Advertisement

प्रधानमंत्री फसल बीमा के तहत किसानों के खाते में आया 2 रुपये का क्लेम

अब किसान कहां गुहार लगाएं, क्योंकि फसलों का बीमा तो सरकारी अफसरों की निगरानी में हुआ था. फसल बीमा कराने वाली एजेंसियों का नाम भी सरकार ने ही तय किया था. बीमा कंपनियों की कारस्तानी से छले गए किसान दो चार हजार नहीं है बल्कि ऐसे किसानों की संख्या ढाई लाख के करीब है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Getty images) प्रतीकात्मक तस्वीर (Getty images)
सुनील नामदेव
  • रायपुर,
  • 21 मई 2018,
  • अपडेटेड 12:11 AM IST

छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों के लिए मुसीबत बन गयी है. किसानों को उम्मीद थी कि फसल खराब होने पर उन्हें इस योजना का लाभ मिलेगा. लेकिन इस योजना ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया है. किसानों को बीमा क्लेम तो मिला लेकिन उनके खातों में आये महज दो से चार रुपये.

अब किसान कहां गुहार लगाएं, क्योंकि फसलों का बीमा तो सरकारी अफसरों की निगरानी में हुआ था. फसल बीमा कराने वाली एजेंसियों का नाम भी सरकार ने ही तय किया था. बीमा कंपनियों की कारस्तानी से छले गए किसान दो चार हजार नहीं है बल्कि ऐसे किसानों की संख्या ढाई लाख के करीब है.

Advertisement

लगातार जमा किए प्रीमियम

छत्तीसगढ़ में फसल बीमा योजना मानसून के ठीक पहले किसी अनहोनी की तरह साबित हुई है. किसानों को यह योजना अब किसी प्राकृतिक आपदा के रूप में नजर आने लगी है, क्योंकि उनकी कोई सहायता ना तो सरकारी अफसर कर रहे है, और ना ही सरकार.

दरअसल इन किसानों ने फसल बीमा योजना के तहत अपनी फसलों का बीमा करवाया था. बैंक के जरिये प्रीमियम की रकम हर माह इनके खाते से कटती चली गयी. किसानों ने राजी ख़ुशी प्रीमियम इस उम्मीद में जमा किया कि जरूरत पड़ने पर इन्हें क्लेम की रकम मिल जायेगी.

फसल बीमा होने के बाद किसानों ने राहत की सांस ली. लेकिन राज्य में लगातार दूसरी बार पड़े सूखे ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया. इस बीच सरकार ने भरोसा दिलाया कि ऐसे कठिन समय में फसल बीमा योजना उनके लिए वरदान साबित हुई है. उन्हें उनकी फसल के नुकसान का भरपूर क्लेम दिलाया जाएगा.

Advertisement

कड़ी मशक्क्त के बाद बीमा कंपनियों ने किसानों के खेत खलियानो का रुख किया. कृषि विभाग और प्रशासन के अफसरों ने भी फसल के नुकसान का सर्वे कर रिपोर्ट तैयार की. किसानों को आश्वस्त किया गया कि उनके खाते में बीमा की रकम आ जायेगी. वे बिलकुल भी परेशान ना हों. लेकिन जैसे ही खाते में रकम आयी, किसानों के माथे पर बल पड़ गए. बीमा कंपनियों ने किसानों को दो से चार रुपये तक फसल बीमा नुकसान का भुगतान किया है.

खाते में आए 2 से 10 रूपये

मानसून के दस्तक देने में हफ्ता दो हफ्ता ही बचा है. राज्य के किसान फसल बुआई की तैयारी में जुटे हैं. कोई खाद्य बीज का इंतजाम कर रहा है, तो कोई खाली खेतों में हल चला कर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में जुटा है. ऐसे समय किसानों को उम्मीद थी कि फसल बीमा से मिलने वाली रकम उनकी बड़ी सहायता करेगी. लेकिन जब यह रकम उनके खातों में आयी तो उनके होश उड़ गए. अब दो, चार और दस रुपये का भुगतान देख कर वो सरकार और बीमा कंपनियों को कोसने लगे हैं.          

राज्य के धमतरी जिले की सूखाग्रस्त चार तहसीलों में 70 हजार 169 किसानों ने बीमा करवाया था. इनमें से सिर्फ 8722 किसानों को बीमा क्लेम मिला. इनमें से 2435 ऐसे किसान हैं, जिनके खाते में मात्र दो से चार रुपये की बीमा क्लेम की रकम आयी है.

इसके अलावा 272 ऐसे किसान है जिनके खाते में सात से दस रूपये आये हैं. यही हाल राज्य के दूसरे जिलों का भी है. छत्तीसगढ़ में पिछले खरीफ सीजन में औसत से कम बारिश के चलते 21 जिलों की 96 तहसीलों को सूखा ग्रस्त घोषित किया गया था. इस दौरान राज्य सरकार ने इफ्को और रिलायंस कंपनी के जरिये किसानों का फसल बीमा करवाया था. इफ्को ने बीस जिलों में और रिलायंस ने सात जिलों में बीमा किया. इन कंपनियों को किसानों की ओर से 127 करोड़ से ज्यादा का प्रीमियम चुकाया गया. इसके अलावा छत्तीसगढ़ सरकार ने 85 करोड़ और केंद्र सरकार की ओर से भी 85 करोड़ की प्रीमियम का भुगतान जरूरतमंद किसानों की ओर से किया गया.

Advertisement

सरकार के पास जवाब नहीं

बीमा कंपनियों ने प्रति एकड़ लगभग 70 रुपये प्रीमियम चुकाने वाले किसानों को बतौर मुआवजा मात्र दो से चार रुपये दिए. उधर इस मामले को लेकर सरकारी अफसरों और कृषि मंत्री का अपना-अपना तर्क है. कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के मुताबिक किसानों को कम से कम एक हजार रुपये से कम की रकम ना दिए जाने के निर्देश बीमा कंपनियों को दिए गए हैं. जबकि कृषि और प्रशासन के अफसरों की दलील है कि बीमा कंपनियों ने नियम के मुताबिक क्लेम की रकम दी है.  

दरअसल बीमा कंपनियों ने फसल बीमा योजना से लाभ कमाने के लिए पीड़ित किसान के बजाए गांव की पंचायत को यूनिट माना है. इसके चलते बीमा क्लेम तभी मंजूर होगा जब पूरे गांव की फसल ख़राब होगी. गांव के एक तिहाई से ज्यादा इलाके में फसल का नुकसान होने पर ही बीमा कंपनियां क्लेम तैयार करती है. फिलहाल छले गए किसान अदालत का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में हैं.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement