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50 साल पहले रिलीज हुईं ये 10 फिल्में, आज भी हैं सुपरहिट

सुरेंद्र कुमार वर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 23 जून 2021,
  • अपडेटेड 12:38 PM IST
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सिनेमाई इतिहास की बात करें तो 1971 में रिलीज हुई फिल्में अब 50 साल की होने जा रही हैं या हो गई हैं. 1971 में रिलीज कई फिल्में अलग-अलग मायनों में नायाब रहीं जिसने आगे बढ़ने, मुश्किलों का सामना करने, और जीने के सलीका सीखाने में अहम भूमिका भी निभाई थी.
 

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50 साल पहले यानी 1971 में रिलीज फिल्मों में उन 10 सदाबहार और बोल्ड फिल्मों के बारे में जानते हैं जिन्होंने उस दौर में जितनी धूम मचाई उतनी आज भी पंसद की जाती है. या फिर अपनी-अपनी खासियतों के बारे में जानी जाती है. विनोद खन्ना के लिए यह साल बेहद खास रहा क्योंकि खलनायक से नायक की भूमिका उन्होंने इसी साल से शुरू हुई थी. (PHOTO_ITGD)

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आनंदः 1971 में 12 मार्च को ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म आनंद रिलीज हुई. फिल्म 'आनंद' भारतीय सिनेमा में उन बेहद चंद फिल्मों में शुमार है जिसके गानों के ऑडियो कैसेट के अलावा डॉयलाग के कैसेट भी खूब बिके. अपनी भावपूर्ण कहानी और राजेश खन्ना तथा अमिताभ बच्चन के बेमिसाल अभिनय के लिए फिल्म आज भी पसंद की जाती है.

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राजेश खन्ना फिल्म में आनंद के किरदार में थे तो अमिताभ बच्चन डॉक्टर भास्कर बनर्जी की भूमिका में थे. आनंद डॉक्टर भास्कर बनर्जी को बाबू मोशाय कहा करते थे. फिल्म के कई संवाद बेहद मकबूल हुए लेकिन जो बेहद चर्चित हुआ वो था -'बाबू मोशाय जिंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं' और 'जिंदगी और मौत ऊपरवाले के हाथ में है जहांपनाह.' 

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कल आज और कलः 'मेरा नाम जोकर' फिल्म के बुरी तरह से फ्लॉप होने के बाद राज कपूर 1971 में ऐसी फिल्म लेकर आए जिसमें रुपहले पर्दे पर किसी एक फिल्मी परिवार की तीन पीढ़ियों ने एक साथ काम किया और तीनों की अहम भूमिका रही. यह उस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में भी शुमार रही. राज के बड़े बेटे रणधीर कपूर की यह पहली फिल्म भी थी. रणधीर फिल्म के निर्देशक भी थे.

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बदनाम बस्तीः महान साहित्यकार कमलेश्वर के उपन्यास 'एक सड़क 57 गलियां' पर बनी फिल्म देश की पहली गे फिल्म मानी जाती है. प्रेम कपूर के निर्देशन में इस फिल्म की कहानी लव ट्रेंगल पर आधारित थी जिसमें 2 पुरुष और एक महिला अहम किरदार में थे. फिल्म में दो पुरुषों के बीच प्रेम को दर्शाता है. दुखद है कि करीब 50 सालों से माना जाता रहा कि फिल्म की कोई कॉपी बची नहीं है और यह नष्ट हो चुकी है.

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हालांकि बदनाम बस्ती जर्मनी के एक संग्रहालय में सुरक्षित रखी हुई थी और 2019 में इसके बारे में पता चला. खास बात यह रही कि वहां पर यह फिल्म राज कपूर के नाम से दर्ज थी और छात्रों को पढ़ाई जाती रही. फिल्म को फिर से रिस्टोर किया गया और 83 मिनट की फिल्म को पिछले साल जुलाई में वर्चुअल तौर पर भारत में दिखाई गई.

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हाथी मेरे साथीः फिल्म को रिलीज हुए 50 साल हो चुके हैं. जानवरों की कहानी पर तैयार की गई इस फिल्म को हिंदी सिनेमा का डिज्नी फिल्म भी कहा जाता है. साथ ही सलीम-जावेद को पहचान दिलाने वाली भी यही फिल्म रही.

