देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की आज 53वीं पुण्यतिथि है. जय जवान जय किसान का नारा देने वाले शास्त्री जी ने अपने कार्यकाल के दौरान देश को कई संकटों से उबारा था. वह एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में देश को न सिर्फ सैन्य गौरव का तोहफा दिया बल्कि हरित क्रांति और औद्योगीकरण की राह भी दिखाई. वहीं 53 साल बाद भी उनकी मौत का रहस्य बना हुआ है. आइए जानते हैं कैसे किस आधार पर सुलझ सकती थी उनके निधन की गुत्थी.
प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का निधन 11 जनवरी 1966 को दिल का दौरा पड़ने के कारण Tashkent (ताशकंद) में हुआ था, लेकिन आज भी उनकी मौत को लेकर कई सवाल अनसुलझे हैं.
आपको बता दें, शास्त्री के साथ ताशकंद में उनके सूचना अधिकारी और मशहूर पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने अपनी किताब में 'Beyond the Lines: An Autobiography' में लिखा है.
"उस रात मैं सो रहा था, अचानक एक रूसी महिला ने दरवाजा खटखटाया. उसने बताया कि आपके प्रधानमंत्री मर रहे हैं. मैं जल्दी से उनके कमरे में पहुंचा. मैंने देखा कि रूसी प्रधानमंत्री एलेक्सी कोस्गेन बरामदा में खड़े हैं, उन्होंने इशारे से बताया कि शास्त्री नहीं रहे.
उन्होंने देखा कि उनकी चप्पल कारपेट पर रखी हुई है. जिसका कोई इस्तेमाल नहीं किया गया था. वहीं पास में ही एक ड्रेसिंग टेबल था जिस पर थर्मस फ्लास्क गिरा हुआ था जिससे लग रहा था कि उन्होंने इसे खोलने की कोशिश की थी. कमरे में कोई घंटी भी नहीं थी.
शास्त्री के साथ भारतीय डेलिगेशन के रूप में गए लोगों का भी मानना था कि उस रात वो बेहद असहज दिख रहे थे.
क्या खाने में मिलाया गया था जहर?
शास्त्री की मौत को लेकर आज भी तमाम सवाल किए जाते हैं. बता दें, लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मौत पर एक फिल्म भी बनाई गई थी. जिसका नाम है 'द ताशकंद फाइल्स'.
वहीं आपको बता दें, शास्त्री जी मौत को लेकर कुछ लोग
दूसरी ओर, कुछ लोग दावा करते हैं कि जिस रात शास्त्री की मौत हुई, उस रात खाना उनके निजी सहायक रामनाथ ने नहीं, बल्कि सोवियत रूस में भारतीय राजदूत टीएन कौल के कुक जान मोहम्मद ने पकाया था.
खाना खाने के बाद शास्त्री सोने चले गए थे. उनकी मौत के बाद शरीर के नीला पड़ने पर लोगों ने आशंका जताई थी कि शायद उनके खाने में जहर मिला दिया गया था. उनकी मौत 10-11 जनवरी की आधी रात को हुई थी.
बता दें, भारत-पाकिस्तान के बीच साल 1965 में अप्रैल से 23 सितंबर के बीच 6 महीने तक युद्ध चला था. युद्ध खत्म होने के 4 महीने बाद जनवरी, 1966 में दोनों देशों के शीर्ष नेता तब के रूसी क्षेत्र में आने वाले ताशकंद में शांति समझौते के लिए रवाना हुए थे. पाकिस्तान की ओर से तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान वहां गए थे. जिसके बाद 10 जनवरी 1966 को दोनों देशों के बीच शांति समझौता भी हो गया था. वहीं समझौते के 12 घंटे बाद ही शास्त्री ने दुनिया को अलविदा कह दिया. उनकी मौत के बाद ही सवाल बना क्या शास्त्री जी का निधन सामान्य था या को साजिश थी.
शास्त्री का परिवार उनके निधन पर लगातार सवाल खड़ा करता रहा है. 2 अक्टूबर,
1970 को शास्त्री के जन्मदिन के अवसर पर ललिता शास्त्री ने उनके निधन पर
जांच की मांग की थी.
आपको बता दें. उनके निधन के बाद पोस्टमार्टम भी नहीं कराया गया था. यदि समय पर पोस्टमॉर्टम किया जाता तो शायद मौत की वजह पता चल जाती. ताशकंद के दौरे पर शास्त्री जी के साथ उनके निजी डॉक्टर आरएन सिंह और निजी सहायक रामनाथ भी गए थे.