IHBAS( Institute of Human Behaviour and Allied Sciences) के प्रोफेसर डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि कोरोना भी कुछ लोगों में एक प्रकार का फोबिया या डर बन गया है, लेकिन ये बहुत चिंताजनक नहीं होता. क्योंकि ये Known फियर है. जिसमें हमें पता होता है कि हाथ धोना जरूरी है, हमें हाथ धो लेना चाहिए वरना कोरोना का संक्रमण हो सकता है.
डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि अगर यही फियर व्यक्ति के कंट्रोल में न हो. उसे पता हो कि वो अभी अभी हाथ धो चुका है, अब तुरंत हाथ धोना जरूरी नहीं है. लेकिन उसके मन में ये विचार तीव्र रूप से आए और वो एक नहीं दो तीन बार हाथ धोये तो ये ओसीडी यानी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर का लक्षण है.
सर गंगाराम अस्पताल दिल्ली के मनोचिकित्सक डॉ राजीव मेहता का कहना है कि देश में जिन लोगों में ओसीडी की समस्या पहले से ही थी उनमें कोरोना महामारी के दौरान दिक्कत और बढ़ गई हैं. ठीक इसी तरह जर्म या वायरस को लेकर भी फियर अगर बढ़ता है तो ये एक बड़ी मानसिक समस्या होती है.
डॉ राजीव मेहता कहते हैं कि इसी तरह किसी जर्म, बैक्टीरिया, वायरस से इंफेक्शन के प्रति फोबिया या फियर मेडिकल साइंस में जर्मोफोबिया की श्रेणी में आता है. इससे ग्रसित व्यक्ति किसी जर्म या बैक्टीरिया से डर महसूस करते हैं. अक्सर इलाज या थेरेपी या न मिलने से ये डर कई बार ओसीडी में भी बदल सकता है.
डॉ ओमप्रकाश की सलाह है कि इस तरह की मानसिक समस्याओं को हमें बहुत सहज नहीं लेना चाहिए. अगर कोई व्यक्ति साफ सफाई से लेकर अपने किसी एक क्रियाकलाप को सनक की हद तक फॉलो करने लगता है तो वो उसके लिए घातक सिद्ध हो सकती है. मसलन अपने काम छोड़कर बार बार हाथ धोना, सर्दी में भी बच्चों को बार बार नहलाना या घर को दीवारों सहित रोज रोज धोना यदि दैनिक क्रिया का हिस्सा बन रहा है तो हमें सचेत हो जाना चाहिए.