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हाथी मेरे साथी फिल्म 1971 की सबसे कामयाब फिल्म है. तब के सुपरस्टार राजेश खन्ना के लिए यह फिल्म इस मायने में खास है क्योंकि उन्होंने अपने सुनहरे दौर में लगातार जो 16 सुपरहिट फिल्में दी थी उसमें यह आखिरी फिल्म मानी जाती है. साथ ही दक्षिण भारत की यह रिमेक फिल्म थी और इसने ओरिजिनल फिल्म से ज्यादा कमाई की थी. (Photo_ITGD)

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कटी पतंग (29 जनवरी 1971): राजेश खन्ना और आशा पारेख अभिनीत यह फिल्‍म उपन्यासकार गुलशन नंदा के उपन्यास 'कटी पतंग' पर आधारित थी. फिल्म की कहानी एक विधवा पर आधारित थी जिसे उस दौर की कई बड़ी हीरोइनों ने करने से मना कर दिया. 1971 की बेहद कामयाब फिल्मों में से एक है. फिल्म में होली का एक गाना जो आज भी बड़े चाव से सुना जाता है.

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गुड्डीः फिल्म गुड्डी को ऋषिकेश मुखर्जी की बेहतरीन फिल्मों में गिना जाता है. जया बच्चन (भादुड़ी) की बतौर नायिका यह पहली फिल्म थी. फिल्म में पहले अमिताभ बच्चन जया के साथ लीड रोल में थे, लेकिन ऋषिकेश दा ने अमिताभ को उसी समय बन रही फिल्म आनंद पर फोकस करने को कहा. फिल्म के 2 गाने बेहद मशहूर हुए. 'हम को मन की शक्ति देना' आज भी स्कूलों में प्रार्थना के तौर पर गाया जाता है. दूसरा गाना 'बोले रे पपिहरा' शास्त्रीय संगीत का पुट लिए हुए था. हालांकि फिल्म में अमिताभ कैमियो के रूप में दिखाई दिए थे.

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हरे रामा हरे कृष्णाः देवानंद की बेहद चर्चित फिल्मों में शुमार की जाने वाली इस फिल्म को भी रिलीज हुए 50 साल हो चुके हैं. 14 जनवरी, 1971 को यह सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी. यह फिल्म समय से काफी आगे की फिल्म थी और हिप्पी संस्कृति तथा ड्रग्स जैसी समस्याओं को दर्शाया गया था. फिल्म में देव आनंद और जीनत अमान मुख्य भूमिका में थीं. फिल्म ने जीनत को बड़ी पहचान दी. साथ ही फिल्मफेयर का अवॉर्ड भी जीता था.

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मेरे अपनेः 10 सितंबर, 1971 को रिलीज इस फिल्म में अनजान लोगों के बीच बने ममतामयी रिश्तों को बखूबी दिखाया गया. गीतकार, लेखक और निर्देशक गुलजार के लिए यह बेहद खास फिल्म थी क्योंकि बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म थी. तो विनोद खन्ना की हीरो के रूप में यह पहली फिल्म थी. इससे पहले वह विलेन या चरित्र भूमिकाओं में ही दिखे थे. डैनी की पहली फिल्म रही. मीना कुमारी ने बुजुर्ग महिला के जिस किरदार को निभाया वो बेजोड़ रहा.

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लाल पत्थरः 1964 में रिलीज बंगाली फिल्म 'लाल पत्थर' की यह हिंदी रिमेक 1971 में रिलीज हुई. फिल्म राज कुमार और हेमा मालिनी के बेजोड़ अभिनय के लिए जानी जाती है. हेमा ने कुछ ही फिल्मों में निगेटिव भूमिकाएं की हैं जिसमें यह पहली फिल्म है. फिल्म का एक गाना 'गीत गाता हूं गुनगुनाता हूं' बेहद मशहूर हुआ और आज भी यह रेडियो पर काफी बजता है. 

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दुश्मनः राजेश खन्ना अभिनीत यह बेहद शानदार फिल्मों से एक है और रिलीज हुए 50 साल हो चुके हैं. यह फिल्म वीरेन्द्र सिन्हा के उपन्यास पर आधारित थी. फिल्म की कहानी बेहद शानदार और समय से थोड़ा आगे की मानी जा सकती है. जिसमें नायक के हाथों हादसे में एक निर्दोष की हत्या हो जाती है जिस पर जज उसे पीड़ित परिवार के साथ 2 साल रहने की सजा सुनाता है. (Photo-imdb)

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कोर्ट के आदेश के बाद दोषी को पीड़ित परिवार के साथ रहने और उनके सुख-दुख तथा तकलीफों को समझने के लिए घर में रहना पड़ता है. परिवार उसे स्वीकार नहीं करता है. विधवा के रूप में मीना कुमारी और दोषी के रूप में राजेश खन्ना ने शानदार काम किया और कई मौकों पर रुलाया भी. शुरुआती ना-नुकुर के बाद आखिर दोषी वहां 2 साल की सजा काटता है और पीड़ित परिवार की कई मायनों में रक्षा करते हुए उनके दिलों में भी जगह बना लेता है. (Photo-imdb)

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