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4 जून: आज ही के दिन चीनी सेना ने अपने ही स्टूडेंट्स पर चलाई थी गोलियां

aajtak.in
  • 04 जून 2020,
  • अपडेटेड 10:00 AM IST
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आज यानी 4 जून को तियानमेन चौक नरसंहार की 31वीं बरसी है. आज से ठीक 31 साल पहले 4 जून, 1989 को चीन ने वो नजारा देखा जिसकी पूरी दुनिया में निंदा हुई. ये वो समय था जब हॉन्गकॉन्ग में स्वायत्तता की मांग को लेकर चीन विरोधी प्रदर्शन हो रहे थे. चीन ने लाखों की संख्या में जुटने वाले प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के संकेत दिए थे और फिर ऐसा कदम उठा लिया. आइए जानते हैं इस पूरे हादसे के बारे में.

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कम्युनिस्ट पार्टी के उदारवादी नेता हू याओबैंग की मौत के खिलाफ हजारों छात्र तियानमेन चौक पर प्रदर्शन कर रहे थे. चौक पर जमा लोकतंत्र समर्थकों पर चीनी सरकार ने सैन्य कार्रवाई की. 3 और 4 जून की दरम्यानी रात को सेना ने प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग की. सेना ने उन पर टैंक चढ़ा दिया था. चीनी लोग कहते हैं कि उस घटना में 3000 लोग मारे गए थे, हालांकि चीनी सरकार कहती है कि 200 से 300 लोग मारे गए थे. जबकि, यूरोपीय मीडिया ने 10 हजार लोगों के नरसंहार की आशंका जताई थी.

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हर साल बरसी के मद्देनजर बीजिंग में सुरक्षा कड़ी कर दी जाती है. इस बार भी तियानमेन चौक पर पुलिस के जवान पहरा दे रहे हैं. सेना भी तैनात है ताकि प्रदर्शनकारियों को रोका जा सके. दरअसल, इस घटना के बाद से चीनी सरकार वैश्विक स्तर पर कड़ी आलोचना हुई. इसके बाद से अब तक चीनी सरकार सर्तकता बरतती है. वह तियानमेन चौक पर नरसंहार से जुड़े किसी भी प्रकार के मेमोरियल नहीं होने देती. 

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चीन के रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंगहे ने 1989 में तियानमेन चौक पर की गई कार्रवाई सही नीति बताया था. जनरल वेई फेंगहे के बयान के अनुसार ये  घटना एक राजनीतिक अस्थिरता थी. केंद्र सरकार ने संकट को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए थे. हालांकि, दुनियाभर के रक्षा मंत्रियों ने वेई ने पूछा कि क्यों अब भी चीन के लोग ये कहते हैं कि चीन की सरकार ने घटना को सही तरीके से नहीं संभाला.

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आज भी चीन तियानमेन चौक नरसंहार से जुड़े सारे सबूत मिटाने में जुटा है. टोरंटो यूनिवर्सिटी और हांगकांग यूनिवर्सिटी के साल 2019 के एक सर्वे रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ था कि चीन की सरकार इस घटना से जुड़े 3200 से अधिक सबूतों को मिटा चुकी है. कुछ को सेंसर कर दिया है. चौक पर अगर कोई विदेशी और चीनी मीडिया का व्यक्ति जाना चाहता है तो उस जोन में उसे नहीं जाने दिया जाता.

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बता दें कि 1989 के मई के आखिरी दो दिन और जून के शुरुआती चार दिन को चीन में लोकतंत्र की स्‍थापना से जोड़ा जाता है. हालांकि, 1949 में ही चीन में छिड़े गृह युद्ध में कम्युनिस्ट पार्टी ने जीत हासिल कर अध्यक्ष माओत्से तुंग के नेतृत्व में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्‍थापना की थी. लेकिन इस सरकार से लोग खफा थे.

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चीनी सरकार से नाखुश लोग दबी आवाज में इसका विरोध कर रहे थे. लेकिन मई में हू याओबैंग की मौत हो गई. इसे हत्या मानकर छात्रों समेत हजारों लोग सड़कों पर उतरने लगे. फिर तियानमेन चौक पर छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया. तीन दिन में ही चौक पर हजारों छात्र पहुंच गए. आंदोलन ने बड़ा रूप ले लिया. चौक पर आने वाले प्रदर्शनकारी लगातार संस्थागत भ्रष्टाचार को खत्म करने की मांग कर रहे थे.

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30 मई को ही तियानमेन चौक पर छात्रों ने लोकतंत्र की मूर्ति स्‍थापित कर दी. इस मूर्ति की चर्चा चिंगारी की तरह पूरे देश में फैली. इसके बाद पूरे देश में विरोध होने लगा. 2 जून की देर रात कम्युनिस्ट पार्टी ने मार्शल लॉ लागू कर दिया. 3 जून की रात से ही चौक से हजारों छात्रों हटाने का अभियान शुरू हो गया. 4 जून 1989 को देंग जियांगपिंग और दूसरे नेताओं ने सेना को आदेश दिया कि चौक को पूरी तरह खाली करा‌ लिया जाए. प्रदर्शकारियों ने चौक छोड़ने को मना कर दिया. जब प्रदर्शकारी चौक से नहीं हटे, तब सेना ने फायरिंग शुरू कर दी. प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए चीनी सेना मिलिट्री टैंक लेकर पहुंची थी.

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