बुधवार को देश की नई शिक्षानीति लागू हो गई. इसमें स्कूल से लेकर कॉलेज स्तर तक कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं जो कि जल्द ही आपको देखने को मिलेंगे. इन नये बदलावों की कड़ी में अब बच्चे के एग्जाम और रिपोर्ट कार्ड का भी सिस्टम बदलने वाला है. जानिए अब जब सरकार ने तय किया है कि बच्चों के रिपोर्ट कार्ड नहीं बनेंगे, उनकी परफार्मेंस कैसे तय होगी.
नई शिक्षानीति पर मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा है कि अब बच्चे का रिपोर्ट कार्ड नहीं होगा. उसकी जगह उन्हें प्रोग्रेस कार्ड मिलेगा. अब ये छात्रों पर निर्भर करता है कि वो क्या विषय लेना चाहते हैं, अब वो इंजीनियरिंग के साथ संगीत भी ले सकते हैं.
उन्होंने कहा कि नई शिक्षानीति से उच्च शिक्षा में बहुत बदलाव होंगे. नई शिक्षा नीति में ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा दिया जाएगा. हमने उच्च शिक्षा के लिए एक आयोग बनाया है. इसके लिए चार काउंसिल भी बनाई गई हैं. उन्होंने कहा कि हम लोगों ने मानव संसाधन मंत्रालय का केवल नाम नहीं, नीति भी बदली है.
स्कूलों में अब बच्चों के प्रदर्शन को तीन स्तर पर परखा जाएगा. अब बच्चों के प्रोग्रेस कार्ड बनेंगे. बच्चों का तीन स्तर पर आकलन किया जाएगा. इसमें पहले छात्र खुद आकलन करेगा, फिर सहपाठी और तीसरा उसका शिक्षक.
बच्चों के लिए नेशनल एसेसमेंट सेंटर 'परख' बनाया जाएगा जो बच्चों के सीखने की क्षमता का समय-समय पर परीक्षण करेगा. एचआरडी मंत्री ने कहा कि नई शिक्षा नीति से हम संस्कारयुक्त शिक्षा नीति बनाएंगे. इससे हम विश्व स्तर की शिक्षा नीति की तरफ़ आगे बढ़ेंगे.
बता दें कि भारत में 34 साल बाद पहली बार नई शिक्षा नीति को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. इसमें सरकार ने हायर एजुकेशन और स्कूली शिक्षा को लेकर कई अहम बदलाव किए हैं. सरकार अब न्यू नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क तैयार करेगी. इसमें ईसीई, स्कूल, टीचर्स और एडल्ट एजुकेशन को जोड़ा जाएगा. बोर्ड एग्जाम को भाग में बांटा जाएगा. अब दो बोर्ड परीक्षाओं के तनाव को कम करने के लिए बोर्ड तीन बार भी परीक्षा करा सकता है.
इसके अलावा अब बच्चों के रिपोर्ट कार्ड में लाइफ स्किल्स को जोड़ा जाएगा. जैसे कि आपने अगर स्कूल में कुछ रोजगारपरक सीखा है तो इसे आपके रिपोर्ट कार्ड में जगह मिलेगी, जिससे बच्चों में लाइफ स्किल्स का भी विकास हो सकेगा. अभी तक रिपोर्ट कार्ड में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था.
प्राथमिक स्तर पर शिक्षा में बहुभाषिकता को प्राथमिकता के साथ शामिल करने और ऐसे भाषा के शिक्षकों की उपलब्धता को महत्व दिया दिया गया है जो बच्चों के घर की भाषा समझते हों. यह समस्या राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राज्यों में दिखाई देती है. इसलिए पहली से पांचवीं तक जहां तक संभव हो मातृभाषा का इस्तेमाल शिक्षण के माध्यम के रूप में किया जाए. जहां घर और स्कूल की भाषा अलग-अलग है, वहां दो भाषाओं के इस्तेमाल का सुझाव दिया गया है.