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जदयू ने तेजस्वी को बताया 'हकमार', पूछा-संपत्त‍ि पर कब तोड़ेंगे चुप्पी?

जदयू ने कहा है कि तेजस्वी यादव के उप मुख्यमंत्री की कुर्सी भी चली गई है, लेकिन इसके बावजूद भी अब तक उन्होंने अपने बेनामी संपत्ति अर्जित करने के मामले पर मुंह नहीं खोला है.

तेजस्वी यादव (फाइल) तेजस्वी यादव (फाइल)
रणविजय सिंह/रोहित कुमार सिंह
  • पटना,
  • 26 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 11:58 AM IST

आरजेडी नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के ऊपर जदयू के हमले लगातार जारी हैं. तेजस्वी के ऊपर चल रहे बेनामी संपत्ति अर्जित करने के मामले को लेकर एक बार फिर से जदयू ने उन पर हमला बोला है और तंज कसते हुए सवाल पूछा है कि हकमार जी अपनी बेनामी संपत्ति पर चुप्पी कब तोडेंगे?

जदयू ने कहा है कि तेजस्वी यादव के उप मुख्यमंत्री की कुर्सी भी चली गई है, लेकिन इसके बावजूद भी अब तक उन्होंने अपने बेनामी संपत्ति अर्जित करने के मामले पर मुंह नहीं खोला है. पार्टी ने कहा है कि तेजस्वी यादव ने लोगों की हकमारी करने का जो गुनाह किया है उसके लिए उन्हें जनता नाक रगड़ने पर भी माफ नहीं करेगी.

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पार्टी प्रवक्ता संजय सिंह ने एक कहावत ट्वीट किया कि, ''कब तक छुपेगा पत्तों की आड़ में, कभी तो आएगा बिकने बाजार में.'' उन्होंने कहा, इस कहावत की तरह कब तक तेजस्वी यादव अपने पिता लालू यादव और उनकी विरासत पर राजनीति करते रहेंगे? संजय सिंह ने कहा कि तेजस्वी यादव को कभी तो अपना दिमाग का इस्तेमाल करके राजनीति करनी चाहिए.

जदयू प्रवक्ता ने तेजस्वी से सवाल पूछा कि क्या उनको सांप सूंघ गया है जो उन्होंने अब तक अपनी बेनामी संपत्ति के बारे में खुलासा नहीं किया है? जदयू प्रवक्ता ने कहा कि तेजस्वी यादव को जनता को यह बताना चाहिए उनके पास इतनी संपत्ति कहां से आई. संजय सिंह ने कहा कि तेजस्वी यादव को यह भी बताना चाहिए कि उनके ऊपर सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग ने केस क्यों किया हुआ है?

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जदयू प्रवक्ता ने आरजेडी के उपाध्यक्ष और लालू के करीबी शिवानंद तिवारी पर भी हमला किया और कहा कि जिस तरीके से चाणक्य ने नंद वंश के ख़ात्मे का संकल्प लिया था उसी प्रकार शिवानंद तिवारी ने लालू वंश के खात्मे का बीड़ा उठाया है. जदयू ने कहा कि शिवानंद तिवारी ने लालू के पीछे बैठकर उन्हें जेल भिजवा दिया और अब तेजस्वी यादव के भी पीछे बैठे रहते हैं.

संजय सिंह ने कहा कि शिवानंद तिवारी को खुद को चाणक्य समझने की भूल नहीं करना चाहिए, क्योंकि चाणक्य का उद्देश्य जनहित में था और शिवानंद तिवारी का उद्देश्य स्वार्थ में.

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