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लॉकडाउन जरूरी, आइसोलेशन न होने पर प्लेग से मरे थे हजारों लोग

aajtak.in
  • 26 मार्च 2020,
  • अपडेटेड 6:16 PM IST
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आज जब कोरोना महामारी देशभर में फैल चुकी है और इससे प्रभावित लोगों की संख्या सैकड़ों में पहुंच गई है. ऐसे में इसे रोकने का एक ही रास्ता नजर आ रहा है, वो है आइसोलेशन और सोशल डिस्ट‍ेंसिंग. भारत में इसे मानने की हमारे पास वजह भी है और इतिहास का एक बड़ा सबक भी. जी हां, ये घटना है 19वीं शताब्दी के उस दौर की है जब सोशल डिस्टेंसिंग न होने के कारण हजारों लोगों ने प्लेग की वजह से अपनी जान गंवा दी थी. पढ़ें- क्या हुआ था तब, कैसे हुआ था करोड़ों का नुकसान.

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एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 1994 में देश को प्लेग महामारी से 1800 करोड़ का नुकसान हुआ. ये प्लेग भी वायरस संक्रमण था जो कि जानवरों के वायरस से इंसानों में पहुंचा था. तब वो दौर था जब सूरत से हजारों लोगों ने इस महामारी के फैलने के बाद पलायन किया था.

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पलायन गुजरात के सूरत शहर से शुरू हुआ. यहां रहने वाले लोग जब प्लेग की चपेट में आकर मरने लगे तो यूपी-बिहार से आकर यहां बसे लोग भी वापस अपने घरों की पलायन करने लगे. देखते ही देखते सूरत शहर से 25 फीसदी आबादी बाहर चली गई.

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सूरत में मजदूरी करने वालों में सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश और बिहार के गरीब मजदूरों की थी. हालत ये हुई कि वो अपने घरों को लौटे तो उनके साथ प्लेग का वायरस भी वहां पहुंचा और जिससे बीमारी ने विकराल रूप ले लिया.

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बताते हैं कि 19वीं शताब्दी में प्लेग ने भारत में दस्तक दे दी थी. साल 1815 में तीन साल के भीषण अकाल के बाद गुजरात, कच्छ और काठियावाड़ में धीरे- धीरे प्लेग रोग फैलने लगा. लोगों को प्लेग ने लीलना शुरू किया तो दहशत का माहाैल पैदा हो गया.

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साल 1836 में पाली (मारवाड़) से ये रोग मेवाड़ पहुंच गया, फिर मेवाड़ में इस तरह महामारी ने अपना तांडव मचाया कि लोग भयभीत होने लगे. ये चूहों से फैली महामारी थी. हालत ये थी कि लोग अस्पताल भी नहीं पहुंच पाते और उनकी मौत हो जाती.

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आपको बता दें कि उस दौर में भी आइसोलेशन की हिदायत दी गई थी. मेवाड़ के राजा और वहां के प्रशासन ने लोगों से कहा कि चूहों के मरते ही घर खाली करके चले जाएं. जिसे ये महामारी लग गई है, उसे एकदम आइसोलेट करके अलग रखा जाए, लेकिन उस वक्त लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया.

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नतीजा ये हुआ कि प्लेग से पूरे के पूरे गांव साफ होने लगे. हजारों लोग जब एक साथ मरने लगे तो कई लोग अपना घर छोड़कर खेतों में जाकर रहने लग गए. वे मरीजों से दूर भागते फिर भी ये बीमारी इतनी फैल चुकी थी कि हजारों लोगों की जान चली गई. आखिरकार आइसोलेशन और बचाव ने ही इससे निजात दिलाई थी.

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ब्रिटिश अखबारों ने इसे श्राप तो किसी ने ईश्वर का प्रकोप कहा, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर वायरस का संक्रमण हो तो हमें ये सोचकर नहीं बैठना चाहिए कि यह मुझे या मेरे आसपास नहीं है तो हम क्यों डरें. ऐसे में हर किसी की जिम्मेदारी बनती है कि वो डॉक्टरों, विशेषज्ञों और प्रशासन के दिशानिर्देशों का पालन करें.

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