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झारखंडः बजट सत्र कल से, सदन में मरांडी कहां बैठेंगे, सस्पेंस बरकरार

17 फरवरी को बाबूलाल मरांडी औपचारिक तौर पर बीजेपी में शामिल हुए थे और अपनी पार्टी का विलय भी करा दिया था. अब यह स्पीकर पर निर्भर है कि वह बाबूलाल मरांडी को भाजपा विधायक दल के नेता के रूप में मान्यता देते हैं या नहीं.

फोटो-PTI फोटो-PTI
सत्यजीत कुमार
  • रांची,
  • 27 फरवरी 2020,
  • अपडेटेड 6:28 PM IST

  • 17 फरवरी को बाबूलाल मरांडी बीजेपी में शामिल हुए थे
  • BJP चाहेगी कि उन्हें विधायक दल के नेता की मान्यता मिले
  • सत्ता पक्ष की कोशिश, मरांडी को JVM विधायक माना जाए

झारखंड विधानसभा का बजट सत्र 28 फरवरी से शुरू हो रहा है. इस सत्र के दौरान सदन में बाबूलाल मरांडी की कुर्सी को लेकर हंगामा होना तय माना जा रहा है. सत्ता पक्ष की कोशिश होगी कि बाबूलाल मरांडी को सदन में झारखंड विकास मोर्चा (JVM) का विधायक माना जाए, जबकि बीजेपी चाहेगी कि उन्हें भाजपा विधायक दल के नेता के रूप में मान्यता मिले. वहीं, स्पीकर का कहना है कि इस बाबत वो कानूनी विशेषज्ञ से सलाह लेंगे.

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बता दें कि 17 फरवरी को बाबूलाल मरांडी औपचारिक तौर पर बीजेपी में शामिल हुए थे और अपनी पार्टी का विलय भी करा दिया था. एक हफ्ते बाद ही मरांडी को पार्टी की ओर से बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई. बीजेपी महासचिव अरुण सिंह ने मरांडी को झारखंड विधानसभा में बीजेपी विधायक दल का नेता चुने जाने का ऐलान किया. अब यह स्पीकर पर निर्भर है कि वह बाबूलाल मरांडी को भाजपा विधायक दल के नेता के रूप में मान्यता देते हैं या नहीं.

गौरतलब है कि झारखंड विकास मोर्चा (JVM) के मुखिया बाबूलाल मरांडी चौदह वर्ष का वनवास काटकर जब रांची में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा में लौटे तो संघर्षरत भगवा पार्टी के लिए इसे सकारात्मक पहल के रूप में देखा गया. पिछले दिसंबर में पार्टी राज्य की सत्ता गंवा बैठी थी.

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भगवा पार्टी में दूसरे नंबर के नेता शाह ने माना कि मरांडी को लौटने के लिए मनाने में छह साल लगे. उन्होंने उम्मीद जताई कि झारखंड में तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों—मरांडी, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास के नेतृत्व में भाजपा पनपेगी. हालांकि कुछ को मरांडी की वापसी से अंतर्कलह तेज होने का अंदेशा है.

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15 नवंबर, 2000 को झारखंड राज्य का गठन होने पर तब भाजपा के नेता मरांडी 28 महीनों के लिए मुख्यमंत्री बने थे. गठबंधन के कुछ सहयोगियों के बगावत कर देने पर उन्हें पद छोडना पड़ा. मरांडी को समर्थन देने के बजाए मार्च, 2003 में भाजपा ने अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बना दिया. तीन साल बाद मरांडी ने व्यक्तिगत और सांगठनिक कारणों का हवाला देते हुए भाजपा छोड़ दी. मरांडी ने 2006 में झाविमो का गठन किया, जिसका 17 फरवरी को भाजपा में विलय हुआ.

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