भूकंप उन प्राकृतिक आपदाओं में से एक है जो इंसानी जीवन को बड़ा नुकसान पहुंचाती है. आज भी वैज्ञानिक भूकंप की चेतावनी देने में सक्षम नहीं हो पाए हैं. लेकिन भूकंप के कारणों और इसे मापने का पैमाना रिक्टर स्केल विकसित कर लिया है. आइए जानें बार बार भूकंप आने के कारण और इसकी तीव्रता को मापने के तरीके.
बता दें कि देश के जिन इलाकों में भूकंप का खतरा अधिक होता है, उसकी वजह सैकड़ों सालों में धरती की निचली सतहों में तनाव बढ़ना होता है. भूकंप आने का मुख्य कारण टेक्टॉनिक प्लेटों का अपनी जगह से हिलना है, लेकिन तनाव का असर अचानक ही नहीं, बल्कि धीरे धीरे होता है.
धरती की ऊपरी सतह सात टेक्टोनिक प्लेटों से मिल कर बनी है. जहां भी ये प्लेटें एक दूसरे से टकराती हैं वहां भूकंप का खतरा पैदा हो जाता है. भूकंप तब आता है जब इन प्लेट्स एक दूसरे के क्षेत्र में घुसने की कोशिश करती हैं, प्लेट्स एक दूसरे से रगड़ खाती हैं, उससे अपार ऊर्जा निकलती है, और उस घर्षण या फ्रिक्शन से ऊपर की धरती डोलने लगती है.
किसी भूकंप के समय भूमि के कंपन के अधिकतम आयाम और किसी आर्बिट्रेरी छोटे आयाम के अनुपात के साधारण गणित को 'रिक्टर पैमाना' कहते हैं. 'रिक्टर पैमाने' का पूरा नाम रिक्टर परिमाण परीक्षण पैमाना (रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल) है और लघु रूप में इसे स्थानिक परिमाण (लोकल मैग्नीट्यूड) कहते हैं.
जितना ज्यादा रेक्टर स्केल पर भूकंप आता है, उतना ही अधिक कंपन होता है. जैसे 7.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर जहां इमारतें गिर जाती हैं वहीं 2.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर हल्का कंपन होता है.
- 3 से 3.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर कोई ट्रक आपके नजदीक से गुजर जाए, ऐसा असर होता है.
- 4 से 4.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर खिड़कियां टूट सकती हैं. दीवारों पर टंगे फ्रेम गिर सकते हैं.
वैज्ञानिकों का कहना है कि भूकंप की पूरी भविष्यवाणी तो संभव नहीं है लेकिन ये जरूर पता लगाया जा सकता है कि धरती के नीचे किस इलाके में किन प्लेट्स के बीच हलचल ज्यादा है, किन प्लेट्स के बीच ज्यादा ऊर्जा पैदा होने की आशंका है. 2012 में छपी एक रिसर्च के मुताबिक कुछ तथ्य जो सामने आए हैं, वो इस प्रकार हैं.
-हिमालय के केंद्रीय हिस्से में रिक्टर स्केल पर 8 से 8.5 की तीव्रता के कई भूकंप आ चुके हैं
-इन बड़े भूकंपों ने इस इलाके में गहरी दरारें पैदा कर दी हैं
-खास तौर पर साल 1934 में आए भूकंपों ने हिमालय के आसपास का नक्शा ही बदल दिया.
-1934 में आए भूकंप ने तो सतह पर 150 किलोमीटर लंबी दरार बना दी थी.
-वैज्ञानिकों के मुताबिक हिमालय का ये हिस्सा ऐसे बड़े भूकंपों की अनगिनत संभावनाएं लिए हुए है.