी गई. सबने मिल कर कुत्तों को ढूंढना शुरू किय़ा, पर कुत्ता नहीं मिला.

गुरपलिया गांव, सीतापुर

गांव के लोग लगातार पहरे पर हैं. बच्चों को घर में रख कर खुद बाहर कुत्तों पर नजरें गड़ाए हैं. तभी उन्हें एक जगह कुत्ते के होने की खबर मिलती है. पुलिस भी मौके पर पहुंचती है. एक कुत्ता दिखाई भी दे जाता है. इसके बाद डंडे से कुत्ते पर पर हमला शुरू हो जाता है. कुत्ता मारा जाता है.

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खैरमपुर, गांव, सीतापुर

दो-चार दिन से अफवाहें तो उड़ रही थीं. पर कुत्तों ने किसी पर हमला नहीं किया था. मगर गुरूवार यानी 17 मई को अचानक खैरमपुर गांव में एक बच्ची पर फिर से हमला हुआ और बाद में उस, बच्ची ने अस्पताल में दम तोड़ दिया. कुत्तों का आतंक फिर से फैल चुका था.

निगरानी के लिए बनाए मचान

सीतापुर के ज्यादातर गांव में आजकल कुछ ऐसा ही मंज़र है. कुत्तो के खौफ ने गांव के गांव लोगों के रहन, सहन, उनकी रुटीन और खास तौर पर बच्चों की मौज-मस्ती तक छीन ली है. यहां तक कि गांव के खेतों तक में रखवाली के लिए अब ज़मीन की बजाए ऊंचे मचान पर ठिकाना बनाया जा रहा है.

मुख्यमंत्री योगी ने किया इलाके का दौरान

दरअसल, पिछले साल नवंबर से अब तक सीतापुर में कुत्तों ने जो कोहराम मचा रखा है, उसका नतीजा ये है कि खुद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी तक को गांव का दौरा करने के लिए मजबूर होना पड़ा. 17 मई से पहले तक 13 बच्चे अज्ञात आदमखोर कुत्तों का शिकार हो चुके हैं. इतने सारे बच्चों की मौत के बाद प्रशासन को भी मामले की गंभीरता समझ में आई. शुरूआती दिनों में अंधाधुंध कुत्तों का एनकाउंटर करने के बाद भी जब बच्चों की मौत का सिलसिला नहीं रुका तब पुलिस को भी मामले की गहन छानबीन की जरूरत महसूस हुई. इसके बाद छानबीन में जो नतीजे निकले और जो एक्शन लिए गए वो ये थे.

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वन विभाग और पुलिस बल की तैनाती

प्रशासन की मानें तो बच्चों पर हमला करने वाले कुत्तों की तादाद करीब 50 है. हमले से पहले ये कुत्ते अमूमन मेला मैदान में इकट्ठा होते हैं. मेला मैदान खैराबाद में बीसीएम अस्पताल के क़रीब है. मैला मैदान से ही कुत्ते अलग-अलग गांव का रुख करते हैं. बच्चों पर हमला करने के बाद वो गायब हो जाते हैं. केस स्टडी के बाद ऐसे सभी गांव को 45 ज़ोन में बांटा गया है. इनमें 22 जोन को अतिसंवेदनशील घोषित किया गया है. 10 जोन को संवेदनशील और 13 जोन में निगरानी कड़ी कर दी गई है. एनिमल बर्थ कंट्रोल सेंटर को भी मुहिम में लगाया गया है. वन विभाग, पुलिस और करीब सौ पुलिस जिप्सियों की भी तैनाती की गई है.

हमलावर कुत्ते हैं या फिर कोई और जानवर?

हालांकि पुलिस प्रशासन करीब दो महीने से सीतापुर में मुस्तैद हैं. इस दौरान करीब 50 से ज्यादा कुत्तों का मार भी दिया गया. जबकि बहुत से कुत्तों को पकड़ कर दूसरी तरह भेजा गया. मगर बच्चों पर हमले का सिलसिला नहीं थम रहा. अब प्रशासन को मानना है कि 19 मई से स्कूलों की छुट्टी होने के बाद शायद खतरा थोड़ा सा टल जाए. क्योंकि बच्चे तब बाहर नहीं निकलेंगे. पर क्या कुत्तों से आतंक के निजात का यही रास्ता है. क्या बच्चों पर हमला करने वाले इलाके के ही कुत्ते हैं. या हमलावर डॉग फैमिली का कोई और जानवर है?

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हमारे बीच कहां से आते हैं कुत्ते

अब सवाल ये है कि हमारे सामाजिक ताने-बाने में मुश्किल पैदा करने के लिए ये कुत्ते आते कहां से हैं. तो इसकी सबसे अहम वजह कूड़ा है. कूड़े के आसापास ही सबसे ज़्यादा कुत्ते मंडराते हैं, क्योंकि वहां से उन्हें खाना मिलता है.

* पूरी दुनिया में आवारा कुत्तों की कुल तादाद 20 से 60 करोड़ है.

* अकेले यूरोप में 10 करोड़ आवारा कुत्ते हैं.

* जबकि भारत में ये तादाद 3 करोड़ है.

* यानी भारत में हर 42 लोगों पर एक आवारा कुत्ता.

* दुनिया के किसी भी देश में भारत में सबसे ज़्यादा आवारा कुत्ते.

* अकेले दिल्ली में ढाई से 4 लाख आवारा कुत्ते हैं.

* दिल्ली में हर महीने कुत्तों के काटने के करीब 8 हज़ार मामले सामने आते हैं.

* यानी दिल्ली में हर 6 मिनट में आवारा कुत्ते किसी ना किसी को काटते हैं.

* हर साल भारत में करीब 20 हज़ार लोग कुत्तों के काटने की वजह से मारे जाते हैं.

* भारत में रेबीज़ से मरने वालों की तादाद दुनिया की कुल मौतों का 36% है.

* हर साल दुनियाभर में डेढ़ करोड़ लोग रेबीज़ का ट्रीटमेंट कराते हैं.

* रेबीज़ से संक्रमित होने वाले 55 हज़ार लोग हर साल मारे जाते हैं.

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* कुल रेबीज़ के 95% मामले अकेले एशिया और अफ्रीकी देशों में होते हैं.

भारत में ब्रिटिश काल के दौरान आवारा कुत्तों को मारने की कवायद शुरू हुई थी और कुत्तों की आबादी को कंट्रोल करने के लिए हर साल 50 हज़ार कुत्तों को मार दिया जाता था. मगर साल 1960 में भारत में प्रिवेंशन ऑफ क्रुएलिटी टू एनिमल एक्ट पास किया गया, जिसके तहत कुत्तों को मारने पर पाबंदी लगा दी गई.

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