
निर्भया के हत्यारे कब लटकाए जाएंगे? सात साल हो गये इस सवाल से जूझते हुए. लेकिन जवाब नहीं मिला. क्योंकि लग तो यही रहा है कि पेंच इसी 'लटकाए' जाने को लेकर फंसा हुआ है. हालांकि जनता हो या फिर निर्भया के हत्यारों के वकील दोनों इसे 'लटकाना' ही चाहते हैं. बस दोनों के लटकाने में फर्क सिर्फ इतना है कि जनता इन दरिंदों को फांसी के तख्ते पर लटकाना चाहती है और वकील कोर्ट के तख्त पर इस मामले को लटकाने की जद्दोजेहद में जुटे हैं.
इन सात सालों में हमारे कानून में मौजूद सुराखों और दरारों का फायदा उठाकर ही काले चोंगे वाले इन काली करतूतें करने वालों को बचाने के लिए तमाम उल्टे-सीधे हथकंडे अपनाते आ रहे हैं. अब जनता का सब्र भी जवाब देने लगा है. संसद तक में कहा जा रहा है कि जब हमारे सिस्टम में ही इतनी खराबी है तो क्यों ना ऐसे दरिंदों को जनता के हवाले कर दिया जाए और जनता ही इंसाफ कर दे. सुनने में ये जंगल राज और अंधा कानून लग सकता है लेकिन कड़वी सच्चाई तो यही है.
अब बात करते हैं कि अब क्या सीन है इनको लटकाने का. तो साहब ये समझ लीजिये कि 16 दिसंबर को किसी भी सूरत में फांसी नहीं होने जा रही है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई ही 17 दिसंबर को होनी है. जब मामला बड़ा होता है तो उसे लेकर उल्टी सीधी अफवाहें भी उड़ती हैं. जनता की उत्सुकता का फायदा उठा कर लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हो जाते हैं.
2020 तक `लटक' सकता है मामला
फिलहाल तो यह भी अफवाह उड़नी शुरू हो गई है कि 16 दिसंबर नहीं तो 29 दिसंबर को फांसी होगी. यानी जिस दिन यह कांड हुआ 16 दिसंबर और जिस दिन निर्भया की सांसों की डोर टूटी यानी 29 दिसंबर. लेकिन सब कुछ बहुत ही फास्ट यानी तेज रफ्तार से होगा तभी 29 दिसंबर की डेड लाइन पर यह काम हो सकता है. वरना मामला फिर 2020 तक `लटक' सकता है. 17 दिसंबर को सुनवाई के बाद 18 दिसंबर को पुनर्विचार याचिका पर फैसला आ गया तो ठीक वर्ना कोर्ट अगले 18 दिनों के लिए बंद. सर्दी की छुट्टियों के बाद सुप्रीम कोर्ट के कपाट 6 जनवरी को खुलेंगे.
हमारा कानून जघन्य अपराधी को भी अपने बचाव के तीन अहम मौके देता है. जब सुप्रीम कोर्ट सहित सभी जगह से फैसला खिलाफ आए तो सुप्रीम कोर्ट से तय अपनी सजा के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकता है. पुनर्विचार याचिका खारिज हो जाए तो उपचार याचिका यानी राहत के लिए गुहार और वो भी खारिज हो जाए तो राष्ट्रपति के पास दया याचिका लगा सकता है. राष्ट्रपति के पास किसी की भी सजा-ए-मौत को क्षमा करने या उसे उम्रकैद में बदल देने का विशेषाधिकार होता है.
जज ने खोला वकीलों का कच्चा-चिट्ठा
हमारी कानूनी और न्यायिक प्रक्रिया के मुताबिक दरिंदे अक्षय सिंह ने अपनी मौत की सजा पर पुनर्विचार के लिए अर्जी लगाई है. जिस पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार यानी 17 दिसंबर को सुनवाई करेगा. पटियाला हाउस में 'फास्ट ट्रैक' कोर्ट ने भी निर्भया की मां आशा देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कह दिया है कि पहले सुप्रीम कोर्ट इस मामले में आदेश दे दे तो फिर यहां सुनवाई आगे बढ़ाई जाय. पिछले सात सालों से भी यही सब तो होता आ रहा है. जो कुछ तिकड़मबाजियां निर्भया से अमानवीय कुकृत्य करने वाले इन हत्यारों के वकीलों ने की हैं उनका कच्चा-चिट्ठा पटियाला हाउस कोर्ट में जज सतीश अरोड़ा ने आज खोल कर रख दिया.
उन्होंने इन हत्यारों के वकील ए पी सिंह से साफ पूछा कि आप हमेशा से इस मामले को लटकाये जाने की तरकीबें और जुगाड़ के चक्कर में लगे रहे. कई बार आप खुद अदालत नहीं पहुंचे. कभी किसी बहाने से तो कभी किसी. आपने समय रहते कानूनी उपाय नहीं किये जबकि हमने महीनों पहले आपको आगाह भी कर दिया था. सभी दोषियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिकाएं एक साथ लगाने की बजाय आपने सोची समझी चाल के तहत बारी बारी से लगाई ताकि आप समय काट सकें. आप दया याचिकाओं के मामले में भी यही खेल खेलना चाहते हैं. यानी ट्रायल कोर्ट भी अपराधियों के वकीलों के इस चालाकी भरे रवैये से आजिज आ चुका है.
वकील ने कोर्ट को बताया- दो हथियार अभी बचे
कायदे से इन अपराधियों को जल्दी से जल्दी सजा-ए-मौत देने की याचिका निर्भया की मां की ओर से लगाई गई. आशा देवी ने पटियाला हाउस कोर्ट से कहा कि इनके खिलाफ अब डेथ वारंट जारी कर ही दिया जाय. इससे पहले कोर्ट ने तिहाड़ जेल प्रशासन से रिपोर्ट मांगी कि कोर्ट के पास इन चारों की ओर से कहीं कोई याचिका लंबित रहने की सूचना नहीं है लिहाजा क्यों ना इनको दी गई सजा पर अमल कर दिया जाए. इस पर इन हत्यारों के वकील ए पी सिंह और अन्य हरकत में आए. उन्होंने ना केवल सुप्रीम कोर्ट में एक दोषी अक्षय सिंह की ओर से पुनर्विचार याचिका दायर की बल्कि ट्रायल कोर्ट को भी बताया कि अभी हड़बड़ाने की जरूरत नहीं है. उनके पास दो हथियार अभी बचे हैं. इधर कोर्ट ने हड़काया उधर सुप्रीम कोर्ट में एक वकील सुनील कुमार ने जनहित याचिका दायर की गई कि कोर्ट इन अपराधियों को महीने भर के भीतर सजा-ए-मौत देना सुनिश्चित करे. क्योंकि फास्ट ट्रैक कोर्ट से होते हुए भी ये मामला पिछले सात सालों से लंबित ही है. यानी सजा का इंतजार खत्म ही नहीं हुआ है.
सुनील कुमार ने अपनी याचिका में ये भी कहा है कि इन दरिंदों को फांसी दिये जाने का लाइव टेलीकास्ट भी किया जाए. इसमें अगर कोई बाधा या आपत्ति हो तो निर्भया के परिजनों को वहां जेल में फांसी के वक्त मौजूद होने की इजाजत जरूर मिले. फिलहाल इंतजार है कि 17 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कितनी तेजी से निपटती है. क्योंकि 18 दिसंबर के बाद कोर्ट पांच जनवरी 2020 तक सर्दी की छुट्टियों के लिए बंद हो जाएगा.