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दिल्ली में भी खिसक रही है केजरीवाल की जमीन, ये हैं 5 कारण

चुनावों में लगातार गिरता ग्राफ बताता है कि अरविंद केजरीवाल की जमीन दिल्ली में खिसक रही है. केजरीवाल और उनकी पार्टी का वो जादू गायब हो गया है, जो 2015 के विधानसभा चुनावों के समय या उससे पहले था.

अरविंद केजरीवाल अरविंद केजरीवाल
लव रघुवंशी
  • नई दिल्ली,
  • 24 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 4:09 PM IST

दिल्ली नगर निगम चुनाव हो चुके हैं. अब 26 अप्रैल को नतीजे आएंगे, लेकिन इससे पहले आए एग्जिट पोल आम आदमी पार्टी के लिए अच्छी खबर नहीं लाए. पंजाब-गोवा विधानसभा चुनावों के बाद MCD एग्जिट पोल भी AAP के लिए निराशा भरे हैं. 2 साल पहले प्रचंड जीत के साथ दिल्ली में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी के लिए एमसीडी चुनाव खास अहमियत रखते हैं. चुनावों के नतीजों को सीधे-सीधे दिल्ली में किए गए 'आप' के कामों से जोड़कर देखा जाएगा. लेकिन पहले पंजाब और गोवा विधानसभा चुनावों के नतीजे और फिर बाद में आए एमसीडी के एग्जिट पोल दर्शा रहे हैं कि 'आप' का वो जादू गायब हो रहा है, जिसके दम पर उसने दिल्ली में 70 में से 67 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

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चुनावों में लगातार गिरता ग्राफ बताता है कि अरविंद केजरीवाल की जमीन दिल्ली में खिसक रही है. केजरीवाल और उनकी पार्टी का वो जादू गायब हो गया है, जो 2015 के विधानसभा चुनावों के समय या उससे पहले था. एमसीडी चुनावों में भी उन्होंने बीजेपी, उपराज्यपाल और ईवीएम पर ज्यादा हमला किया, ना कि पिछले 2 सालों में किए गए उनके कामों के बारे में बात की. पिछले 2 सालों में आम आदमी पार्टी ने कई ऐसे फैसले लिए या उनके लिए हालात बने, जिसके कारण उसकी दिल्ली में जमीन कमजोर होती गई.

1) बार-बार दिल्ली से बाहर जाना
2015 विधानसभा चुनावों में AAP पार्टी ने 5 साल केजरीवाल के नारे पर चुनाव लड़ा था. लेकिन इसके बाद भी आम आदमी पार्टी ने पंजाब और गोवा में चुनाव लड़ा, जो कि उनके खिलाफ गया. पंजाब में तो केजरीवाल के नाम पर ही पार्टी ने वोट मांगा. पंजाब चुनाव के दौरान कई बार ये भी संदेश गया कि केजरीवाल दिल्ली छोड़कर पंजाब की कमान संभाल लेंगे. इस दौरान 'आप' का प्रभुत्व दिल्ली में लगातार कम होता चला गया. इसके साथ ही पार्टी से दिल्ली के राजौरी गार्डन से विधायक जनरैल सिंह इस्तीफा देकर पंजाब चुनाव में लड़ने चले गए. जनरैल सिंह पंजाब में भी चुनाव हार गए और पार्टी की दिल्ली में एक सीट भी कम हो गई. यहां हुए उपचुनाव को बीजेपी ने जीत लिया, जबकि AAP तीसरे नंबर पर रही.

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2) वादों पर खरे ना उतरना
आम आदमी पार्टी ने 2015 में बड़े-बड़े वादे कर दिल्ली में सत्ता कब्जाई थी. लेकिन सरकार बनने के साथ से ही पार्टी की ये छवि बनने लगी कि वो वादे पूरे करने में समर्थ नहीं है. दिल्ली सरकार ने कई बार वादे पूरे ना होने के लिए केंद्र सरकार पर रोड़े अटकाने का आरोप लगाया. इस दलील पर दिल्ली की जनता ने कम ही भरोसा किया. वाई-फाई, सीसीटीवी कैमरे जैसे वादों को पूरा न कर पाने से सरकार की नकारात्मक छवि बनी.

3) मंत्रियों पर आरोप
दिल्ली में सरकार बनने के साथ ही 'आप' सरकार के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार और तरह-तरह के आरोप लगने लगे. सरकार का कोई मंत्री फर्जी डिग्री पर घिरा तो कोई सेक्स सीडी में फंस गया. मंत्रियों से लेकर नेताओं तक पर ऐसे गंभीर आरोप लगे कि उनमें से कई जेल भी गए. शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट में भी केजरीवाल सरकार में फैले भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद लोगों के सामने आ गया.

4) मोदी को लगातार टारगेट करना
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पीएम मोदी पर व्यक्तिगत हमले करने का कोई मौका नहीं छोड़ा. कई बार तो सीमा लांघते हुए केजरीवाल ने मोदी पर आपत्तिजनक टिप्पणी भी की. केजरीवाल के इन हमलों पर मोदी ने कभी पलटवार नहीं किया. केजरीवाल ने मोदी पर उस दौर में निशाना साधा, जब मोदी की लोकप्रियता में लगातार इजाफा हो रहा है. मोदी के अलावा केजरीवाल उपराज्यपाल को भी निशाना बनाने के लिए लगातार खबरों में रहे.

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5) बड़े नेताओं को बाहर करना
आम आदमी पार्टी ने आंदोलन के समय से ही अपने साथ रहे योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और आनंद कुमार जैसे बड़े और साफ छवि के नेताओं को सत्ता में आते ही बाहर का रास्ता दिखा दिया. इन नेताओं ने भी बाहर होते ही पार्टी के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया, जिससे पार्टी की नकारात्मक छ‌वि बनी. इसके अलावा पार्टी के बड़े और लोकप्रिय चेहरे कुमार विश्वास ने पार्टी में होते हुए भी नेताओं से दूरी बना ली. कई मौकों पर तो कुमार विश्वास ने सरकार और केजरीवाल की आलोचना भी की. एमसीडी चुनावों में कुमार विश्वास ने पार्टी के लिए प्रचार तक नहीं किया.

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