भारत में 12 करोड़ से अधिक छात्र प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे हैं, जो भारत की कुल स्कूल जाने वाली आबादी का लगभग 50 प्रतिशत है. आइए ऐसे में जानते हैं प्राइवेट स्कूलों में कैसी होती है पढ़ाई. क्या कहती है रिपोर्ट.
अंग्रेजी में पढ़ाई के कारण माता-पिता अपने बच्चों का दाखिला प्राइवेट स्कूलों में करवाते हैं. वहीं हालिया रिपोर्ट बताती है कि प्राइवेट स्कूलों की पढ़ाई उस तरह बिल्कुल नहीं होती है, जैसा आप और हम सोचते हैं.
‘State of the Sector’ रिपोर्ट के अनुसार, "कक्षा 5 में रूरल (ग्रामीण) प्राइवेट स्कूल के लगभग 60 प्रतिशत छात्र साधारण विभाजन (simple division problem) की समस्या को हल नहीं कर सकते हैं, 5वीं कक्षा के रूरल प्राइवेट स्कूल के कक्षा 5वीं के छात्र कक्षा 2 स्तर का ग्राफ नहीं पढ़ सकते हैं."
हालांकि, अकेले भारत के ग्रामीण हिस्सों में स्थिति खराब नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया है, "प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले सबसे अमीर 20 फीसदी घरों के छात्रों में से, आठ से 11 साल के बीच केवल 56 फीसदी बच्चे ही कक्षा 2 के स्तर का पैराग्राफ पढ़ सकते हैं."
'National Assessment Survey' की रिपोर्ट के अनुसार प्राइवेट स्कूलों में कक्षा 10वीं के छात्रों का औसत स्कोर पांच में से चार विषयों में 50 प्रतिशत से कम था.
यह पाया गया कि प्राइवेट स्कूलों में, माता-पिता अपने बच्चों की पढ़ाई से अवेयर नहीं हैं. रिपोर्ट के अनुसार, 60 प्रतिशत प्राइवेट स्कूल कक्षा 10 तक बोर्ड ग्रेड को आगे नहीं बढ़ाते हैं. जिस कारण अभिभावकों के लिए इन स्कूलों की गुणवत्ता को आंकना कठिन हो जाता है.
इंग्लिश मीडियम
प्राइवेट स्कूलों में माता-पिता अपने बच्चों का दाखिला इसलिए करवाते हैं ताकि उनकी पढ़ाई शुरुआत से ही इंग्लिश में हो. ये एक मात्र वजह है जिस कारण अधिकतर अभिभावक प्राइवेट स्कूलों का रुख करते हैं.
राइट टू एजुकेशन (RTI) एक्ट के अनुसार, सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित छात्रों के लिए प्राइवेट स्कूलों में 25 प्रतिशत आरक्षण अनिवार्य है.