एकेडमी अवॉर्ड (ऑस्कर) दुनियाभर के फिल्म इंडस्ट्री के लिए सबसे महत्वपूर्ण अवॉर्ड माना जाता है. हाल ही में 93वें एकेडमी अवॉर्ड्स के लिए अलग-अलग कैटेगरी में नॉमिनीज का ऐलान किया गया. इसमें प्रियंका चोपड़ा-राजकुमार राव और आदर्श गौरव स्टारर फिल्म द व्हाइट टाइगर भी चयनित हुई. फिल्म को बेस्ट अडैप्टेड स्क्रीनप्ले कैटेगरी में नॉमिनेट किया गया. जहां पर्दे पर फिल्म को एक्टर्स ने जीवंत किया वहीं पर्दे के पीछे जिस शख्स ने फिल्म को आकार दिया वो थे फिल्म के डायरेक्टर रमीन बहरानी.
ईरानी-अमरीकी मूल के रमीन बहरानी ना तो पहले कभी भारत आए थे और ना ही उन्हें हिंदी सिनेमा के बारे में ज्यादा कुछ पता था. पर जब उन्होंने द व्हाइट टाइगर बनाई तो भारत की पृष्ठभूमि से उनका नावाकिफ होना कहीं भी नहीं दिखाई देता है. फिल्म में भारत के दो पहलुओं को बखूबी दिखाया गया है. गरीबी से जूझने के बाद अमीर बनने तक के सफर को रमीन ने अपनी फिल्म में ओरिजीनैलिटी के साथ पेश किया है.
रमीन की फिल्म द व्हाइट टाइगर अरविंद अडिगा द्वारा लिखित 2008 की अवॉर्ड-विनिंग नॉवेल पर आधारित है. अरविंद और रमीन कोलंबिया में कॉलेज के दिनों से दोस्त थे. रमीन को अरविंद की कहानियां पसंद थी और अरविंद भी रमीन के स्क्रिप्ट्स पढ़ने में दिलचस्पी रखते थे. अरविंद ने अपनी इस अवॉर्ड विनिंग नॉवेल रमीन को डेडिकेट किया है. इसी नॉवेल को रमीन ने एक अपने फिल्म के जरिए लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की.
एक इंटरव्यू में रमीन ने फिल्म की तैयारी को लेकर बात की थी. उन्होंने कहा था कि वे ये दावा कभी नहीं कर सकते कि वे भारत को जानते हैं. उन्हें भारत की संस्कृति-परंपरा अन्य चीजों का कोई ज्ञान नहीं है. यहां का इतिहास किताबों, कविताओं, कला, भाषा, क्षेत्र, संस्कृति, परंपरा, सिनेमा आदि के क्षेत्र में बहुत विशाल है. तो अरविंद के किताब ने उनकी काफी मदद की.
कोलंबिया और न्यूयॉर्क दोनों ही जगह उनके अधिकतर दोस्त भारतीय थे, जिस कारण उन्हें भारत के बारे में थोड़ी बातें पता थी. इसके अलावा रमीन ने फिल्म बनाने में अपने फैमिली बैकग्राउंड को भी मददगार बताया. उन्होंने कहा कि उनके पेरेंट्स ईरानी हैं. उनका पालन-पोषण एक ईराननी घर में हुआ है. पर्शियन भाषा बोलते हैं जिससे भारत में बोली जाने वाली उर्दू भाषा समझने में मदद मिली.
परिवार के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि उनके पिता ईरान के बहुत छोटे गांव से आते हैं जहां रमीन ने भी काफी समय बिताया है. वहां का माहौल उन्होंने देखा है जो कि फिल्म बनाने में उनके लिए प्लस प्वाइंट रहा. इसके अलावा उनकी टीम ने भी भारतीय बैकग्रांड को समझने में उन्हें सपोर्ट किया.
एक नॉन-इंडियन और बॉलीवुड से कोई कनेक्शन नहीं होने के बावजूद रमीन बहरानी ने द व्हाइट टाइगर में इस भाव को पास तक नहीं आने दिया है. वे कहते हैं कि उनकी द व्हाइट टाइगर की 99 प्रतिशत टीम भारतीय थी. सभी प्रतिभाशाली और मेहनती थे.
तो इस तरह से रमीन ने द व्हाइट टाइगर को रूप दिया और बाकी का काम प्रियंका, राजकुमार, आदर्श ने मिलकर पूरा कर दिया. फिल्म को नेटफ्लिक्स पर रिलीज किया गया था. इसे क्रिटिक्स से काफी अच्छे रिस्पॉन्स मिले थे. चूंकि फिल्म भारत पर है और इसमें सभी कलाकार भारतीय हैं तो भारत का इससे खास लगाव लाजिमी है.
रमीन बहरानी ने पहले भी कई उम्दा फिल्में बनाई हैं. 2005 में रमीन की पहली फीचर फिल्म मैन पुश कार्ट वेनिस फिल्म फेस्टिवल में सनडेस फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई थी. इसे 10 इंटरनेशनल प्राइज मिले, साथ ही 3 इंडिपेंडेंट स्पिरिट अवॉर्ड से नवाजा गया.
उनकी दूसरी फिल्म चॉप शॉप 2007 में रिलीज हुई थी. इस फिल्म को भी आलोचकों का शानदार रिस्पॉन्स मिला. उन्हें 2008 में इंडिपेंडेंट स्पिरिट अवॉर्ड के बेस्ट डायरेक्टर कैटेगरी के लिए नॉमिनेट किया गया. गुडबाय सोलो उनकी तीसरी फीचर फिल्म थी जिसे बेस्ट फिल्म की कैटेगरी में इंटरनेशनल फिल्म क्रिटिक्स FIPRESCI अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. प्लास्टिक बेग, ऐट एनी प्लेस, 99 होम्स, फैरेनहाइट 451 के लिए भी रमीन बहरानी को लोगों ने सराहा है.