
भारतीय जनता पार्टी की ओर से जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन वाली सरकार से अप्रत्याशित रूप से हटने का फैसले का ऐलान किए जाने के साथ ही देश की राजनीति अचानक गरमा गई है.
अगले लोकसभा चुनाव में अब एक साल से भी कम का समय रह गया है और माना जा रहा है कि आधुनिक राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह अभी से चुनावी रणनीति बनाने में जुट गए हैं. हालिया उपचुनाव के परिणाम भारतीय जनता पार्टी के लिहाज से अच्छे नहीं रहे और उसे कई जगहों पर हार का सामना करना पड़ा है.
नई रणनीति बनाने को मजबूर
ऐसे में अगले आम चुनाव की वैतरणी पार करने के लिए शाह एंड टीम को नए सिरे से रणनीति बनाने को मजबूर होना पड़ा है. अब तक एनडीए में बीजेपी बेहद मजबूत स्थिति में थी, लेकिन कई उपचुनावों में हार के बाद गठबंधन में घटक दल बीजेपी के साथ मुखर होने लगे हैं.जम्मू-कश्मीर में हाल के दिनों में बढ़ी आतंकी घटनाओं और खराब हालात को देखते हुए बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने सरकार से हटने का अप्रत्याशित फैसला लेकर सारा दोष स्थानीय पार्टी पीडीपी पर मढ़ भी दिया.
गठबंधन तोड़ने का ऐलान करते हुए बीजेपी नेता राम माधव ने पीडीपी पर आरोप लगाते हुए कहा कि हमने गृह मंत्रालय, जम्मू-कश्मीर के तीन साल के कामकाज, सभी एजेंसियों से राय लेकर यह फैसला किया है. बीजेपी अपना समर्थन वापस ले रही है.
उन्होंने कहा कि जिन मुद्दों को लेकर सरकार बनी थी, उन सभी बातों पर चर्चा हुई. पिछले कुछ दिनों से कश्मीर में स्थिति काफी बिगड़ी है, जिसके कारण हमें यह फैसला लेना पड़ रहा है. इस संबंध में प्रधानमंत्री, अमित शाह, राज्य नेतृत्व सभी से बात की है.
अगला नंबर बिहार का?
अब कहा जा रहा है कि मोदी-शाह की जोड़ी जम्मू-कश्मीर वाला फैसला बिहार में भी ले सकती है. बिहार में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) पिछले साल जुलाई में एनडीए में शामिल हुई थी. हालांकि जब से जेडीयू ने एनडीए में वापसी की है, बीजेपी के लिए बहुत अच्छा नहीं रहा.
20 नवंबर, 2015 से 26 जुलाई, 2017 तक नीतीश कुमार बिहार में महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चला रहे थे, लेकिन भ्रष्टाचार और घोटाले के नाम पर नीतीश महागठबंधन से बाहर हो गए और इसके एक दिन बाद उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर बिहार में फिर से नई सरकार बना ली.
लेकिन शायद नीतीश के साथ बीजेपी का जाना फायदेमंद साबित नहीं हुआ और पिछले महीने बिहार में हुए उपचुनाव में इस गठबंधन को करारी हार मिली. जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में हार जेडीयू के लिए बड़ा झटका था क्योंकि यह सीट नीतीश के लिए बेहद खास थी और पिछले 2 दशक से उनकी पार्टी का इस सीट पर कब्जा था, लेकिन इस बार उन्हें हार मिली. इससे पहले भी उपचुनाव में उन्हें हार मिली थी.
उपचुनाव में हार के अलावा हाल में राज्य में घटी रेप (गया, जहानाबाद, नालंदा, मुजफ्फरपुर) की कई घटनाओं और सांप्रदायिक हिंसा (भागलपुर, औरंगाबाद, समस्तीपुर) के कारण नीतीश सरकार को काफी शर्मसार होना पड़ा, बीजेपी यहां पर नंबर दो की हैसियत में है और वह चुपचाप देखने को मजबूर है.
सीटों को लेकर हो सकती है तनातनी
दूसरी ओर, 2019 लोकसभा चुनाव में माना जा रहा है कि एनडीए के घटक दलों और बीजेपी के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर तनातनी दिख सकती है. बिहार पर नजर डालें तो एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान अभी से शुरू हो गई है. बीजेपी के प्रदेश महासचिव राजेंद्र सिंह ने दावा किया था कि पार्टी उन सभी 22 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी जिन पर पिछले लोकसभा चुनावों में उसे जीत हासिल हुई थी.
जवाब में जेडीयू की ओर से बीजेपी को चुनौती दी गई कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विश्वसनीय और स्वीकार्य चेहरे के बगैर ही वह सभी 40 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़कर दिखाए.
2014 में एनडीए को मिली जीत
बिहार में राजनीतिक हालात ऐसे हैं कि नीतीश एक ओर बीजेपी के साथ गठबंधन कर खुश नहीं बताए जा रहे हैं तो बीजेपी भी उनके साथ राज्य में नंबर टू की हैसियत से नहीं रहना चाहती. लंबी चुप्पी के बाद नीतीश अब केंद्र में बीजेपी सरकार की नीतियों पर खुलकर अपनी राय रखने लगे हैं. साथ ही सोमवार को एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्म से कोई समझौता नहीं करेंगे.
वहीं बीजेपी को भी लग रहा है कि जेडीयू के साथ रहने पर उसे राज्य में खासा नुकसान हो सकता है. जेडीयू को 2014 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ 2 सीटें ही मिली थीं, जबकि 40 लोकसभा सीटों वाले राज्य में एनडीए को 31 सीटें मिली थी, जिसमें बीजेपी ने अकेले 22 सीट अपने नाम कर ली थी.