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छत्तीसगढ़ में भी तेज होगा किसान आंदोलन, सांसदों-विधायकों, मंत्रियों का होगा घेराव

 छत्तीसगढ़ में किसान अब चक्का जाम नहीं बल्कि बीजेपी के सांसदों, विधायकों और मंत्रियों का घेराव करेंगे ताकि उन्हें बता सके कि उनकी पार्टी ने विश्वासघात किया है. डेढ़ दर्जन किसान संगठनों ने एक बैठक के बाद यह फैसला लिया है.

किसान हो रहे हैं संगठित किसान हो रहे हैं संगठित
सुनील नामदेव
  • रायपुर,
  • 19 जून 2017,
  • अपडेटेड 10:06 PM IST

 छत्तीसगढ़ में किसान अब चक्का जाम नहीं बल्कि बीजेपी के सांसदों, विधायकों और मंत्रियों का घेराव करेंगे ताकि उन्हें बता सके कि उनकी पार्टी ने विश्वासघात किया है. डेढ़ दर्जन किसान संगठनों ने एक बैठक के बाद यह फैसला लिया है.

किसान मजदूर महासंघ की राज्य समन्वय समिति की बैठक में राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन का विस्तार गांव-गांव तक करने का निर्णय लिया गया. छत्तीसगढ़ सयुक्त किसान मोर्चा के अध्यक्ष वीरेंद्र पांडे के मुताबिक राज्य में किसानों की हालत दिनोदिन बिगड़ती चली जा रही है. यदि सरकार ने जल्द ठोस कदम नहीं उठाए, तो किसान आत्महत्याओं के मामले में इजाफा होगा. हालांकि मुख्यमंत्री रमन सिंह ने किसानों से बातचीत की पेशकश की है, लेकिन यह बातचीत कब और कहां होगी यह अभी साफ़ नहीं हो पाया है.

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बैठक में यह भी तय किया गया कि गावों में क्षेत्रवार किसानों को लेकर 'बोनस बैठक' अभियान चलाएंगे. इसमें बीजेपी के चुनावी घोषणा पत्र को याद दिलाया जाएगा, जिसमे उसने धान का समर्थन मूल्य 2100 रुपये और बोनस का प्रति क्विंटल 300 रुपये देने का वादा किया था. इसके अलावा कर्जमाफ़ी, स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश लागू करने, मुफ्त बिजली की मांग आदि के संबंध में हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा. इसे बतौर ज्ञापन प्रधानमंत्री मोदी को सौंपा जाएगा. किसान संगठनों ने यह भी कहा है कि मानसून सत्र शुरू होते ही छत्तीसगढ़ विधानसभा और ससंद का घेराव करने के लिए राज्य के तमाम किसान दिल्ली जाएंगे, वहां महाधरना भी होगा.

दो दिन में दो किसानों ने की ख़ुदकुशी
छत्तीसगढ़ में बीते 48 घंटो में किसानों की आत्महत्याओं को लेकर राजनीति गरमाई हुई है. राजनादगांव में भूषण गायकवाड़ नामक 40 वर्षीय किसान ने जहर पीकर आत्महत्या कर ली. उसके परिजनों का आरोप है कि भूषण कर्ज और खेती में होने वाले घाटे से परेशान था. दूसरी घटना कवर्धा जिले के लोहारा ब्लॉक की है . यहां 60 साल के रामझुल साहू ने अपने खेत में फांसी लगाकर जान दे दी. हालांकि उसके पास से कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ है.

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उसके परिजन भी आरोप लगा रहे हैं कि लगातार दो सालों से होने वाले सूखे से उसकी घर की माली हालत दिनोदिन ख़राब हो रही थी. दूसरी ओर बैंक भी कर्ज की अदाएगी को लेकर दबाव बना रहे थे. हालांकि दोनों ही घटनाओें को लेकर प्रशासन का दावा है कि किसानों ने अपनी निजी जिंदगी से परेशान होकर आत्महत्या की है, ना कि कर्ज की अदाएगी और खेतिहर कारणों से. दोनों ही मामलो को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा और कांग्रेस ने जांच समिति गठित की है.

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