
इस साल 22 जनवरी 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू पर लगाई गई रोक पर पुनर्विचार करने से मना कर दिया.तमिलनाडु के कुछ निवासियों की तरफ से दायर पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में जल्लीकट्टू पर रोक लगाई थी.
केंद्र सरकार ने हटाया था जल्लीकट्टू से प्रतिबंध
केंद्र सरकार ने 8 जनवरी को अधिसूचना जारी कर जल्लीकट्टू पर लगे प्रतिबंध को हटा लिया था. अधिसूचना में कुछ प्रतिबंध भी लगाए गए थे. एनिमल वेलफेयर बोर्ड, पीपुल फार एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स, बंगलुरु के एक एनजीओ और अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में अधिसूचना को चुनौती दी थी. याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अधिसूचना पर रोक लगा दिया था.
सुप्रीम कोर्ट में फिर दायर हुई याचिका
एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की तरफ से दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है. लेकिन कोर्ट के रूख को देखते हुए नहीं लगता की तमिलनाडु को इस मामले में कोई राहत मिलेगी.
23 अगस्त को होगी मामले की सुनवाई
जल्लीकट्टू यानी सांड़ों की दौड़ पर रोक के खिलाफ तमिलनाडू सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची. और सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार है,23 अगस्त को इस मामले पर अंतिम सुनवाई होगी, सुनवाई को नहीं टाला जाएगा. तमिलनाडू सरकार ने याचिका में परंपरा का हवाला दिया. इस पर जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा - इस दलील में दम नहीं. 1899 में 10 हज़ार से ज़्यादा बाल विवाह हुए. 12 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी हुई. क्या इसे परंपरा मान कर जारी रहने दिया जा सकता है? हमें सिर्फ ये देखना है कि ये खेल कानून और संविधान की कसौटी पर खरा उतरता है या नहीं.